मोदी सरकार के तीन साल: आम जन के लिए सस्ती हो सकती है दवा
प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि वे देश भर में सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्रों में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए सिर्फ सस्ती जेनरिक दवा ही लिखने को अनिवार्य बनाएंगे।
मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली। स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक अहम पहल करते हुए सरकार ने डॉक्टरों की ओर से सिर्फ जेनरिक दवा ही लिखे जाने की ओर कदम बढ़ा दिया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जल्दी ही वे इसे लागू करेंगे। उधर, टीकाकरण की बदहाल व्यवस्था को दुरुस्त कर अधिक से अधिक बच्चों को सभी टीके लगाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
बीमार पड़ने पर इलाज भले ही सरकारी अस्पताल में मिल जाए, लेकिन दवा का बोझ ऐसा होता है कि पूरे परिवार को ही चपेटे में ले लेता है। बीमार होने के दौरान जेब से होने वाले खर्च की वजह से हर साल छह करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंच जाते हैं। लोगों की जेब से होने वाले खर्च में 80 फीसदी हिस्सा दवा, जांच और उपकरणों पर होता है। दवा कारोबार में होने वाली भारी मुनाफाखोरी की बात भी किसी से छुपी नहीं है।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों खुद घोषणा की है कि वे देश भर में सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्रों में काम करने वाले डॉक्टरों के लिए सिर्फ सस्ती जेनरिक दवा ही लिखने को अनिवार्य बनाएंगे। इसके बाद भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआइ) की ओर से डॉक्टरों के लिए सिर्फ जेनरिक दवा ही लिखने का नियम भी बना दिया गया है। उधर, केंद्रीय औषधि विभाग इस संबंध में कानून भी संसद में लाने की तैयारी में है।
इस दौरान हृदय रोग के इलाज में काम आने वाले स्टेंट की कीमत में भी भारी कमी आ सकी है। मरीजों के साथ होने वाली लूट से मुक्ति मिल सकी है। इसके मूल्य को नियंत्रित किए जाने से पहले इस पर दो सौ से हजार प्रतिशत तक का भारी मुनाफा कमाया जा रहा था। राजग सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही टीकाकरण कवरेज को बढ़ाने के लिए मिशन इंद्रधनुष भी शुरू किया।
हर साल पांच फीसदी की दर से टीकाकरण कवरेज बढ़ाने का दावा तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन महज एक फीसदी की रफ्तार से हो रही तरक्की में दुगनी से ज्यादा बढ़ोतरी हो सकी है। हालांकि अब भी ऐसे पहुत से पैमाने हैं जिन पर प्रगति की रफ्तार बहुत धीमी बनी हुई है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने को ले कर चल रहे धीमे प्रयास की वह से अब भी देश में होने वाले प्रत्येक हजार प्रसव में से 41 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं देख पा रहे।
चुनौतियां
- गांवों में आज भी डॉक्टरों की भारी समस्या बनी हुई है। गांवों के लिए डॉक्टरों का अलग कैडर तैयार करने को ले कर कोई प्रयास नहीं।
- मेडिकल काउंसिल में भ्रष्टाचार जस का तस बना हुआ है। खुद प्रधानमंत्री की बनाई समिति इसे भंग कर नया ढांचा खड़ा करने की सिफारिश कर चुकी, लेकिन अब तक इस पर कोई पहल नहीं हुई है।
- देश में कुपोषण की समस्या को ले कर कोई गंभीर पहल नहीं हुई है। देश में पांच साल तक के बच्चों में से 38.4 फीसदी आज भी ठिगने हैं। इसी तरह अब 35.7 फीसदी बच्चे उम्र के मुकाबले कम वजन के हैं।
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