जीवन के हर रंग देख चुकी बेबी अब बन रही दूसरों का सहारा
दो दर्जन से अधिक युवतियां सीख रही हैं हुनर साहस के कायल हैं ग्रामीण...
गोरखपुर (ब्युरो)। यदि मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो सुविधा और परेशानी आड़े नहीं आती है। इसका नजीर पेश कर रहीं हैं पिपरौली की रहने वाली 48 वर्षीय बेबी। वर्ष 2005 में बीमारी के कारण जब पति की मौत हो गई तो दो छोटे-छोटे बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी बेसहारा बेबी के कंधों पर आ गई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने हौसले के दम व हुनर के सहारे बेसहारा होने के दाग को धुल दिया। इतना ही नहीं अब तो वह दो दर्जन युवतियों को सिलाई सीखा कर उनको भी सहारा दे रही हैं।
महिला के हौसला और जज्बे को देख ग्रामीण भी उनके कायल हो गए हैं। सहजनवां तहसील के पिपरौली गांव की रहने वाली बेबी भी शादी के पहले अपने परिवार और जीवन को लेकर कई अरमान पाल रखे थे। पति नसीम सिलाई करके किसी तरह से परिवार चला रहा था लेकिन वर्ष 2003 में बीमार पड़ गए और पैसे के अभाव में सही इलाज नहीं मिल पाने के कारण वर्ष 2005 में उसकी मौत हो गई। पति की मौत के समय बेबी के पास छह वर्ष की पुत्री नगमा और डेढ़ वर्ष का बेटा सैफ था। अचानक दुखों का पहाड़ टूट जाने के बाद बेसहारा हो चुकी बेबी के सामने बच्चों का पालन-पोषण और खुद का जीवन चलाना एक बड़ी चुनौती साबित हो गई थी। पति को कार्य करते देख बेबी भी थोड़ी-बहुत सिलाई जान गई थी।
अब पहाड़ सी जिंदगी को पार लगाने के लिए बेबी ने पति के ही सिलाई मशीन को सहारा बना लिया। पहले तो घरों तक जाकर दूसरे के फटे कपड़ों की सिलाई करती रहीं लेकिन धीरे-धीरे कार्य बढ़ता चला गया। अब तो इतना अधिक काम मिलता है कि कई बार तो मना करना पड़ता है। हुनर के दम पर हौसला दिखा बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा कर लिया है। बेटी अब बालिग हो चुकी है और मां के कार्य में हाथ बंटा रही है। वर्तमान में बेबी के पास निश्शुल्क सिलाई सीखने के लिए कई दर्जन युवतियां आती हैं, जिन्हें हुनर सिखाया जा रहा है।
-संतोष गुप्ता
यह भी पढ़ें : समोसा बेचने वाले के बेटे ने लहराया परचम, JEE में हासिल की छठी रैंक