फांसी खत्म करने लायक नहीं देश के हालात
जघन्य अपराधों में फांसी की सजा बनाए रखने की पैरवी करते हुए विधि आयोग की सदस्य जस्टिस उषा मेहरा ने कहा है कि देश की मौजूदा परिस्थितियों में इसे पूरी तरह से खत्म करना ठीक नहीं होगा। विधि आयोग की रिपोर्ट का विरोध करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि
नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। जघन्य अपराधों में फांसी की सजा बनाए रखने की पैरवी करते हुए विधि आयोग की सदस्य जस्टिस उषा मेहरा ने कहा है कि देश की मौजूदा परिस्थितियों में इसे पूरी तरह से खत्म करना ठीक नहीं होगा। विधि आयोग की रिपोर्ट का विरोध करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि अपराधी के मानवाधिकारों पर तो बहुत जोर दिया गया है, जबकि मासूम पीडि़तों के मानवाधिकार भुला दिए गए हैं।
जस्टिस मेहरा के अलावा आयोग के दो सरकारी प्रतिनिधि विधि सचिव पीके मल्होत्रा और विधायी विभाग के सचिव डॉक्टर संजय सिंह भी फांसी को समाप्त करने की राय से असहमत हैं। विधि आयोग के इन तीनों सदस्यों ने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
अलग से दिए नोट में अपनी असहमति जताते हुए जस्टिस मेहरा ने कहा है कि फांसी विरले मामलों में ही दी जाती है। इस बात का कोई पुख्ता सुबूत नहीं है कि गलत व्यक्ति को फांसी दे दी गई। गलती इंसानों से हो सकती है, लेकिन फांसी की सजा को निचली अदालत और हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में जांचा-परखा जाता है।
जस्टिस मेहरा ने कहा कि हम कसाब और अफजल गुरु को कैसे भूल सकते हैं, जिसने कितने ही मासूमों की जान ले ली। निठारी जैसे जघन्य कांड में और कौन सी सजा दी जानी चाहिए? आखिर आतंकी को किस तरह सुधारा जा सकता है?
यह कहना गलत है कि हमारा सिस्टम गरीब, अल्पसंख्यक या जातिगत आधार पर भेदभाव करता है। 40 सालों में 71 अपराधियों को फांसी की सजा मिली। इनमें से कसाब, अफजल गुरु और याकूब आतंकी थे। बाकी जिसे सजा हुई वह दलित नहीं था।