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प्राचीन सभ्यता को सहेज कर रख रहा ये मुस्लिम परिवार

मजहब के दायरे से परे हैं प्राचीन सभ्यता को जिंदा रखने वाले मुस्लिम कारीगर...

By Srishti VermaEdited By: Published: Wed, 19 Jul 2017 09:43 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jul 2017 09:43 AM (IST)
प्राचीन सभ्यता को सहेज कर रख रहा ये मुस्लिम परिवार
प्राचीन सभ्यता को सहेज कर रख रहा ये मुस्लिम परिवार

धनबाद (रिजवान शम्स)। पूर्वजों की सभ्यता से नातेदारी निभाने की कला, जादूपेटिया समाज का जुनून है, और अब सिमटती पहचान भी। मजहब इस्लाम है और इनके हाथों बनी पीतल की मूर्तियां देशभर में पूजी जाती हैं।
झारखंड की उपराजधानी दुमका से करीब 45 किलोमीटर दूर जागुड़ी व जबरदाहा गांव में रहते हैं इस कला के पारंगत जादूपेटिया समाज के लोग। दोनों गांव में करीब 22 परिवार आज भी प्राचीन युग की तरकीब से पीतल के जेवरात व मूर्तियां बनाते हैं। जरूरतों ने इनकी कला को कई और पैमानों पर तराश दिया है। अब वे आधुनिक मकानों को डेकोरेट करने के सामान भी तैयार करने लगे हैं- जैसे आर्ट लैंप, पीतल के मोर, हाथी, शेर, घोड़े, गुलदस्ते आदि।

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कबाड़ के टुकड़ों से ड्राइंग रूम की सजावट
कबाड़ की दुकानों से मिले टूटे-फूटे पीतल के टुकड़ों के साथ मोम, धुमना (हवन सामग्री) और सरसों तेल से सूत तैयार किया जाता है। इस सूत से छोटे सांचे तैयार होते हैं। फिर सूत के सांचे को मिट्टी के बड़े सांचे के अंदर रखा जाता है। इसी मिट्टी के सांचे में पीतल के टुकडे़ रखे जाते हैं। अंतिम काम पूरे सांचे को भट्ठी में डालना होता है। जैसे-जैसे भट्ठी की तपिश बढ़ती है, मोम पिघलता है और उस मोम के सांचे में पीतल प्रवेश कर जाता है। ठंडा होने पर पीतल के जेवर या अन्य सामान तैयार हो जाते हैं। इस सामग्री को स्थानीय बाजार हाट से लेकर हस्तकला के बड़े बाजारों में बेचा जाता है। ऑर्डर देने पर बड़ी मूर्तियां बनाई जाती हैं। पीतल से बनी सामग्री को प्राचीन दिखने के लिए इनपर पॉलिश नहीं की जाती। हालांकि ऑर्डर पर कारीगर इस पर पॉलिश भी कर देते हैं।

मोहनजोदाड़ो में मिले हैं कला के अवशेष
ये कला करीब 4000 साल से अधिक पुरानी मानी जाती है। इसका नाम डोकरा आर्ट है। मोहनजोदाड़ो की खुदाई में भी इस कला के अवशेष मिले हैं, एक नाचती लड़की की मूर्ति मिली थी। भारत के अलावा मिस्त्र, अमेरिका, चीन, मलेशिया और नाइजीरिया में भी इस कला को कद्र मिली। देश में इस कला पर पश्चिम बंगाल की धाक रही है। फिलहाल दुमका के जागुड़ी और जबरदाहा में रहने वाला जादूपेटिया समाज इस कला को सींच रहा है।

-दुमका में अब भी संवारा जा रहा 4000 साल पुराना व पुश्तैनी डोकरा आर्ट
-देशभर में पूजी जाती हैं इनके हाथों बनी पीतल की मूर्तियां

जब से होश संभाला तब से यही पेशा है। बाबा, दादा भी यही काम करते थे। अब कुछ लोग काम छोड़कर मजूरी करने लगे हैं। दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में आयोजित कई कला प्रदर्शनी में पुरस्कार भी मिला है। अब तो प्रतियोगिता का निमंत्रण भी नहीं मिलता, मायूसी होती है। पुश्तैनी जिम्मेदारी है, बच्चे भी खुद से ही सीख गए। पूर्व में आसपास के दर्जन भर गांवों में लोग ये काम करते थे लेकिन अब सिर्फ दो गांव ही शेष बचे हैं।- लिजाम जादूपेटिया, हस्तकला कारीगर जागुड़ी, दुमका

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