सुप्रीम कोर्ट जज विवाद: पहले भी दिखता रहा है मतभेद
अगर पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम पर निगाह डालें तो साफ हो जाता है कि पहले भी इस तरह के मतभेद सामने आते रहे हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। वैसे तो देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जज खुल कर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ मीडिया के सामने आये हैं। लेकिन, अगर पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम पर निगाह डालें तो साफ हो जाता है कि पहले भी इस तरह के मतभेद सामने आते रहे हैं। फिर वो चाहें मेडिकल कालेज मामले में मनचाहा आदेश दिलाने के लिए जजों के नाम पर रिश्वतखोरी का केस हो या फिर जज बीएच लोया की रहस्यमय मौत की जांच से जुड़ी नयी याचिका पर सुनवाई का मुद्दा।
कुछ इसी तरह का भूचाल गत 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में आया था जब दूसरे नंबर के वरिष्ठतम न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने जजों के नाम पर रिश्वतखोरी के केस की एसआईटी से जांच कराने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया था। दो न्यायाधीशों की पीठ ने वकील कामिनी जायसवाल की याचिका पर दोपहर से पहले सुनवाई करके उपरोक्त आदेश दे दिया था लेकिन उसी दिन तीन बजे दोपहर में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने पांच न्यायाधीशों की पीठ गठित करके जस्टिस चेलमेश्वर की पीठ का वह आदेश रद कर दिया साथ ही हमेशा के लिए यह व्यवस्था दे दी कि कोई भी न्यायाधीश स्वयं से अपने सामने कोई मामला सुनवाई के लिए नहीं लगाएगा।
कौन सा मामला कौन पीठ सुनेगी यह तय करने का अधिकार सिर्फ मुख्य न्यायाधीश को है और वे ही इसे तय करेंगे। बाद में कामिनी जायसवाल की वह याचिका तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगी और उस पीठ ने कारण सहित विस्तृत फैसला सुनाते हुए उसे खारिज कर दिया था। इसी तरह की एक याचिका गैर सरकारी संगठन की ओर से प्रशांत भूषण ने भी दाखिल की थी। भूषण ने मामले पर बहस करते हुए कहा था कि मेडिकल कालेज से जुड़े इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश को सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि मेडिकल कालेज के जिस केस की बात हो रही है उसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने ही की थी। हालांकि ये दलीलें खारिज हो गईं थीं।
जजों के नाम पर रिश्वतखोरी के केस की सुनवाई को लेकर उठे विवाद के बाद मुख्य न्यायाधीश ने एक बड़ा बदलाव और किया जिसमें किसी भी नये केस की मेंशनिंग सिर्फ मुख्य न्यायाधीश के सामने ही किये जाने का प्रशासनिक आदेश जारी हुआ। बात ये है कि मुख्य न्यायाधीश के संविधान पीठ में बैठे होने पर नये मामलों की मेंशनिंग दूसरे नंबर के वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष होती थी और इसीलिए कामिनी जायसवाल ने अपनी याचिका की मेंशनिंग जस्टिस चेलमेश्वर की कोर्ट मे की थी जिस पर उन्होंने 10 नवंबर का आदेश दिया था।
लेकिन आज का ताजा मामला मुंबई के विशेष सीबीआइ जज बीएच लोया की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से जुड़ा था। मीडिया ने प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे न्यायाधीशों से पूछा कि क्या जस्टिस लोया का भी मामला था तो उन्होंने सहमति में सिर हिलाया। जिसका मतलब निकलता है कि ताजा विवाद जस्टिस लोया के केस की सुनवाई को लेकर हुआ।
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