सरकार के गले की फांस बनती जा रही रेलवे की अव्यवस्था
सरकार बदली, मंत्री बदले, अधिकारी बदले, लेकिन नहीं रुक रहे रेल हादसे। आखिर हम हादसों से कब सबक लेंगे। अभी केंद्र में नई सरकार को कामकाज संभाले एक महीना भी नहीं हुआ और रेल के यात्रियों ने कई बड़े रेल हादसे देखें और अपनों की जान गंवाई। आखिर इन हादसों का जिम्मेदार कौन है?
नई दिल्ली। रेलवे की अव्यवस्था सरकार के गले की फांस बनती जा रही है। प्रधानमंत्री के शपथ लेने के दिन से लेकर उनके एक माह का कार्यकाल पूरा करने तक की अवधि में सबसे ज्यादा बवाल रेलवे विषय पर रहा है। अब वह चाहें किराया बढ़ाने के फैसले पर अपने ही सहयोगियों का विरोध झेलना हो या फिर दो दर्दनाक हादसे जिसमें कई यात्रियों की जानें गई। सरकारी एजेंडे में रेलवे की सुरक्षा और संरक्षा की बात सबसे आगे थी लेकिन उसका असर अभी होता नजर नहीं आ रहा है। अब चाहें हादसे की वजह नक्सली हों या फिर कोई तकनीकी खराबी, दोनों ही दशा में रेलवे की बदइंतजामी सामने है। नक्सली बंद के दौरान हमलें की आशंका को देखते हुए जो भी एहतियात बरते जाते हैं, उनमें से किसी का पालन होता नजर नहीं आया। राहत कार्य में भी अव्यवस्था सामने हैं। जांच के बाद दुर्घटना के कारण जरूर सामने आ जाएंगे लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सरकार के कदम क्या होंगे ?
कुछ ताजा रेल हादसे :
नई दिल्ली-डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस हादसा 25 जून बुधवार तड़के नई दिल्ली से डिब्रूगढ़ जा रही राजधानी एक्सप्रेस बिहार के छपरा शहर के विशुनपुरा गांव के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में पांच लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दो दर्जन से अधिक यात्री घायल बताए जा रहे हैं। इस दुर्घटना में ट्रेन के कुल आठ डिब्बे पटरी से उतर गये। दो बोगियां तो बिल्कुल ही क्षतिग्रस्त हालत में हैं। इंजन के बाद की बी-1 से बी-7 तक बोगी दुर्घटनाग्रस्त हुई है। इस कारण मृतकों की संख्या बढ़ने की पूरी संभावना है।
आगरा: भिड़ने से बची जम्मूतवी एक्सप्रेस
24 जून, मंगलवार शाम राजा की मंडी स्टेशन के समीप बड़ा हादसा टल गया। एक ही ट्रैक पर जम्मूतवी एक्सप्रेस और गुड्स ट्रेन आमने-सामने आ गईं। सामने से आती देख ट्रेन को ड्राइवरों के होश उड़ गए। दोनों ड्राइवरों ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर ट्रेनों को रोका। दोनों ट्रेनों के बीच करीब 70 मीटर की दूरी रह गई थी। घटना के बाद मौके पर बड़ी संख्या में आसपास के लोग भी पहुंच गए। हादसे में कोई हताहत नहीं।
इटावा: एक ही ट्रैक पर आई मगध एक्सप्रेस और टीटीएम24 जून, मंगलवार को इटावा के जसवंतनगर स्टेशन पर उस समय बड़ा हादसा टल गया जब मगध एक्सप्रेस और ट्रैक टेस्टिंग मशीन (टीटीएम) एक ही ट्रैक पर आ गईं। मगध के चालक ने सजगता दिखाते हुए इमरजेंसी ब्रेक लगाकर हादसा टाला। हादसे में कोई हताहत नहीं।
लखनऊ: मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर ट्रेन-ट्रक की टक्कर
7 जून को यूपी के हरदोई के पिहानी क्षेत्र में एक मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर ट्रेन की टक्कर से ट्रक के परखच्चे उड़ गए। इस दुर्घटना में तीन लोगों की मौत हो गई जबकि चार लोग घायल हो गए। ट्रेन जम्मू से मुजफ्फरपुर जा रही थी।
मालगाड़ी पर चढ़ी गोरखधाम एक्सप्रेस, 17 की मौत
26 मई यानी नरेंद्र मोदी सरकार शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही गोरखपुर-लखनऊ रेलखंड के चुरेब स्टेशन पर भीषण ट्रेन हादसा हुआ। दिल्ली से गोरखपुर आ रही गोरखधाम सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन ट्रैक न बदलने के कारण पहले से खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई। गोरखधाम एक्सप्रेस के आगे के पांच डिब्बे मालगाड़ी पर चढ़ गए। हादसे में 17 यात्रियों की मौत हो गई, जबकि 100 के करीब घायल हो गए।
इनके अलावा भी कई और छोटे ट्रेन हादसे मोदी सरकार में हुए हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर हम इन हादसों से कब सबक लेंगे। रेल हादसे होना कोई नाम बात नहीं है। लाखों लोगों ने अब तक ट्रेन हादसों में अपनी जान गंवाई है। लेकिन क्या इन हादसों को रोका नहीं जा सकता? क्या इनका कोई हल नहीं है? क्या हम ऐसे ही इन हादसों में अपनों की जानें गंवाते रहेंगे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिस पर मोदी सरकार गौर करने की जरूरत है।