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थर्मल प्लांट होंगे कम गर्म, अब नहीं करना पड़ेगा बंद

बाबा बंदा सिंह बहादुर इंजीनियरिंग कॉलेज की डॉ. नीरज बाला की टीम ने नई तकनीकी की इजाद

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 23 Sep 2017 09:50 AM (IST)Updated: Sat, 23 Sep 2017 09:50 AM (IST)
थर्मल प्लांट होंगे कम गर्म, अब नहीं करना पड़ेगा बंद
थर्मल प्लांट होंगे कम गर्म, अब नहीं करना पड़ेगा बंद

फतेहगढ़ (प्रदीप शाही)। साहिब बिजली उत्पादन के दौरान ब्वॉयलर अधिक गर्म होने से कई बार थर्मल प्लांट
बंद करना पड़ता है। इससे ब्वॉयलर के रिपेयर किए जाने तक संबंधित यूनिट से बिजली उत्पादन बंद हो जाता है। बाबा बंदा सिंह बहादुर इंजीनियरिंग कॉलेज के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की डॉ. नीरज बाला व उनकी टीम ने इस समस्या को हल करने की दिशा में सफलता हासिल की है। उन्होंने एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जिसके इस्तेमाल से थर्मल प्लांट में लगे ब्वॉयलर कम गर्म होंगे।

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इससे थर्मल प्लांट को वक्त-बेवक्त बंद नहीं करना पड़ेगा। डॉ. नीरज बाला ने बताया कि इस तकनीक का लाभ थर्मल प्लांट के अलावा गैस टर्बाइन में भी किया जा सकता है। ब्वॉयलर केवल थर्मल प्लांट में ही नहीं टर्बाइन में भी उपयोग होते हैं। इनका गर्म होना हमेशा से समस्या रहा है। हमने इस शोध को पेटेंट करवा लिया है। अब इस तकनीक का लाभ हमारी मंजूरी के बाद ही लिया जा सकेगा। इस शोध को पूरा करने में पीएचडी छात्रा अमित व सीएम गुप्ता का खास योगदान है।

ऐसे होगी समस्या हल
डॉ. नीरज बाला की टीम द्वारा इजाद की गई तकनीक के अनुसार ब्वॉयलर को कम गर्म रखने के लिए क्रोमियम व एल्युमिनियम युक्त स्पेशल कोटिंग की जाएगी। यह कोटिंग ब्वॉयलर को अधिक गर्म नहीं होने देगी। इस कोटिंग से ब्वॉयलर की आयु सीमा भी बढ़ेगी। इस कोटिंग को बेहद आसान तरीके से स्प्रे गन से किया जा सकता है। कोटिंग के बाद क्रोजन जमा होने की समस्या पैदा नहीं होगी, जिससे थर्मल प्लांट को बंद भी नहीं करना पड़ेगा।

यह पैदा होती है समस्या
ब्वॉयलर के अधिक गर्म होने से इसके भीतर क्रोजन जम जाती है। इस क्रोजन को समाप्त करने के लिए थर्मल प्लांट के संबंधित यूनिट को बंद करना पड़ता है।

नई तकनीक की खोज हमारे लिए बेहद गर्व की बात है। इसके व्यावसायिक स्तर पर इस्तेमाल को लेकर फिलहाल किसी औद्योगिक इकाई से हमने संपर्क नहीं किया है। -मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. जीएस
लांबा, प्रिंसिपल

यह प्रोजेक्ट 2011 में शुरू किया गया। इसको पूरा करने में हमें लगभग सात साल लग गए। इस कार्य में हमारे कॉलेज ने हमारी सभी जरूरतों को पूरा करने में पूरी मदद की।- अमिता व सीएम गुप्ता, शोध टीम सदस्य।

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