BJD के लिए आसान नहीं होगा BJP की चुनौती से निपटना
जिला परिषद चुनावों में भारी जीत के पीछे भाजपा का मजबूत सांगठनिक ढांचा है, जिसे एक साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया गया है
नई दिल्ली, नीलू रंजन। ओडिशा में भाजपा की चुनौती से निपटना नवीन पटनायक के लिए आसान नहीं होगा। पिछले एक साल में भाजपा ने ओडिशा में जमीनी स्तर पर मजबूत सांगठनिक ढांचा खड़ा कर लिया है। जिला परिषद चुनावों में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत इसी का परिणाम है। जिला परिषद चुनाव में भाजपा 306 सीटों पर जीती है, जबकि पिछली बार महज 36 सीटें जीत पाई थी। कांग्रेस आधी ही सीटें बचा पाई है, जबकि बीजद की 191 सीटें कम हो गई हैं।
दरअसल जिला परिषद चुनावों में भारी जीत के पीछे भाजपा का मजबूत सांगठनिक ढांचा है, जिसे एक साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया गया है। इस सांगठनिक ढांचे के बदौलत भाजपा मोदी सरकार की गरीबों और पिछड़ों के लिए चलाई जा रही नीतियों को आम जनता तक पहुंचाने में सफल रही। कालाहांडी और मयूरभंज जैसे पिछड़े इलाके में आम जनता मोदी सरकार की इन नीतियों पर अपनी मुहर लगा दी। हालत यह है कि मौजूदा समय में ओडिशा के हर जिलों में भाजपा का मजबूत संगठन और समर्थक तैयार हैं, जो दो साल होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इसी तरह कमाल दिखा सकते हैं।
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ओडिशा से जुड़े भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सबसे पार्टी ने वहां सबसे निचले स्तर मंडल इकाई का पुनर्गठन किया। पहले भाजपा का ओडिशा को 450 मंडल इकाई था, जिसे बढ़ाकर 1000 कर दिया गया, ताकि अधिक-अधिक जनता तक पार्टी की सीधी पहुंच हो सके। मंडल के बाद जिला इकाइयों को पुनर्गठित किया गया। इसके बाद सभी जिला और मंडल स्तर की इकाईयों की दो-दो बार उच्च स्तरीय नेताओं के साथ बैठक हुई, जिसमें हर इलाके के लिए अलग-अलग स्थानीय मुद्दों के साथ चुनावी रणनीति तय की गई। यही नहीं, ओडिशा में बड़े नेताओं के अभाव से जूझ रही भाजपा ने पड़ोसी राज्यों झारखंड और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को प्रचार में लगाया। साथ ही दोनों राज्यों से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को ओडिशा में बुलाकर जिम्मेदारी दी गई।
जिला परिषद चुनावों के बाद भाजपा अपने संगठन को और मजबूत और सक्रिय बनाने में जुट गई है। एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि दो साल बाद होने वाला विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी की अगली अग्निपरीक्षा होगी। पिछले 15 सालों से ओडिशा में नवीन पटनायक को कोई चुनौती देने वाला नहीं था। प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस बीजद का विकल्प देने में बुरी तरह विफल रही थी। लेकिन अब जबकि कांग्रेस का ओडिशा में लगभग सफाया हो गया है और नई ऊर्जा के साथ भाजपा जनता के बीच जड़ जमाने में जुटी है। नवीन पटनायक के लिए अपने गढ़ को बचा पाना उतना आसान नहीं रह जाएगा।
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