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आइए जानें, मिस्टर गे व‌र्ल्ड प्रतियोगिता में कौन करेगा भारत का प्रतिनिधित्व

एक समय ऐसा था जब भारत में समलैंगिक होना एक धब्बा समझा जाता था और कई लोग अपनी इस पहचान को उजागर नहीं करना चाहते थे, लेकिन ऐसे में मुंबई के सुशांत दिवगिकर अगले माह 24 से 30 अगस्त तक इटली की राजधानी रोम में होने वाले 'मिस्टर गे व‌र्ल्ड' प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करने का फैसला लेकर एक उदाहरण

By Edited By: Published: Fri, 25 Jul 2014 09:25 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jul 2014 10:01 PM (IST)

मुंबई। एक समय ऐसा था जब भारत में समलैंगिक होना एक धब्बा समझा जाता था और कई लोग अपनी इस पहचान को उजागर नहीं करना चाहते थे, लेकिन ऐसे में मुंबई के सुशांत दिवगिकर अगले माह 24 से 30 अगस्त तक इटली की राजधानी रोम में होने वाले 'मिस्टर गे व‌र्ल्ड' प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करने का फैसला लेकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। धारा 377 को खत्म करने से सुप्रीम कोर्ट के इन्कार के बाद समुदाय की आवाज को बल देने का यह सबसे बड़ा कदम है।

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हाल में तमिलनाडु से लेकर गुजरात तक समलैंगिकों के साथ दु‌र्व्यवहार की घटनाएं हुई हैं, लेकिन 24 वर्षीय दिवगिकर के मिस्टर गे व‌र्ल्ड प्रतियोगिता में हिस्सा लिए जाने से इस समुदाय के लोगों को समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग को बल मिलने की उम्मीद है।

सुशांत दिवगिकर ने मनोविज्ञान में डिग्री हासिल की है और वह एक मनोरंजन चैनल में एंकर भी हैं। प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए वे 23 अगस्त को रोम जाएंगे। प्रतियोगिता की शुरुआत 24 को और फाइनल 30 अगस्त को होगा। दिवगिकर ने कहा कि इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का मकसद देश को यह दिखाना है कि हमें अपने आप को छिपाने की जरूरत नहीं है, इसलिए हम कोठरी से बाहर आ गए, क्योंकि जो हर कोई कर सकता है वह मैं भी कर सकता हूं। दिवगिकर ने कहा कि प्रतियोगिता में भाग लेने का सार यह है कि मैं हमेशा एक आइकन बनना चाहा, जब आप अधिकांश से अलग हैं, आप प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भेदभाव का सामना करने जा रहे हैं। मेरा मानना है कि यदि हम खुद के लिए खड़े हुए तो हमें मान्यता अवश्य मिलेगी।

दिवगिकर फिलहाल प्रतियोगिता की तैयारी को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं और इसमें उनकी मां भारती सहयोग कर रही हैं। भारती ही दिवगिकर के कपड़ों के चयन से लेकर संतुलित आहार का खास ख्याल रख रही हैं।

मालूम हो कि दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक समुदाय के लोगों को बड़ी राहत देते हुए आइपीसी की धारा 377 को गलत करार देते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से अलग कर दिया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था।

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