थर्ड एसी के डिब्बे बढ़ाएंगे प्रभु, गरीब रथ के मुनाफे से मिली प्रेरणा
ट्रेनों का थ्री एसी क्लास डिब्बा रेलवे के यात्री व्यवसाय को मुनाफे में लाने का सबब बनेगा। रेलवे की स्थिति पर पेश श्वेतपत्र में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इसका संकेत दिया है। रेलवे को यात्री व्यवसाय में सालाना करीब 25 हजार करोड़ का घाटा होता है। श्वेतपत्र में प्रभु ने
नई दिल्ली [संजय सिंह]। ट्रेनों का थ्री एसी क्लास डिब्बा रेलवे के यात्री व्यवसाय को मुनाफे में लाने का सबब बनेगा। रेलवे की स्थिति पर पेश श्वेतपत्र में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इसका संकेत दिया है।
रेलवे को यात्री व्यवसाय में सालाना करीब 25 हजार करोड़ का घाटा होता है। श्वेतपत्र में प्रभु ने इसे मुनाफे में लाने के कुछ उपायों की चर्चा की है। इनमें एक है ट्रेनों में थर्ड एसी क्लास के डिब्बे बढ़ाना। प्रभु के मुताबिक सभी श्रेणियों में एकमात्र यही ऐसी श्रेणी है, जो 75 फीसद भरे होने पर भी हमेशा मुनाफे में रहती है। बाकी साधारण द्वितीय श्रेणी, शयनयान, सेकंड एसी और फस्र्ट एसी के डिब्बे सौ फीसद भरे होने के बावजूद घाटा होता है। इसलिए ट्रेनों में ज्यादा-से-ज्यादा थर्ड एसी के डिब्बे लगाए जाने या पूरी तरह थर्ड एसी ट्रेनें चलाए जाने की जरूरत है।
गरीब रथ के मुनाफे से मिली प्रेरणा:
प्रभु का यह निष्कर्ष आश्चर्यजनक नहीं है। सच तो यह है कि पूरी की पूरी थर्ड एसी गरीब रथ भी मुनाफे में चलती है। जबकि उसका किराया दूसरी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के थर्ड एसी के मुकाबले कम है। इसकी वजह यह है कि इसके प्रत्येक कोच में बर्थ की संख्या सामान्य एसी कोच के मुकाबले अधिक होती है। वस्तुत: गरीब रथ चलाए जाने से पहले यह सवाल उठा था कि यदि इसे वातानुकूलित रखा गया तो लागत कैसे निकलेगी? और तब इसका रास्ता शायिकाओं की संख्या बढ़ाकर निकाला गया। हालांकि, इसके लिए शायिकाओं के बीच की जगह में मामूली सी कमी करनी पड़ी।
ज्यादातर लोगों को शायद पता नहीं होगा कि गरीब रथ की परिकल्पना कैसे की गई थी। दरअसल इसका आइडिया उन लोगों के लिए एक नई श्रेणी बनाने को लेकर सामने आया था, जो स्लीपर में चलने में दिक्कत महसूस करते हैं और थर्ड एसी में चलने की जिनकी हैसियत नहीं। आज गरीब रथ की गिनती सबसे ज्यादा लोकप्रिय ट्रेनों में की जाती है। यह अलग बात है कि इसे ज्यादा बढ़ावा नहीं मिला।नई दिल्ली, प्रेट्र : रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे में निजी कंपनियों की भागीदारी सुगम बनाने के लिए विवाद निवारण तंत्र गठित करने के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
रेल बजट पर उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से बात करते हुए प्रभु ने रविवार को कहा कि निजी कंपनियां यदि यहां आना चाहती हैं, तो उन्हें नियम-कायदों में निश्चित रूप से स्पष्ट होना चाहिए। मुङो लगता है कि निजी कंपनियों के आने से विवाद तो होंगे ही। उन्होंने कहा कि किसी की शादी होती है, तो उस समय कोई तलाक लेने के बारे में नहीं सोचता है। इसके बावजूद यदि भविष्य में कोई पक्ष अलग होना ही चाहता है, तो इसके लिए एक व्यवस्थित प्रणाली होनी चाहिए। रेल मंत्री ने कहा कि इसी तरह रेलवे में भी एक विवाद निवारण तंत्र होना चाहिए, जिसके जरिये आपसी मामलों को सुलझाया जा सके। इससे संबंधित प्रस्ताव पर विचार करने के लिए मैं पूरी तरह तैयार हूं।
रेलवे में ज्यादा से ज्यादा निजी कंपनियों की भागीदारी के लिए हमें हर संभव उपायों की तलाश करनी होगी। हितों का टकराव सिर्फ तभी होता है, जब नीति बनाने और उसके कार्यान्वयन का जिम्मा एक ही आदमी के पास रहता है। सरकार ने रेल को मुसीबतों से निकालने के लिए पांच सालों में विभिन्न उपायों से 8.5 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। रेल मंत्री ने हालांकि, रेलवे के निजीकरण की संभावना से एक बार फिर इंकार किया है।