भाषा विवादः सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाए जाने का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट ने सरकार के आदेश पर तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
नई दिल्ली। केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाए जाने का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सरकार के आदेश को चुनौती है। कोर्ट ने याचिका पर सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हालांकि, कोर्ट ने सरकार के आदेश पर तत्काल रोक लगाने से इंकार कर दिया है। 28 नवंबर को इस मामले पर फिर सुनवाई होगी।
वहीं, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने एक कार्यक्रम में कहा कि जानबूझकर इस मुद्दे को विवादित बनाया जा रहा है। मालूम हो कि मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रलय ने केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन भाषा की जगह संस्कृत पढ़ाने का फैसला लिया है। सरकार ने इस बावत गत 27 नवंबर को केंद्रीय विद्यालय संगठन के साथ हुई चर्चा के बाद 10 नवंबर को आदेश भी जारी कर दिया। इसके खिलाफ दाखिल याचिका में यह आदेश निरस्त करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया कि फैसले से देश भर के 500 केंद्रीय विद्यालय और उनमें पढ़ने वाले करीब 70 हजार बच्चे प्रभावित होंगे। शुक्रवार को न्यायमूर्ति एआर दवे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील रीना सिंह की दलीलें सुनने के बाद केंद्र सरकार व केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर 28 नवंबर तक जवाब मांगा है।
रीना सिंह ने सरकारी आदेश पर तत्काल रोक लगाने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि बीच सत्र में जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाने के फैसले से बच्चों को भारी परेशानी होगी। वैसे भी भाषा तय करने का निर्णय छात्रों और उनके अभिभावकों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। बकौल रीना सिंह, वर्तमान सत्र लगभग समाप्त होने वाला है मात्र दो महीने का समय बचा है क्योंकि स्कूलों में जाड़े की छुट्टियां होने वाली हैं। इतने कम समय में नया विषय पढ़ना बच्चों के लिए मुश्किल होगा। अदालत ने इस आदेश पर तत्काल रोक लगाने की मांग ठुकराते हुए कहा कि वह दूसरे पक्ष को सुनने के बाद ही कोई आदेश देगी।
कोर्ट ने इसके बाद मुख्य याचिका और रोक लगाने की मांग वाली अर्जी दोनों पर सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने मामले को महत्वपूर्ण मानते हुए अगली सुनवाई के लिए 28 नवंबर की तिथि तय कर दी। याचिका में सरकार के आदेश का विरोध करते हुए कहा गया है कि जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाने का फैसला बिना विचार-विमर्श के ही लागू कर दिया गया।