इटैलियन मरीन की रिहाई के लिए केंद्र पूरी तरह से जिम्मेदार : पी विजयन
केरल में भारतीय मछुआरों की हत्या के दूसरे आरोपी जिरोन को इटली जाने की अनुमति मिल गयी है। हालांकि इस मामले में इटली के राजदूत को ताजा हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में देना होगा।
नई दिल्ली (पीटीआई)। भारतीय मछुआरों के कत्ल के आरोपी दूसरे इटैलियन मरीन जिरोन इटली जाने की इजाजत मिल गयी है। भारत सरकार मे मानवीय आधार पर सुप्रीम कोर्ट में जिरोन जमानत का विरोध नहीं किया। अदालत ने जिरोन को कुछ शर्तों के साथ इटली जाने की अनुमति दे दी है। इटैलियन मरीन की रिहाई पर केरल के सीएम पी विजयन ने कहा कि इस मामले में शुरू से केंद्र सरकार का रवैया ढीला रहा है। वो केंद्र सरकार के दलील से खुश नहीं हैं। आरोपी इटैलियन मरीन के खिलाफ सुनवाई भारत में ही होनी चाहिए।
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क्या है शर्त ?
-अदालत ने आदेश में कहा है कि जिरोन को अपने पासपोर्ट को इटली में जमा करना होगा। इसके अलावा उसे हर महीने इटली के थाने में हाजिरी लगानी होगी और उसकी रिपोर्ट भारतीय उच्चायोग में देनी होगी।
- इसके अलावा अगर अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल का फैसला भारत के हक में होता है तो जिरोन को वापस भारत आना होगा। इसके लिए इटली के राजदूत को ताजा हलफनामा अदालत में जमा करना होगा।
इटैलियन आरोपी जिरोन ने ज़मानत की शर्तों में रियायत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के एक ट्रिब्यूनल ने भारत में पकड़े गए इटैलियन नौसैनिक को मुक़दमे की कार्यवाही पूरी होने तक कुछ शर्तों के साथ स्वदेश भेजे जाने का आदेश दिया था।
क्या था मामला ?
दो इटैलियन मरीन्स पर 2012 में केरल के तट से परे दो भारतीय मछुआरों पर गोली चलाने और उनकी हत्या कर देने का आरोप लगा था। मैसिमिलियानो लाटोर और सल्वाटोर जिरोन नाम के दो इटैलियन नौसेनिकों को 2012 में ही हत्या के आरोप में ग़िरफ़्तार किया गया था। हालांकि इन नौसैनिकों का कहना था कि उन्होंने दो भारतीय मछुआरों वैलेंटीन और अजेश बिंकी को समुद्री डाकू समझ कर गोली चलाई थी। इस मामले में एक मरीन मैसिमिलियानो लाटोर को स्वास्थ्य कारणों से पहले ही इटली भेजा जा चुका है। लेकिन भारत ने दूसरे नौसैनिक को भेजने से इनकार कर दिया था। इस मामले को लेकर इटली और भारत के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। इटली का कहना है कि ये घटना अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में हुई थी। इसलिए भारत को उनपर मुक़दमा चलाने का क़ानूनी अधिकार नहीं है। जबकि भारत इस दावे को ग़लत बताते हुए ख़ारिज करता है।
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