फायरिंग में मरने वाला खानदान का तीसरा सदस्य था सुहेल
नारबल में गत शनिवार को भारत विरोधी हिंसक भीड़ पर काबू पाने के दौरान की गई पुलिस फायरिंग में मारा गया नाबालिग सुहेल सोफी अपने खानदान का तीसरा ऐसा सदस्य था, जो बीते छह सालों के दौरान राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों की फायरिंग में मारे गए। यह खुलासा खुद
श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। नारबल में गत शनिवार को भारत विरोधी हिंसक भीड़ पर काबू पाने के दौरान की गई पुलिस फायरिंग में मारा गया नाबालिग सुहेल सोफी अपने खानदान का तीसरा ऐसा सदस्य था, जो बीते छह सालों के दौरान राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों की फायरिंग में मारे गए। यह खुलासा खुद सुहेल के पिता अब्दुल अहद सोफी ने किया। नौवीं कक्षा के छात्र सुहेल की मौत के सिलसिले में दो पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
दिवंगत सुहेल के पिता ने कहा कि हमारे परिवार का एक सदस्य रफीक अहमद वर्ष 2008 में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान सुरक्षाबलों की फायरिंग में मारा गया था। उसके दो साल बाद वर्ष 2010 में जब कश्मीर में 'गो इंडिया गो' की मुहिम के चलते रोज हड़ताल हो रही थी तो हमारे परिवार का दूसरा सदस्य मुहम्मद उमर सुरक्षाबलों की गोली से मारा गया।
अब्दुल सोफी ने कहा कि पता नहीं सुरक्षाबलों को हमारे परिवार से क्या दुश्मनी है। सुहेल चार बहनों का इकलौता भाई और मेरी आखिरी उम्मीद था। शनिवार की सुबह वह यह जानने घर से बाहर निकला था कि स्कूल लगेगा या नहीं।
उन्होंने आरोप लगाया कि नारबल चौक में जब नारेबाजी हो रही थी तो पुलिस चौकी प्रभारी एएसआई मंजूर काला ने मेरे बेटे को सबके सामने पकड़ा था। उसने उसे थप्पड़ मारा और फिर उसे भगाते हुए नजदीक से गोली मार दी गई। कांस्टेबल जावेद अहमद को नहीं मंजूर को सजा मिलनी चाहिए। वह अक्सर सुहेल को तंग करता था।
सुहेल की मां फिरदौसा ने कहा कि पुलिसवालों ने मेरी गोद उजाड़ दी। मैं उसे नाश्ता खिलाने और स्कूल की वर्दी पहनाने का ही इंतजार करती रह गई। पुलिस वाले चाहते तो उसकी टांग में गोली मार देते।