बिहार में अकेले लड़ेगी सपा, टूट गया महागठबंधन
बिहार में चुनाव का एलान होने से पहले ही लालू-नीतीश के साथ कांग्रेस और सपा के महागठबंधन में फूट पड़ गई है। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने अपमानित महसूस करते हुए गुरुवार को गठबंधन से अलग होने तथा अकेले दम पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी।
लखनऊ/ नई दिल्ली [एजेंसी]। बिहार में चुनाव का एलान होने से पहले ही लालू-नीतीश के साथ कांग्रेस और सपा के महागठबंधन में फूट पड़ गई है। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने अपमानित महसूस करते हुए गुरुवार को गठबंधन से अलग होने तथा अकेले दम पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी। यह फैसला सपा के संसदीय बोर्ड ने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह की मौजूदगी में लिया। हालांकि जदयू अध्यक्ष शरद यादव देर शाम मुलायम को मनाने उनके घर पहुंचे। बाद में दावा किया कि महागठबंधन बरकरार है। लेकिन मुलायम की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है।
इससे पहले दिन में सपा के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव ने गठबंधन से अलग होने का एलान करते हुए लखनऊ में कहा कि गठबंधन की बड़ी पार्टियों ने सीट बंटवारे की घोषणा से पहले सपा से बात भी नहीं की, जिससे पार्टी अपमानित महसूस करती है। यह गठबंधन धर्म नहीं है।
राम गोपाल यादव ने कहा कि बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से पांच सीटें भी सपा को दिए जाने की जानकारी मीडिया से मिली थी। इससे पार्टी खुश नहीं थी। उन्होंने दावा किया कि अकेले दम पर भी चुनाव लड़कर सपा पांच से ज्यादा सीटें जीतेगी। संकेत हैं कि सपा बिहार में 150 उम्मीदवार उतार सकती है।
राष्ट्रीय स्तर पर क्या असर
सपा के इस फैसले से राष्ट्रीय स्तर पर जनता परिवार के एकजुट होने की संभावनाओं पर भी बड़ी चोट पड़ी है। इस साल की शुरआत में मुलायम सिंह यादव के ही नेतृत्व में ही जनता परिवार की छह पार्टियों ने एकजुट होने का फैसला किया था और औपचारिकताएं पूरी करने की जिम्मेदारी भी मुलायम पर ही डाली गई थी। मुलायम ने ही लालू-नीतीश को एकसाथ लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जनता परिवार के भविष्य [विलय की संभावनाओं] के बारे में पूछे जाने पर यादव ने कहा कि उस समय भी मैंने कहा था कि हम पार्टी के डेथ वारंट पर दस्तखत नहीं कर सकते हैं। आखिर जनता परिवार कब एक हो पाया है?
महागठबंधन में किसे कितनी सीटें
कुल सीटें-243
जदयू-100
राजद -100
कांग्रेस-40
*राकांपा- 03 [राकांपा भी कम सीटों के कारण गठबंधन छोड़ चुकी है।]
*बाद में लालू प्रसाद ने एकतरफा घोषणा की कि वह सपा को पांच सीटें देंगे।
*पिछले चुनाव में सपा ने 146 उम्मीदवार खड़े किए थे। पार्टी को 0.55 फीसदी वोट मिले थे।
सपा के अलग होने के कारण
1. सीटों के बंटवारे पर सपा से बात नहीं किए जाने से नाराजगी।
2. सपा नेताओं का मानना है कि सिर्फ पांच सीटों पर लडऩे से उप्र की सबसे बड़ी पार्टी की छवि को धक्का लगेगा।
3. सपा के राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की संभावनाओं को कोई फायदा नहीं।
4. पार्टी का बिहार में जनाधार नाम मात्र का है। वैसे में लालू के साथ जाने से छवि को नुकसान का खतरा।
5. उप्र में 2017 में चुनाव होना है। विकास कामों में केंद्र का सहयोग चाहिए। इसलिए मुलायम भाजपा और मोदी से पंगा नहीं लेना चाहते।
अलग होने के खतरे
-परोक्ष तौर पर भाजपा को फायदा पहुंचाने की जन धारणा बन सकती है। जैसा कि ओवैसी के मामले में है।
-सपा कथित सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ाई में खलनायक के रूप में देखी जा सकती है।
सपा की दलील : धर्मनिरपेक्ष वोटों के बंटने का दोष सपा पर नहीं म़$ढा जा सकता है, क्योंकि राजस्थान, मप्र तथा गुजरात में हाल के चुनावों में सीधा मुकाबला होने के बावजूद भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है।