बदनाम गलियों की बदली तस्वीर, सेक्स वर्कर्स ने कहा- जिस्मफरोशी नहीं है बंधन
बदलते जमाने के साथ सेक्स वर्कर्स की सोच में बदलाव आया है। उनका कहना है कि वो इस व्यवसाय में स्वेच्छा से शामिल हैं किसी तरह का दबाव नहीं है।
बेंगलुरु। बदनाम गलियों का जिक्र होते ही तवायफों के उन कोठों की तस्वीर जेहन में उभरती है। जहां जिस्मफरोशी का कारोबार होता है। जिस्मफरोशी के उन अड्डों पर बेबस और लाचार लड़कियां जहां उनके खरीदारों को उनके जिस्म से लेना देना है। जज्बातों से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं। एक दुकानदार और ग्राहक का रिश्ता। और इस रिश्ते को निभाने के लिए मजबूर लड़कियां। लेकिन बदलते समय के साथ कभी मजबूरी की शिकार माने जाने वाली सेक्स वर्कर्स की सोच में बदलाव आया है। बेंगलुरु की सेक्स वर्कर्स का कहना है कि अब वो इस पेशे में स्वेच्छा से हैं इसके पीछे किसी तरह की मजबूरी नहीं है।
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सुनीता( बदला नाम) इसकी ऊम 30 वर्ष है। ये दो बच्चों की मां है। पति की मौत के बाद उसे वेश्यावृत्ति के दलदल में उतार दिया गया। उसने पुलिस की मदद से भागने की कोशिश की लेकिन पुलिसकर्मियों की नजर में वो महज एक वेश्या थी। वो कई सालों तक बुरे अनुभवों से गुजरती रही। लेकिन समय के थपेड़ों का सामना करने के बाद उसने शादी की। सुनीता को दो बच्चे हैं। जो पढ़ाई कर रहे हैं। सुनीता का कहना है कि अब वो सही माएने में आजाद हो गयी है। अब वो स्वेच्छा से इस धंधे में जुड़ी हुई है। और अपने बच्चों को बेहतर सुविधा मुहैया करा रही है।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक शशिकला (बदला नाम) ने कहा कि वो भी स्वेच्छा से इस धंधे में शामिल है। उस पर किसी तरह का दबाव नहीं है। उसके तीन बच्चे हैं जिनमें से दो की शादी हो चुकी है। उसके सभी बच्चे उसके काम के बारे में जानते हैं। शशिकला ने कहा कि उसने अपनी दोनों बहुओं को अपने काम के बारे में बताया। उसने कहा कि वो दर्जी का काम कर सकती है। लेकिन उस व्यवसाय से वो अपनी जरुरतें पूरी नहीं कर सकती है। उसके लिए सम्मान हासिल करना कोई मुद्दा नहीं है। जो लोग उसे जानते हैं उसका सम्मान करते हैं।
सालिडेरिटी फाउंडेशन एनजीओ की शुभा चाको ने बताया कि समाज में आम तौर पर सेक्स वर्कर्स को हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है। समाज उनके बारे में पूर्वाग्रह रखता है। ये सामान्य सोच है कि सेक्स वर्कर्स की लड़के या लड़कियां इसी तरह के व्यवसाय को अपनाएंगी। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। बहुत से सेक्स वर्कर्स के लड़के लड़कियां एमबीए, इंजीनियर और डॉक्टर बनकर बेहतर जगहों पर काम कर रहे हैं।
शुभा चाको ने कहा कि सेक्स वर्कर्स को पब्लिक प्रापर्टी माना जाता है। उनका सम्मान उनकी दहलीज तक ही सीमित होती है। लेकिन समाज को अपने सोच में और बदलाव करने की जरूरत है ताकि घुटन और सिसकियों में जकड़ी हुई सेक्स वर्कर्स आम लड़कियों और औरतों की तरह सम्मान की जिंदगी जी सकें।
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