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करोड़ों रुपये बहाकर भी गंवा दिए समुद्री प्रहरी

नौसेना के पनडुब्बी बेड़े में बीते एक साल के दौरान जो दो बड़े हादसे दर्ज किए गए उनमें कई चिंताजनक समानताएं हैं। आधुनिकीकरण के दावों की चमक-दमक के बीच रूसी मूल की इन पनडुब्बियों में मरम्मत और आधुनिकीकरण के बाद हुए हादसे कई बड़े सवालों को गहराते हैं। विस्फोट

By Edited By: Published: Thu, 27 Feb 2014 01:33 AM (IST)Updated: Thu, 27 Feb 2014 07:48 AM (IST)

नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। नौसेना के पनडुब्बी बेड़े में बीते एक साल के दौरान जो दो बड़े हादसे दर्ज किए गए उनमें कई चिंताजनक समानताएं हैं। आधुनिकीकरण के दावों की चमक-दमक के बीच रूसी मूल की इन पनडुब्बियों में मरम्मत और आधुनिकीकरण के बाद हुए हादसे कई बड़े सवालों को गहराते हैं। विस्फोट और अग्निकांड का शिकार होकर तलहटी में बैठी सिंधुरक्षक अप्रैल 2013 में तथाकथित तौर पर उन्नत होकर लौटी थी। वहीं बुधवार को हादसे का शिकार हुई सिंधुरत्न की मरम्मत 2013 में मुंबई में पूरी हुई थी। ऐसे में अहम सवाल है कि जनता की जेब से निकले करोड़ों रुपये बहाकर संवारे गए इन अहम शस्त्रास्त्रों में मरम्मत के नाम पर हो क्या रहा है?

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इन बेहद संवेदनशील युद्धक जहाजों में मरम्मत के लिए जो कलपुर्जे लगाए जा रहे हैं, उनको लेकर शक और शुबहे की लकीरें उभरती रही है। सिंधुरत्न की मरम्मत करने वाले मुंबई स्थित नौसेना डॉकयार्ड ने जिन कलपुर्जो को लेकर पूर्ण संतोष जताया था उनपर कैग ने दो सप्ताह पहले पेश रिपोर्ट में ही सवाल उठाए थे। कैग ने नौसेना से मुंबई और विशाखापत्तनम डॉकयार्ड द्वारा इस्तेमाल हो रहे कलपुर्जो पर मई 2012 में आंकड़े की विसंगतियां इंगित करते हुए माकूल दस्तावेज मुहैया कराने को कहा था। हालांकि यह कागजात नवंबर 2013 तक कैग को नहीं मिल पाए।

सिंधुरत्न पनडुब्बी हादसे पर नौसेना प्रमुख का इस्तीफा

रूस से 80 के दशक में मिलनी शुरु हुई किलो श्रेणी की इन पनडुब्बियों के रखरखाव तथा मरम्मत में इस्तेमाल हो रहे रूसी कलपुर्जो को लेकर भी गहरे सवाल हैं। नौसैनिक डॉकयार्ड रूसी मूल के कलपुर्जो को लेकर 95 प्रतिशत तक संतोष जताते हैं। हालांकि इसे साबित करने के लिए नौसेना या रक्षा मंत्रालय ने कैग को कोई दस्तावेज ही मुहैया नहीं कराए हैं। इसको लेकर कैग ने भी नौसैनिक युद्धपोत की मरम्मत पर पेश ताजा रिपोर्ट में सवाल उठाए हैं। भारत के लिए रूसी सैन्य साजो-सामान को एक ओर ऊंचे दामों पर खरीदने की मजबूरी हैं। वहीं पूर्व सोवियत संघ से अलग हुए सीआइएस मुल्कों में मौजूद सोवियत छाप साजो-सामान को लेकर गुणवत्ता के मुद्दे हैं। इस तरह की समस्या भारत रूसी मूल के मिग विमानों के रखरखाव को लेकर भी झेलता रहा है।

रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व नौसेना अधिकारी कमोडोर उदय भास्कर के मुताबिक नौसैनिक डॉकयार्ड में कामकाज पर सवाल लाजिमी हैं। इन सरकारी उपक्रमों में भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आते रहे हैं। भास्कर के अनुसार सिंधुरक्षक और सिंधुरत्न के हादसे उच्च रक्षा प्रबंधन पर भी गंभीर सवाल उठाते हैं। ऐसे में नौसेना प्रमुख पद से एडमिरल डीके जोशी का इस्तीफा दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी की लकीर तो तय करता है। लेकिन, नौसेना में पनडुब्बियों की लगातार जारी किल्लत और पुरानी पनडुब्बियों को ही मरम्मत कर चलाने की मजबूरी का जवाब भी खोजा जाना चाहिए।


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