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66ए खत्‍म, फिर भी यह धाराएं लगाएंगी आप पर रोक

धारा 66ए के खत्‍म होने के बाद आप सोशल मीडिया पर खुलकर लिखिए, लेकिन जोखिम को समझते हुए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनलिमिटेड नहीं है, बल्कि अब भी कानून और संविधान के दायरे में है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Wed, 25 Mar 2015 08:49 AM (IST)Updated: Wed, 25 Mar 2015 10:24 AM (IST)
66ए खत्‍म, फिर भी यह धाराएं लगाएंगी आप पर रोक

नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66ए को खत्म कर लोगों को सोशल मीडिया पर लिखने की आजाद तो दे दी, लेकिन अब भी ऐसे कई कानून हैं जो आजादी की राह में रोड़ा बन सकते हैं और लोगों को खुलकर लिखने की आजादी नहीं देंगे।

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इसलिए धारा 66ए के खत्म होने के बाद आप सोशल मीडिया पर खुलकर लिखिए, लेकिन जोखिम को समझते हुए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनलिमिटेड नहीं है, बल्कि अब भी कानून और संविधान के दायरे में है।

अभी भी लागू है यह कानून
आइपीसी की धारा 499 और 500 - ईमेल के माध्यम से ऐसे संदेश भेजना, जिससे मानहानि होती हो, आईपीसी की धारा 499 और 500 के अंतर्गत आता है। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों लग सकता है।

आइपीसी की धारा 153ए - आइपीसी की धारा 153 ए उन लोगों पर लगाई जाती है, जो धर्म, भाषा, नस्ल वगैरह के आधार पर लोगों में नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं। यह धारा सोशल मीडिया पर भी लागू होती है। धारा 153 ए के तहत 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। अगर ये अपराध किसी धार्मिक स्थल पर किया जाए तो 5 साल तक की सजा और जुर्माना भी हो सकता है।

आइपीसी की धारा 124ए - भारतीय दंड विधान संहिता यानी आईपीसी की धारा 124 (ए) के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जो अपने शब्दों, इशारों या किसी भी तरह से सरकार के खिलाफ नफरत या अवमानना फैलाएगा, उसे देशद्रोह का गुनहगार मानते हुए कार्रवाई की जा सकती है। इसके तहत उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है।

आइपीसी की धारा 295ए - धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर लगने वाली धारा 295A भी मौजूद है। इसके अलावा सीआरपीएस 95ए भी मौजूद है।

आइपीसी की धारा 19 (1) ख - इस धारा के तहत भी विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं।

क्या था मामला?
दिल्ली की कानून की एक छात्रा श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि फेसबुक या सोशल मीडिया में किसी पर भी कैसी भी टिप्पणी करने वाले के खिलाफ कोई पुलिस कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, आई.टी. एक्ट की धारा 66ए, 69ए और 80 रद्द होनी चाहिए।

याचिका में कहा गया था कि अगर पुलिस कार्रवाई होगी तो यह लोगों को अपने विचार व्यक्त करने से रोकने वाला कदम है। इसके बाद और कई एनजीओ भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी जिन्होंने आईटी एक्ट की इन धाराओं को रद्द करने की मांग की।

जिसके बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए धारा 66ए को रद्द कर दिया। इससे पहले 16 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था ऐसे मामलों में अगर कोई कार्रवाई करनी हो तो जांच अधिकारी एसपी कि मंजूरी के बाद ही कोई कार्रवाई करेगा।

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