गंगा के लिए अन्न त्यागने वाले बाबा नागनाथ का निधन
लखनऊ। देश की जीवनदायिनी गंगा नदी की स्वच्छता तथा इसके उद्घार के लिए पिछले 14 वर्ष से काम कर रहे बाबा नागनाथ ने शुक्रवार को प्राण त्याग दिया। बाबा नागनाथ बीते छह वर्ष से अन्न का त्याग कर गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए अनशन पर थे। गंगा नदी को बांधों के बंधन से मुक्त कराने को छह वर्ष से अनशनरत बाबा नागनाथ का कल रात रात निधन हो गया। हालत गंभीर होने पर उन्हें दोपहर में ही बीएचयू आइसीयू में भर्ती कराया गया था।
लखनऊ। देश की जीवनदायिनी गंगा नदी की स्वच्छता तथा इसके उद्घार के लिए पिछले 14 वर्ष से काम कर रहे बाबा नागनाथ ने शुक्रवार को प्राण त्याग दिया। बाबा नागनाथ बीते छह वर्ष से अन्न का त्याग कर गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए अनशन पर थे। गंगा नदी को बांधों के बंधन से मुक्त कराने को छह वर्ष से अनशनरत बाबा नागनाथ का कल रात रात निधन हो गया। हालत गंभीर होने पर उन्हें दोपहर में ही बीएचयू आइसीयू में भर्ती कराया गया था।
इलाज के दौरान कल रात 1.45 बजे गंगा मुक्ति की इच्छा सीने में दबाए ही उन्होंने दम तोड़ दिया। आज सुबह दस बजे उनके आवास गायघाट से अंतिम यात्रा निकाली गई। उनकी तपस्थली मणिकर्णिकाघाट पर ही उनकी अंत्येष्टि की गई। छोटे भाई विनोद तिवारी ने मुखाग्नि दी। गंगा प्रेमियों, संत समाज, राजनेताओं समेत काशीवासियों ने उन्हें भावभीनी विदाई दी।
स्वतंत्रता सेनानी पं. रामअवतार ऊर्फ गया प्रसाद तिवारी की चार संतानों में तीसरे बाबा नागनाथ ने एक दशक पहले सामाजिक बंधनों से नाता तोड़ मणिकर्णिकाघाट स्थित महाश्मशाननाथ मंदिर में धुनी रमा ली थी। बाबा की पूजा आराधना के दौरान ही गंगा की दीन दशा को देख उन्होंने 2008 में गुरु पूर्णिमा पर उपवास शुरू किया। उनके समर्थन में 23 दिसंबर 2008 को दो घंटे तक महाश्मशान पर शवदाह भी बंद रहा। अनशन के दौरान शरीर के नसें अकड़ती गईं, हालत बिगडऩे पर कई बार प्रशासन ने उन्हें मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया।
डाक्टरों के बीएचयू व एम्स में इलाज की सलाह को भी उन्होंने दरकिनार कर दिया था। उन्हें मनाने को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव, विहिप नेता अशोक सिंघल, अन्न हजारे, बाबा रामदेव ने कई बार प्रयास किए लेकिन असफल रहे। अभी पिछले ही साल विश्व हिंदू के वरिष्ठ नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने जूस पिलाकर उनका अनशन भी तोड़वाया लेकिन बात नहीं बनी। उनकी मांगों में एक गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा तो मिल गया था लेकिन वह तद्नुरूप सम्मान भी चाहते थे। प्रमुख मांगों में टिहरी से अविलंब गंगा को मुक्त करने, प्रदूषण मुक्त करने व गंगा में गिर रहे नालों के गंदे पानी को रोकना आदि शामिल था।