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लोया मामले पर गंभीरता से कर रहे हें विचार - सुप्रीम कोर्ट

जज लोया की 2014 में संदिग्‍ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया है।

By Pratibha KumariEdited By: Published: Mon, 19 Feb 2018 09:41 AM (IST)Updated: Mon, 19 Feb 2018 04:19 PM (IST)
लोया मामले पर गंभीरता से कर रहे हें विचार - सुप्रीम कोर्ट
लोया मामले पर गंभीरता से कर रहे हें विचार - सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। मुंबई के विशेष सीबीआई जज बीएच लोया की मौत के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे मामले को लेकर बहुत गंभीर हैं। अदालत के बाहर इस मामले में क्या कहा जा रहा है इसकी परवाह किये बगैर वे इसें गंभीर मुद्दे की तरह लेकर विचार कर रहे हैं। इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने मामले पर अपनी बहस पूरी करते हुए कहा कि जज लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने की आकस्मिक दुर्घटना थी और सरकार ने जांच कर ली है उसे मौत के बारे में किसी तरह का कोई संदेह नहीं है।

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उधर केस में बहस के दौरान सोमवार को भी वकीलों में नोकझोक हुई। महाराष्ट्र सरकार ने मामले में बहस पूरी करते हुए मौत पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं और पत्रिका में आये लेख को इरादतन दुर्भावना से प्रेरित बताया। जबकि याचिकार्ताओं के वकील दुष्यंत दवे ने इसका विरोध करते हुए उन पर दबाव बनाये जाने का आरोप लगाया। यही नहीं दवे ने बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआई) की ओर से उन्हें मिसकंडेक्ट के लिए जारी किये गये नोटिस का हवाला दिया। कहा बीसीआई विधायी संस्था है जो कि सरकार के नियंत्रण में है। उनके इस केस में पेश होने पर उन पर दबाव बनाया जा रहा है। हालांकि वकील मुकुल रोहतगी ने दबाव के आरोप का खंडन करते हए कहा कि वे महाराष्ट्र की ओर से पेश हो रहे है और बीसीआई महाराष्ट्र सरकार के नियंत्रण में नहीं है।

हालांकि उन्होंने ये बात कई बार दोहराई कि जज लोया की मौत के सिलसिले में पत्रिका कारवां में गत वर्ष नवंबर में लेख छपना सोची समझी बात थी। उन्होंने कहा कि आखिर तीन साल बाद याचिकाएं क्यों दाखिल हुईं ये भी सोचने वाली बात है। उधर वकीलों पर दबाव बनाये जाने की जब बात चल रही थी तभी महाराष्ट्र के पत्रकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील पल्लव सिसोदिया खड़े हो गए उन्होंने दुष्यंत दवे पर आरोप लगाया कि वे उन पर दबाव बना रहे हैं। सिसोदिया ने कहा कि दवे ने उनके खिलाफ लेख लिखा है जिसमें कहा है कि उन्हें इस केस में नहीं पेश होना चाहिए। इतना ही नहीं दवे ने उनके वकील गुरू से भी ये बात कही। सिसोदिया ने कहा कि क्या ये मामला दबाव बनाने का नहीं है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि दवे बीसीआई के नोटिस के आधार पर दबाव बनाने की शिकायत कर रहे हैं और आप दवे पर दबाव बनाने की शिकायत कर रहे हैं इसमें कोर्ट क्या कह सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने दवे से कहा कि वे बीसीआई के नोटिस के बारे में कोई टिप्पणीं नहीं करेंगे क्योंकि बीसीआई का मसला उनके सामने नहीं है। हालांकि कोर्ट ने दवे से कहा कि वे बिना किसी दबाव के मामले में बहस करें कोर्ट पूरी संजीदगी से सुनवाई कर रहा है और ये उनकी ड्यूटी है। कोर्ट ने कहा कि अगर मामले में संदेह पैदा करने वाले कोई तथ्य समाने आते हैं तो कोर्ट उस बारे में आदेश दे सकता है। इससे पहले दवे ने कोर्ट से कहा कि इस मामले को राजनीति से प्रेरित नहीं कहा जाना चाहिए। एक जज की मौत हुई है इसमें न्यायाधीशों और बार दोनों ही लोगों की संवेदनशीलता शामिल है। उन्होंने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने चिंता जाहिर की थी। इसके अलावा राष्ट्रपति से मामले की जांच की मांग की गई। सिविल सोसाइटी ने सवाल उठाए हैं। ये ऐसा मामला नहीं है जिसे कोर्ट शुरूआती सुनवाई में खारिज कर दे। इस मामले में नियमानुसार सभी दस्तावेजों का आदान प्रदान होना चाहिए। जिन जजों के बयानों पर राज्य सरकार भरोसा कर रही है उनके समर्थन में सरकार को हलफनामा देना चाहिए। मामले में अगली सुनवाई पांच मार्च को होगी।


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