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भुल्लर को नहीं मिली फांसी से माफी

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। बीस साल पहले दिल्ली में बम धमाका कर नौ लोगों को उड़ाने वाले खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकी देविंदर पाल सिंह भुल्लर को फांसी से माफी नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की भुल्लर की मांग ठुकरा दी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने खचाखच भरी अदालत में कहा कि वह राष्ट्रपति के आदेश को गैरकानूनी ठहराने का कोई आधार नहीं दे पाया।

By Edited By: Published: Fri, 12 Apr 2013 10:05 AM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2013 09:34 PM (IST)

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। बीस साल पहले दिल्ली में बम धमाका कर नौ लोगों को उड़ाने वाले खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकी देविंदर पाल सिंह भुल्लर को फांसी से माफी नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने की भुल्लर की मांग ठुकरा दी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने खचाखच भरी अदालत में कहा कि वह राष्ट्रपति के आदेश को गैरकानूनी ठहराने का कोई आधार नहीं दे पाया।

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भुल्लर के मामले में आए इस फैसले का असर 17 अन्य दोषियों के मामलों में पड़ सकता है जो कि भुल्लर की तरह ही दया याचिका के निपटारे में देरी को आधार बनाकर फांसी माफी की अपील के साथ कोर्ट की शरण में हैं। इन 17 दोषियों में पूर्व प्रधानमत्री राजीव गांधी की हत्या के तीन दोषी और चंदन तस्कर वीरप्पन के चार साथी शामिल हैं।

भुल्लर को सितंबर 1993 में दिल्ली में हुए कार बम धमाके में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस धमाके में नौ लोगों की मौत हो गई थी। जबकि तत्कालीन युवा कांग्रेस अध्यक्ष मनिंदर जीत सिंह बिट्टा सहित 17 लोग घायल हुए थे। सुप्रीम कोर्ट तक से फांसी की सजा पर मुहर लगने के बाद भुल्लर ने 14 जनवरी 2003 को राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी। राष्ट्रपति ने 25 मई 2011 को उसकी दया याचिका खारिज कर दी। भुल्लर ने इसमें आठ साल से अधिक समय लगने को आधार बनाते हुए फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील करने की मांग की थी। इसके अलावा भुल्लर के मानसिक रूप से स्वस्थ्य न होने को भी आधार बनाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने भुल्लर की याचिका खारिज करते हुए आतंकवादियों द्वारा निर्दोषों को मारे जाने पर कड़ी टिप्पणियां भी की। कोर्ट ने कहा है कि टाडा और ऐसे गंभीर अपराधों में दोषियों की फांसी देरी के आधार पर उम्रकैद में नहीं बदली जा सकती। ये अपराध उन मामलों से भिन्न होते हैं, जो संपत्ति या निजी दुश्मनी के चलते हत्या करने के होते हैं। आतंकवादियों द्वारा किए जाने वाले अपराधों की गंभीरता इसी से आंकी जा सकती है कि सैकड़ों निर्दोष लोगों और सुरक्षा बलों के जवानों ने अपनी जान गंवाई है। उस समय उनका [आतंकवादी] उद्देश्य अपने राजनैतिक व अन्य विरोधियों को खत्म करना होता है। वे विकृत राजनैतिक व अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बंदूक, बम व अन्य हथियारों का प्रयोग कर बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करते हैं या देश के खिलाफ युद्ध छेड़ते हैं। वे निर्दोषों को मारने से पहले एक सेकेंड भी उनके माता-पिता, पत्नी, बच्चों व अन्य प्रियजनों के बारे में नहीं सोचते। पीड़ितों का परिवार जीवन भर आर्थिक व अन्य परेशानियां झेलता है। बहुत से लोग मानव अधिकारों का हौव्वा दिखाकर निर्दोषों की हत्या और गंभीर अपराधों में लिप्त आतंकवादियों का समर्थन कर रहे हैं। ये बात सही है कि दया याचिका निबटाने में देरी हुई है। लेकिन मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति के फैसले में दखल देने का कोई उचित आधार नजर नहीं आता।

राष्ट्रपति के यहां क्यों हुई देरी

कोर्ट ने माना है कि राजनैतिक और गैर राजनैतिक संगठनों और देश-विदेश की संस्थाओं तथा व्यक्तियों की ओर से भुल्लर की सजा माफी के बारे में सरकार को ज्ञापन भेज कर बनाया गया दबाव दया याचिका निपटाने में हुई देरी का एक कारण हो सकता है। हालांकि कोर्ट ने साफ कहा है कि जो काम मई 2011 [भुल्लर की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज की] में हुआ वह 2005 में भी हो सकता था और इससे बेवजह उठे विवाद नहीं उठते। आरटीआइ के जरिये पता चलता है कि इस दौरान राष्ट्रपति के यहां कई दया याचिकाएं लंबित थीं, इसी कारण कयास लगाए जाते रहे। गृह मंत्रालय ने भी दया याचिका जल्दी निबटाने के लिए राष्ट्रपति सचिवालय को कोई रिमाइंडर नहीं भेजा। लेकिन फिर भी दया याचिका निबटाने में हुई देरी, राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा को न्यायोचित नहीं बनाती।

परत दर परत

11 सितंबर 1993 : दिल्ली में हुए बम विस्फोट में नौ की मौत, युवा कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिट्टा समेत 25 लोग जख्मी। मामले में खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के आतंकी देविंदर पाल सिंह भुल्लर का नाम सामने आया।

दिसंबर 1994 : भुल्लर ने जर्मनी में राजनीतिक शरण मांगी

जनवरी 1995 : जर्मनी ने भुल्लर की याचिका को ठुकराते हुए उसे भारत को सौंप दिया।

2000 : विस्फोट मामले में मुकदमा शुरू हुआ

अगस्त 2001 : भुल्लर को दोषी मानते हुए ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई

26 मार्च 2002 : सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा

17 दिसंबर 2002 : मामले की समीक्षा याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया

14 जनवरी 2003 : राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका

12 मार्च 2003 : शीर्ष अदालत ने भुल्लर की पुनर्विचार याचिका खारिज की

25 मई 2011 : तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने दया याचिका खारिज की। इसके बाद दया याचिका में आठ वर्ष से अधिक समय लगने का हवाला देते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की गुहार लगाई।

19 अप्रैल 2012 : याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित कर लिया

12 अप्रैल 2013 : सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की

बिंट्टा के हमले से कांग्रेस की बोलती बंद

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। आतंकवादी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की याचिका खारिज होने के बाद कांग्रेसी नेता मनिंदरजीत सिंह बिंट्टा ने अपनी ही पार्टी पर जोरदार हमलों की बौछार कर उसे परेशानी में डाल दिया। बिंट्टा ने भुल्लर के बहाने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर आतंकवादियों का मददगार होने का आरोप जड़ दिया। लगातार सरगर्म होते जा रहे इस सियासी माहौल में बिंट्टा के आरोपों ने कांग्रेस को खासा असहज कर दिया है और उसकी बोलती बंद हो गई है।

बिंट्टा ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, अंबिका सोनी व अहमद पटेल सरीखे नेताओं को भी अपने गुस्से में लपेट लिया है। 1993 में हुए जिस आतंकी हमले में भुल्लर को फांसी की सजा सुनाई गई है, वह बिंट्टा पर ही हुआ था। सुप्रीम कोर्ट में भुल्लर की याचिका खारिज होने के फैसले से खुश और बेहद भावुक बिंट्टा कांग्रेस के नेताओं पर भुल्लर को बचाने का आरोप लगाते हुए फट पड़े। युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और आतंकवाद विरोधी मोर्चा के अध्यक्ष बिंट्टा ने दोटूक कहा कि शीला दीक्षित सरकार ने भुल्लर को बचाया है। रोते हुए बिंट्टा ने कांग्रेस नेताओं को धोखेबाज बताया और कहा कि वे आतंकवादियों के मददगार हैं। इस कड़ी में बिंट्टा ने पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी का नाम लिया और कहा कि उन्होंने मुझे अफजल गुरु मामले में चुप रहने को कहा था। इसी तरह कपिल सिब्बल ने आतंकवादी भुल्लर को बचाने के लिए उसका मुकदमा लड़ा था।

इतना ही नहीं, उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात न होने देने के लिए उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर भी भड़ास निकाली। बिंट्टा ने खुद को आत्मा से कांग्रेसी करार देते हुए कहा कि पार्टी के वह समर्पित कार्यकर्ता हैं। उसके लिए उनका तन-मन सब न्यौछावर है, लेकिन पार्टी के नेता जो कर रहे हैं, वह बेहद आहत करने वाला है।

बिंट्टा के आरोपों से कांग्रेस सकते में है। भुल्लर के खिलाफ वह खुद को बेहद सक्रिय दिखा नहीं सकती। खास तौर से ऐसे मामले में जब सिख दंगों की पुरानी फाइल फिर खुल गई है। वहीं, आतंकवाद के खिलाफ कमजोर होने का आरोप भाजपा ले उड़ेगी। इसीलिए, कांग्रेस की फिलहाल बोलती बंद है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि 'बिंट्टा क्या आरोप लगाते हैं, कुछ नहीं बोलना। पार्टी सिद्धांतों पर चलती है। हम अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं। जरूरी नहीं कि हर आरोप का जवाब दिया जाए।'

जल्द निबटाई जाएं दया याचिकाएं

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार व राष्ट्रपति से भविष्य में दया याचिकाएं जल्दी निबटाने की अपील की है। कोर्ट ने कहा है कि वे उम्मीद करते हैं और उन्हें विश्वास है कि भविष्य में ये याचिकाएं बिना किसी देरी के निपटाई जाएंगी।

कोर्ट ने दया याचिकाओं के निपटारे पर सरकार द्वारा पेश आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि इन्हें देखने से लगता है कि सरकार और राष्ट्रपति सचिवालय ने दया याचिकाओं को उतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितनी जरूरत थी। आंकड़ों के मुताबिक 1950 से 2009 के बीच 300 से ज्यादा दया याचिकाएं दाखिल हुईं, जिनमें 214 राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लीं और मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी, जबकि 69 खारिज कर दी थी। एक याचिका पर दिया गया फैसला अस्पष्ट है।

इन पर पड़ेगा फैसले का असर

- गुरमीत सिंह (उत्तर प्रदेश): 1986 में एक ही परिवार के 13 सदस्यों की हत्या का दोषी।

- जफर अली (उत्तर प्रदेश): 2002 में पत्नी और पांच बेटियों की हत्या कर दी थी।

- सुरेश और रामजी (उत्तर प्रदेश): वाराणसी में रहने वाले सुरेश ने साले रामजी के साथ 1996 में अपने छोटे भाई समेत परिवार के पांच सदस्यों का कत्ल कर दिया था।

- सुंदर सिंह (उत्तराखंड) : 1989 में एक परिवार के छह सदस्यों की पेट्रोल डालकर आग लगाकर हत्या करने का दोषी।

- सोनिया और संजीव (हरियाणा) : पूर्व विधायक की बेटी सोनिया और उसके पति संजीव ने 2001 में हिसार में जहरीला पदार्थ देकर अपने परिवार के आठ लोगों की जान ले ली थी।

- धर्मपाल (हरियाणा): 1993 में दुष्कर्म के दोषी धर्मपाल ने पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद पीड़ित लड़की के परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी।

- बलवंत सिंह राजोआना (पंजाब) : 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या का दोषी

- मुरुगन, सांथन और अरिवु (तमिलनाडु): 1991 में राजीव गांधी की हत्या के दोषी

- प्रवीण कुमार (कर्नाटक): 1993 में परिवार के चार सदस्यों की हत्या का दोषी

- सिमोन, ज्ञान प्रकाश, मदैया और बिलावेंद्र (कर्नाटक) : चंदन तस्कर वीरप्पन के ये सहयोगी 1993 में 22 पुलिसकर्मियों की हत्या के दोषी

स्वस्थ होने पर ही भुल्लर को होगी फांसी

नई दिल्ली। दिल्ली में हुए बम धमाके के दोषी आतंकी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर को तब तक फांसी नहीं दी जा सकती, जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ न हो जाए। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद शुक्रवार को यह बात कही तिहाड़ जेल के प्रवक्ता सुनील गुप्ता ने। भुल्लर का पिछले ढाई साल से एक मानसिक चिकित्सालय में इलाज चल रहा है। प्रवक्ता के अनुसार भारतीय कानून के मुताबिक सजाप्राप्त उसी शख्स को फांसी दी जा सकती है जो शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हो। इसी आधार पर भुल्लर को स्वस्थ होने तक फांसी की सजा से राहत मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भुल्लर को मिले मृत्युदंड में राहत की अर्जी को खारिज कर दिया है। उल्लेखनीय है भुल्लर के वकील केटीएस तुलसी मानसिक अस्वस्थता के चलते अपने मुवक्विल को फांसी ने दिए जाने की मांग कर चुके हैं

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