नासिक कुंभ में छिन सकती है सच्चिदानंद की पदवी
बीयर बार और डिस्को संचालक सचिन दत्ता उर्फ स्वामी सच्चिदानंद की महामंडलेश्वर की पदवी शायद चंद दिनों की ही रहे। संत समाज में बड़े विवाद का सबब बने सच्चिदानंद की पदवी छिनने की पटकथा तैयार हो चुकी है।
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद। बीयर बार और डिस्को संचालक सचिन दत्ता उर्फ स्वामी सच्चिदानंद की महामंडलेश्वर की पदवी शायद चंद दिनों की ही रहे। संत समाज में बड़े विवाद का सबब बने सच्चिदानंद की पदवी छिनने की पटकथा तैयार हो चुकी है। नासिक कुंभ में अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाकर उन्हें महामंडलेश्र्वर पद से हटाने का एलान किया जा सकता है। वह साधारण संत के रूप में निरंजनी अखाड़ा से जुड़े रहेंगे या नहीं उसका निर्णय बाद में होगा। भविष्य में किसी को आनन-फानन महामंडलेश्र्वर जैसा महत्वपूर्ण पद न दिया जाए, उसका खाका भी नासिक में ही तैयार होगा।
प्रयाग में गुरु पूर्णिमा पर (31 जुलाई को) मठ बाघंबरी गद्दी में भव्यता से परिपूर्ण महामंडलेश्वर पदवी समारोह सनातन मतावलंबियों के साथ-साथ संत समाज में बड़े उठापटक का सबब बना है। डिस्को व बीयर बार संचालक सचिन दत्ता यहां निरंजनी अखाड़ा का महामंडलेश्र्वर बनाए गए थे। अतीत की बात दैनिक जागरण में सामने आते ही सब कुछ बदल गया। देश दुनिया में उनका अतीत सुर्खी बना तो जो उनके साथ थे, दूर होने लगे।
दो हेलीकाप्टरों से पुष्पवर्षा के बीच सच्चिदानंद को अहम पद मिला था। मंत्री शिवपाल यादव व ओम प्रकाश सिंह भी इन पलों के गवाह बने थे। अब सचिन को महामंडलेश्र्वर बनाने वाले महंत नरेंद्र गिरि संदेह के घेरे में हैं। निरंजनी अखाड़ा के प्रमुख महंतों ने भी उनसे नाराजगी जता दी है। विवाद का पटाक्षेप करने की दिशा में सच्चिदानंद के नासिक कुंभ में प्रवेश तथा किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
जानकारों का कहना है कि अब उन्हें पदमुक्त करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। 30 अगस्त को नासिक कुंभ में प्रमुख संतों की बैठक बुलाकर सच्चिदानंद को पदमुक्त करने की विधिवत घोषणा की जाएगी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री स्वामी हरि गिरि ने बताया कि संन्यास त्याग का प्रतीक है, उपभोग का नहीं। अर्से तक कड़ी तपस्या के बाद ही महामंडलेश्वर जैसा पद दिया जाता है। उन्होंने माना कि सच्चिदानंद के मामले में जल्दबाजी हुई है, इसे सुधारा जाएगा। आगे ऐसी गलती न हो उसका भी ख्याल रखा जाएगा। काशी सुमेरुपीठाधीश्र्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती और प्रयाग पीठाधीश्वर जगद्गुरु ओंकारानंद सरस्वती भी इसी तरह का विचार रखते हैं।