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जब 100 दिनों में 8 लाख लोगों को उतार दिया गया मौत के घाट, इतिहास में दर्ज है ये भीषण नरसंहार

रवांडा के इतिहास में अप्रैल का माह उन जख्‍मों को ताजा कर जाता है जो वहां के हुतू समुदाय को 1994 में मिले थे। इसको रवांडा नरसंहार कहा जाता है। ये दुनिया के इतिहास में दर्ज भीषण नरसंहारों में से एक है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 05:09 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 05:09 PM (IST)
जब 100 दिनों में 8 लाख लोगों को उतार दिया गया मौत के घाट, इतिहास में दर्ज है ये भीषण नरसंहार
आज भी उस खौफनाक मंजर को याद कर डरते हैं लोग

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। दुनिया के इतिहास में दर्ज भयानक और रूह को हिला देने वाले नरसंहारों में शामिल है रवांडा नरसंहार। इस नरसंहार में महज सौ दिनों के अंदर 8 लाख नागरिकों को मार दिया गया था। इसके जख्‍म उनके परिजनों के दिलों में आज भी जस के तस बने हुए हैं। उन दिनों की यादें आज भी उन्‍हें सोने नहीं देती हैं और आज भी वो उस पल को याद कर सिहर उठते हैं। ये खौफनाक साल 1994 था। मारे गए अधिकतर लोगों में रवांडा के अल्‍पसंख्‍यक तुत्‍सी समुदाय से ताल्‍लुक रखते थे। इसके अलावा कई राजनीतिक हस्तियां भी इस नरसंहार की भेंट चढ़ गई थीं। इसके अलावा इनसे जुड़ी राजनीतिक हस्तियों को भी बेहद निर्मम तरीके से हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया गया।

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गौरतलब है कि रवांडा में करीब 85 फीसद नागरिक हुतू समुदाय के हैं। लेकिन यहां पर बोलबाला वर्षों से तुत्‍सी समुदाय का ही रहा है। ये समुदाय यहां की सत्‍ता से जुड़ा रहा है। यही वजह थी कि इस समुदाय के प्रति लोगों में और सत्‍ता की चाहत रखने वालों में गुस्‍सा चरम पर था। आखिर में वो इसमें कामयाब भी हुए। जब इस समुदाय के हाथों से स त्‍ता छिन गई तो बड़ी संख्‍या में इस समुदाय के लोगों ने किसी बुरी आशंका के चलते पड़ोसी देशों में शरण ले ली थी। 1990 के दशक में दोनों समुदायों की दुश्‍मनी ने यहां पर संघर्ष की नई और खौफनाक कहानी को जन्‍म दिया।

बावजूद इसके 1993 में दोनों समुदायों के बीच संघर्ष विराम को लेकर समझौता हुआ। लेकिन बात यहीं पर खत्‍म नहीं हुई। 6 अप्रैल 1994 को तत्कालीन राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति केपरियल नतारयामिरा एक विमान में सवार हुए। ये दोनों ही हुतू समुदाय के थे। लेकिन इस विमान को हवा में मार गिराया गया। इस घटना में विमान में सवार सभी लोग मारे गए। इस घटना के अगले दिन से ही रवांडा में नरसंहार की शुरुआत हुई थी। इस घटना के लिए दोनों समुदाय एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं।

कहा जाता है कि चरमपंथियों ने नरसंहार में मारे जाने वाले लोगों की पूरी लिस्‍ट सरकार को दी थी, जिसको बाद में सरकार की मंजूरी मिली थी। इसके बाद हुतू समुदाय ने एक एक कर तुत्‍सी समुदाय के लोगों को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इतना ही नहीं लिस्‍ट में शामिल उस व्‍यक्ति के परिजनों को भी इसमें नहीं बख्‍शा गया। चरमपंथियों ने इसके लिए हर किसी का आईडी भी देखा, जिसमें उनकी जनजाति और समुदाय का जिक्र होता था। हजारों की संख्‍या में महिलाओं का अपहरण कर उनके साथ बदसलूकी की गई और बाद में उन्‍हें यातनाएं देकर मौत के घाट उतार दिया गया।

राजनीतिक पार्टी एमआरएनडी की युवा शाखा इंतेराहाम्वे ने इसमें बढ़चढ़कर हिस्‍सा लिया था। इस संगठन ने चरमपंथियों को इस नरसंहार के लिए हथियार और पैसा दोनों ही चीजें मुहैया करवाई थीं। हूतू चरमपंथियों ने आरटीएलएम रेडियो स्टेशन पर तुत्‍सी समुदाय के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया। रेडियो पर ऐलान किया गया कि तुत्‍सी समुदाय को पूरी तरह से साफ किया जाए। इस एलान में तुत्‍सी समुदाय को तिलचट्टे बताया गया। रेडियो से उन लोगों के नामों की घोषणा भी की गई जिनको मारा जाना था। जिन्‍होंने तुत्‍सी समुदाय के किसी व्‍यक्ति को शरण दी उसको भी मार दिया गया। ये नरसंहार पूरे 100 दिनों में बादस्‍तूर जारी रहा और इसमें 8 लाख लोग मारे गए थे।

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