आरटीआई: भ्रष्टाचार की काट आपके हाथ, जाने...
2005 में आम नागरिकों को ऐसा हथियार मिला, जिसकी हमें काफी जरूरत थी। राइट टू इंफॉर्मेशन (आरटीआई) एक्ट के लागू हो जाने से आम जनता को हर वो चीज जानने का अधिकार मिल गया है, जिसका संबंध उसकी जिंदगी से है। सरकारी विभागों से भ्रष्टाचार का सफाया करने का भी
2005 में आम नागरिकों को ऐसा हथियार मिला, जिसकी हमें काफी जरूरत थी। राइट टू इंफॉर्मेशन (आरटीआई) एक्ट के लागू हो जाने से आम जनता को हर वो चीज जानने का अधिकार मिल गया है, जिसका संबंध उसकी जिंदगी से है। सरकारी विभागों से भ्रष्टाचार का सफाया करने का भी यह अचूक हथियार है। हालांकि लोग अब भी इसके इस्तेमाल और अहमियत के बारे में ज्यादा नहीं जानते। 66वें गणतंत्र दिवस के मौके पर हम आपको इस नवीन मौलिक अधिकार से जुड़े हर अहम पहलू से रू-ब-रू करवा रहे हैं।
आपको ताकत देता है यह हथियार
'सूचना का अधिकार' अधिनियम 2005 के तहत भरतीय कानून हमें सूचना का अधिकार देता है। इस अधिनियम के अनुसार, ऐसी जानकारी या सूचना जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यों को देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए अब अगर आपके स्कूल के टीचर हमेशा गैर-हाजिर रहते हों, आपके आसपास की सड़कें खराब हालत में हों, सरकारी अस्पतालों में मशीन खराब होने के नाम पर जांच न हो, हेल्थ सेंटर्स में डॉक्टर या दवाइयां न हों, अधिकारी काम के नाम पर रिश्वत मांगें या फिर राशन की दुकान पर राशन ही न मिले तो आप सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत ऐसी सूचनाएं पा सकते हैं। यह अधिकार आपको और ताकतवर बनाता है।
क्या है आरटीआई?
सरकारी कार्यप्रणाली में खुलापन और पारदर्शिता लाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लाया गया है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत बनाने, भ्रष्टाचार हटाने, जनता को अधिकारों से लैस बनाने और राष्ट्र के विकास में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हुआ है।
क्या हैं अधिकार?
* हर पब्लिक अथॉरिटी में एक या अधिक अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी के रूप में नियुक्त करना जरूरी है। आम नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है।
* इस अधिनियम में राइट टू इंफॉर्मेशन सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही मिला है। इसमें निगम, यूनियन, कंपनी वगैरह को सूचना देने का प्रावधान नहीं है, क्योंकि ये नागरिकों की परिभाषा में नहीं आते।
* अगर किसी निगम, यूनियन, कंपनी या एनजीओ का कर्मचारी या अधिकारी आरटीआई दाखिल करता है तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते उसने सूचना अपने नाम से मांगी हो, निगम या यूनियन के नाम पर नहीं।
कैसी जानकारी या सूचना?
* जनता को किसी पब्लिक अथॉरिटी से ऐसी सूचना मांगने का अधिकार है जो उस अथॉरिटी के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में है। इस अधिकार में उस अथॉरिटी के पास या नियंत्रण में मौजूद कृति, दस्तावेज या रिकॉर्ड, रिकॉर्डों या दस्तावेजों के नोट्स, प्रमाणित कॉपी और दस्तावेजों के सर्टिफाइड नमूने लेना शामिल है।
* नागरिकों को डिस्क, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी और इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंटआउट के रूप में सूचना मांगने का अधिकार है। शर्त यह है कि मांगी गई सूचना उसमें पहले से मौजूद हो।
* आवेदक को सूचना आम तौर पर उसी रूप में मिलनी चाहिए जिसमें वह मांगता है। अगर कोई विशेष सूचना दिए जाने से पब्लिक अथॉरिटी के संसाधनों का गलत इस्तेमाल होने की आशंका हो या इससे रिकॉर्डों के परीक्षण में किसी नुकसान की आशंका होती है तो सूचना देने से मना किया जा सकता है।
सिविक एजेंसियों को बनाएं जवाबदेह
* अक्सर यह देखने में आता है कि तमाम सिविक एजेंसियां जैसे केडीए, नगर निगम, परिवहन विभाग से जनता को ढेरों शिकायतें रहती हैं कि उनके लेटर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में आप अपनी शिकायत के कुछ समय बाद सूचना के अधिकार के तहत संबंधित विभाग से अपने लेटर पर हुई कार्रवाई की सिलसिलेवार जानकारी ले सकते हैं।
* आप किसी भी पब्लिक अथॉरिटी जैसे केंद्र या राज्य सरकार के विभागों, पंचायती राज संस्थाओं, न्यायालयों, संसद, राज्य विधायिका और दूसरे संगठनों, गैरसरकारी संगठनों सहित ऐसे सभी विभाग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य अथवा केंद्र सरकार द्वारा स्थापित संघटित, अधिकृत, नियंत्रित अथवा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित हैं, से जानकारियां मांग सकते हैं।
* आप किसी प्राइवेट स्कूल, टेलीफोन कंपनी या बिजली कंपनी आदि से जुड़ी जानकारी पाने के लिए संबंधित विभाग से सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दे सकते हैं।
कैसे भरें आरटीआई ?
* सूचना पाने के लिए कोई तय प्रोफार्मा नहीं है। सादे कागज पर हाथ से लिखकर या टाइप कराकर 10 रुपये की निर्धारित शुल्क/फीस के साथ अपना आवेदन संबंधित सूचना अधिकारी के पास किसी भी रूप में [खुद या डाक द्वारा] जमा कर सकते हैं। किसी खास तरह से आवेदन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
* आप हिंदी, अंग्रेजी या किसी भी स्थानीय भाषा में आवेदन दे सकते हैं।
* आवेदन फीस नकद, डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर से दी जा सकती है।
* डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर संबंधित विभाग (पब्लिक अथॉरिटी) के अकाउंट ऑफिसर के नाम पर होना चाहिए।
* डिमांड ड्राफ्ट के पीछे और पोस्टल ऑर्डर में दी गई जगह पर अपना नाम और पता जरूर लिखें।
* आरटीआई एक्ट जम्मू और कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है।
* अगर आप फीस नकद जमा कर रहे हैं तो रसीद जरूर ले लें।
* गरीबी रेखा के नीचे की कैटिगरी में आने वाले आवेदक को किसी भी तरह की फीस देने की जरूरत नहीं है। इसके लिए उसे अपना बीपीएल प्रमाणपत्र की कॉपी आरटीआई आवेदन के साथ लगानी होगी।
* सिर्फ जन सूचना अधिकारी को आवेदन भेजते समय ही फीस देनी होती है। पहली अपील या सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमिश्नर को दूसरी अपील के लिए किसी प्रकार की फीस नहीं देनी होती।
* अगर सूचना अधिकारी आपको समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करा पाता है और आपसे तीस दिन की समयसीमा गुजरने के बाद कागजात उपलब्ध कराने के नाम पर अतिरिक्त धनराशि जमा कराने के लिए कहता है तो यह गलत है। इस स्थिति में अधिकारी आपको मुफ्त कागजात उपलब्ध कराएगा। चाहे उनकी संख्या कितनी भी हो।
* आवेदक को सूचना मांगने के लिए कोई वजह या पर्सनल ब्यौरा देने की जरूरत नहीं है। उसे सिर्फ अपना पता देना होगा।
पोस्टल डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी
केंद्र सरकार के सभी विभागों के लिए 629 पोस्ट ऑफिसों को सहायक जन सूचना कार्यालय बनाया गया है। इसका मतलब यह है कि आप इनमें से किसी भी पोस्ट ऑफिस में जाकर इनके आरटीआई काउंटर पर फीस और आवेदन जमा कर सकते हैं। वे आपको रसीद और अकनॉलेजमेंट (पावती पत्र) देंगे। यह पोस्ट ऑफिस की जिम्मेदारी है कि वह आपके आवेदन संबंधित सूचना अधिकारी तक पहुंचाए।
इन बातों का रखें ध्यान
* आप जब भी आरटीआई के तहत जानकारी मांगें तो हमेशा संभावित जवाबों को ध्यान में रखकर अपने सवाल तैयार करें। आपका जोर कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा सूचना प्राप्त करने पर होना चाहिए।
* अगर आप अपने आवेदन में कुछ दस्तावेजों की मांग कर रहे हैं तो संभावित शुल्क पहले ही आवेदन शुल्क के साथ जमा कर दें। जैसे आपने चार से पांच डॉक्यूमेंट मांगे हैं तो आप 10 रुपये के बजाय 20 रुपये का पोस्टल ऑर्डर, ड्राफ्ट या नकद जमा कर सकते हैं। ऐसे में सूचना अधिकारी द्वारा आपसे अतिरिक्त धनराशि मांगने और आपके द्वारा उसे जमा किए जाने में बीत रहे समय को बचाया जा सकता है।
* पोस्टल ऑर्डर में पूरी जानकारी भरकर ही संबंधित अधिकारी को भेजें। बिना नाम के पोस्टल ऑर्डर का गलत इस्तेमाल होने की संभावना के साथ-साथ जन सूचना अधिकारी द्वारा उसे लौटाया भी जा सकता है। पोस्टल ऑर्डर आप किसी भी पोस्ट ऑफिस से खरीद सकते हैं।
आवेदन देने के बाद
* अगर आपने अपना आवेदन जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) को दिया है तो वह आपको 30 दिन के अंदर सूचना मुहैया कराएगा। साथ ही उसके जवाब में प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम व पता भी दिया जाना जरूरी है। अगर आपने अपना आवेदन सहायक सूचना अधिकारी को दिया है तो उसकी समयसीमा 35 दिन है।
* आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना का संबंध अगर किसी व्यक्ति की जिंदगी या आजादी से जुड़ा हो तो सूचना अधिकारी को आवेदन मिलने के 48 घंटों के अंदर जानकारी देनी होगी।
आवेदन लेने से इनकार
* कुछ विशेष परिस्थितियों में ही जन सूचना अधिकारी आपके आवेदन को लेने से इनकार कर सकता है।
* अगर आवेदन किसी और जन सूचना अधिकारी या पब्लिक अथॉरिटी के नाम पर हो।
* अगर आप ठीक तरह से सही फीस का भुगतान न कर पाए हों।
* अगर आप गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के सदस्य के रूप में फीस से छूट मांग रहे हैं, लेकिन इससे जुड़ा प्रमाणपत्र नहीं दे सकते।
ऐसा भी होता है
* अगर आपकी अपील पर संबंधित अधिकारी को सूचना आयोग द्वारा आर्थिक रूप से दंडित किया जाता है तो जुर्माने के रूप में उससे ली गई राशि सरकारी खजाने में जमा की जाती है। हालांकि धारा 19(8) (बी) के अंतर्गत आवेदक को किसी हानि या नुकसान के लिए मुआवजा दिया जा सकता है।
* कुछ अधिकारी आवेदक को बैठक के लिए बुलाते हैं, यह कानून पब्लिक अथॉरिटीज को मीटिंग के लिए आवेदकों को बुलाने या यहां तक कि आवेदक को व्यक्तिगत रूप से आकर मांगी गई सूचना ले जाने पर जोर देने का अधिकार नहीं देता है।
* अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके द्वारा सूचना मांगे जाने से आपके जान-माल को खतरा हो सकता है तो आप सूचना दूसरे व्यक्ति के नाम पर मांग सकते हैं। जिसे आसानी से धमकाया नहीं जा सके या जो किसी दूर स्थान पर रहता हो।
* जहां मांगी जा रही सूचना एक से अधिक व्यक्ति को प्रभावित करती हो, तो कभी-कभी अन्य लोगों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से सूचना मांगना बेहतर होता है, क्योंकि अधिक संख्या आपको बल और सुरक्षा देती है।
* अगर आवेदक पढ़ा-लिखा नहीं है तो जन सूचना अधिकारी की यह जिम्मेदारी है कि वह उसके अनुरोध को लिखित रूप में देने में सभी प्रकार से सहायता करें।
* अगर आवेदन की विषयवस्तु किसी और पब्लिक अथॉरिटी से जुड़ी हो तो उस आवेदन को संबंधित पब्लिक अथॉरिटी को ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
अतिरिक्त शुल्क
सूचना लेने के लिए आरटीआई एक्ट में आवेदन फीस के साथ अतिरिक्त शुल्क का प्रावधान भी है, जो इस तरह है।
* फोटो कॉपी किए गए हर पेज के लिए 2 रुपये।
* बड़े आकार के कागज में कॉपी की लागत कीमत।
* नमूनों या मॉडलों के लिए उसकी लागत या कीमत।
* अगर दस्तावेज देखने हैं तो पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं है। इसके बाद हर घंटे के लिए फीस 5 रुपये है।
* डिस्क या फ्लॉपी में सूचना लेनी है तो हर डिस्क या फ्लॉपी के लिए 50 रुपये।
यहां नहीं लागू होता कानून
* किसी भी खुफिया एजेंसी की ऐसी जानकारियां जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। निजी संस्थानों को भी इस दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन इन संस्थाओं की सरकार के पास उपलब्ध जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग से प्राप्त किया जा सकता है। इंटेलीजेंस एजेंसियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन होने और इन संस्थाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी ली जा सकती है। अन्य देशों के साथ भारत के संबंध से जुड़े मामलों की जानकारी को भी इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
[साभार: आई नेक्स्ट]