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रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर इस वजह से सबसे ज्‍यादा चिंतित है भारत

भारत सरकार रोहिंग्‍या मुस्लिमों को वापस म्‍यांमार भेजना चाहती है। इसके पीछे सरकार की कुछ ठोस वजहें हैं।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Wed, 20 Sep 2017 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 20 Sep 2017 10:04 AM (IST)
रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर इस वजह से सबसे ज्‍यादा चिंतित है भारत

नई दिल्ली, जेएनएन। केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस बात को स्पष्ट कर चुकी है कि वह क्यों सुरक्षा कारणों से रोहिंग्या शरणार्थियों को उनके देश म्यांमार वापस भेजना चाहती है। सरकार के इस तर्क के पीछे कुछ ठोस वजहें हैं। सबूत इस बात के हैं कि किस तरह से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ही नहीं खूंखार आतंकी संगठन आईएस भी रोहिंग्या मुसलमानों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही भारत विरोधी आतंकी संगठन लश्कर और जैश की तरफ से भी इन्हें लुभाने की कोशिश हो रही है।

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सरकार की तरफ से इस बारे में अलग से सुप्रीम कोर्ट को विस्तृत जानकारी भी दी गई है। सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में इस तरफ इशारा किया गया है कि रोहिंग्या शरणार्थियों की वजह से आईएसआई और आईएस का खतरा कितना बढ़ गया है। इस बारे में गृह मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि पिछले दो वर्षो में सैकड़ों रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू और कश्मीर के रास्ते पाकिस्तान भेजा जा चुका है।

वैसे अब इस नेटवर्क पर अमूमन पाबंदी लगायी जा चुकी है, लेकिन सरकार को इस बात की पक्की सूचना है कि जो लोग पहले पाकिस्तान गए हैं, उन तक भारत विरोधी तत्वों ने पहुंच बनाने की कोशिश की है। कई ऐसे परिवार हैं जिनके कुछ सदस्य भारत में ही रह गए हैं जबकि कुछ सदस्य पाकिस्तान जा चुके हैं। गरीबी, अशिक्षा व अन्य वजहों से ये आसानी से भारत विरोधी तत्वों के हाथों में जा सकते हैं।

दरअसल, भारत की चिंता तब बढ़ी, जब पाकिस्तान में जमात उल दावा जैसे संगठनों ने रोहिंग्या के बीच पैठ बनाने की कोशिशें शुरू की। पाकिस्तान से लगातार इस बात की सूचना आ रही है कि वहां के आतंकी संगठनों के सहयोग से रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए विशेष कैंप लगाए जा रहे हैं। आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के लोग रोहिंग्या शरणार्थियों के बीच काम भी कर रहे हैं।

दूसरी तरफ, भारत से पाकिस्तान जाने वाले रोहिंग्या अभी भी भारत में रहने वाले अपने परिवार के लोगों या मित्रों के संपर्क में हैं। इन सब वजहों को देखकर सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। यही वजह है कि हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार को इस बात का पता चला है कि कई रोहिंग्या शरणार्थी भारत में साजिश को अंजाम देने की ताक में लगे आईएसआई और आइएस व अन्य आतंकी तत्वों के संदेहास्पद मंसूबों में हिस्सा बन सकते हैं। इसमें देश के संवेदनशील इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देना भी हो सकता है।

सूत्रों के मुताबिक, पंजाब और जम्मू के इलाके में पहले से ही कुछ गिरोह सक्रिय थे जो बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को बिहार, पश्चिम बंगाल और पंजाब लाते थे। उसके बाद उन्हें सीमा पार कराते थे। इस आरोप में कई लोग गिरफ्तार भी हुए हैं, लेकिन इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लग सकी है। हाल के वर्षो में इस गिरोह ने रोहिंग्या मुसलमानों को इसी रास्ते से पाकिस्तान भेजना शुरू किया था।

सू की के रुख से भारत की बंधी उम्मीद

नई दिल्ली। ब्यूरो रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस उनके देश म्यांमार भेजने की तैयारी में जुटे भारत को आंग सान सू की के नए रख से उम्मीद मिली है। सू की ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषषण में कहा है कि जो वैध रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस लिया जा सकता है। म्यांमार की नेता ने बांग्लादेश के संदर्भ में यह संकेत दिया है, लेकिन भारत को इससे रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी का नया रास्ता निकलने की उम्मीद है।

पहली बार म्यांमार की नेता ने रोहिंग्या संकट पर अपना पक्ष रखा है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि हम रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने को तैयार थे, लेकिन म्यांमार इस पर चुप्पी साधे हुए था। अभी भी म्यांमार ने खुल कर यह संकेत नहीं दिया है कि वह हर शरणार्थी को वापस लेने को तैयार है, लेकिन जिनकी वैधता साबित हो जाएगी उनके लौटने की उम्मीद बन सकती है। अभी भी एक बड़ी समस्या है कि म्यांमार ने यदि इन्हें स्वीकार नहीं किया तो इनके साथ क्या किया जाएगा, लेकिन अब बातचीत की एक उम्मीद बंधी है।

भारत अपने यहां रह रहे 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार भेजना चाहता है। देश में राहिंग्या एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सरकार के स्तर पर कार्रवाई जारी है। एक दिन पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। हलफनामे में सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि वर्ष 1951 में शरणार्थियों की स्थिति पर किए गए अंतरराष्ट्रीय समझौते या 1967 के समझौते पर उसने हस्ताक्षर नहीं किया है। इसलिए इन समझौते की शर्तो को मानने का दबाव उस पर नहीं डाला जा सकता।

सरकार ने कहा है कि 1951 के समझौते या 1967 के प्रोटोकाल के किसी भी प्रावधान से देश नहीं बंधा है। इसी तरह भारत ने अभी तक दबाव, क्रूरता, गैर मानवीय व्यवहार या दंड के कारण निर्वासित व्यक्तियों की सुरक्षा से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौते को लागू नहीं किया है। ऐसे में भारत उनके प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा है कि उक्त समझौतों को लागू नहीं करने के कारण वह शरणार्थियों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरूकर सकता है। रोहिंग्या शरणार्थियों के समर्थकों का कहना है कि चूंकि भारत अंतरराष्ट्रीय समझौते को स्वीकार करता है, इसलिए उन्हें देश से निकालने की पहल नहीं कर सकता।

पुष्टि के बाद ही रोहिंग्या को वापस लेगा म्यांमार : सू की 

नेपीतॉ, एजेंसी। म्यांमार की नेता आंग सान सू की ने कहा है कि उनका देश शरणार्थियों को वापस लेने के लिए तैयार है। बांग्लादेश के साथ 1990 के शुरू में जिस पुष्टि प्रक्रिया पर सहमति बनी थी उसके अनुरूप ही रोहिंग्या को वापस लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि शरणार्थी के रूप में जिनकी पुष्टि की जा चुकी है, उन्हें उनका देश स्वीकार करेगा।

संयुक्त राष्ट्र जांच दल ने और समय मांगा

जेनेवा। संयुक्त राष्ट्र जांच दल के प्रमुख मार्जुकी दारसमन ने मंगलवार को कहा कि रोहिंग्‍या मुस्लिमों के नरसंहार, उत्‍पीड़न, यौन हिंसा और गांव जलाए जाने की जांच के लिए और समय चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी तक जांच दल को म्यांमार में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिली है।

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