Move to Jagran APP

फांसी की पुष्टि के साथ जीवन का हक खत्म नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महत्वपूर्ण व्यवस्था दी। कोर्ट ने कहा कि फांसी या मृत्युदंड की सजा की पुष्टि के साथ ही जीवन का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। मृत्युदंड से दंडित व्यक्ति को भी जीवन की गरिमा का अधिकार है।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Thu, 28 May 2015 04:27 AM (IST)Updated: Thu, 28 May 2015 06:20 AM (IST)
फांसी की पुष्टि के साथ जीवन का हक खत्म नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महत्वपूर्ण व्यवस्था दी। कोर्ट ने कहा कि फांसी या मृत्युदंड की सजा की पुष्टि के साथ ही जीवन का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। मृत्युदंड से दंडित व्यक्ति को भी जीवन की गरिमा का अधिकार है।

loksabha election banner

सर्वोच्च अदालत ने उप्र में वषर्ष 2008 में एक युवती व उसके प्रेमी का डेट वारंट (फांसी देने का आदेश) खारिज कर दिया। इस युवती ने प्रेमी के साथ मिलकर अपने परिवार के सात लोगों की हत्या की थी। इनमें दस माह का एक बच्चा भी था।

कोर्ट ने कहा कि डेथ वारंट जल्दबाजी में और अनिवार्य दिशा निर्देशों की अवज्ञा कर जारी किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप्र के अमरोहा के सेशंस जज ने 21 मई को फांसी देने का आदेश जल्दबाजी में और फांसी की पुष्टि होने के मात्र छह दिन में जारी कर दिया। इसमें दोषिषयों को 15 मई को सुनाए गए आदेश के खिलाफ अपील करने के अधिकार के अनुसार 30 दिन की अनिवार्य मोहलत भी नहीं दी गई।

राज्यपाल के समक्ष लगा सकते हैं दया याचिका सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषषी शबनम व सलीम न्यायिक राहत पाने में विफल रहने पर उप्र के राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर कर सकते थे। न्यायमूर्ति एके सीकरी व यूयू ललित की पीठ ने कहा कि लगता है सेशंस कोर्ट ने अभियुक्तों के न्यायिक हक खत्म होने का इंतजार किए बगैर जल्दबाजी में डेट वारंट पर साइन कर दिए।

जबकि सुप्रीम कोर्ट व इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अभियुक्तों के जीवन की गरिमा की रक्षा के लिए कुछ चुनिंदा दिशा निर्देशों का अनिवार्य रूप से पालन करने का कहा था। अनुच्छेद 21 में है जीवन का हक विद्वान न्यायाधीश द्वय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में दिया गया जीवन का अधिकार, मृत्युदंड की पुष्टि के साथ समाप्त नहीं हो जाता। जीवन की गरिमा का अधिकार भी मृत्युदंड की सजा पाए अभियुक्तों के लिए आधार है। इसलिए मृत्युदंड या फांसी की सजा पर अमल भी पूरी गरिमा के साथ होना चाहिए।

मृत्युदंड से पूर्व इन दिशा निर्देशों का पालन अनिवार्य

-दोषियों को उनके परिजन से मिलने का हक है।

फांसी कम से कम दर्दनाक हो।

अंतिम इच्छा पूरी की जाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.