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वक्त के साथ बढ़ती गई अमीरों की खुशहाली, गरीबों की बदहाली

गुरुवार को संस्था की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस देश केसकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 15 फीसद के बराबर पूंजी सिर्फ अरबपतियों के बटुवे में है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 22 Feb 2018 10:59 PM (IST)Updated: Thu, 22 Feb 2018 10:59 PM (IST)
वक्त के साथ बढ़ती गई अमीरों की खुशहाली, गरीबों की बदहाली
वक्त के साथ बढ़ती गई अमीरों की खुशहाली, गरीबों की बदहाली

नई दिल्ली, प्रेट्र : पिछले तीन दशकों में सरकारें बदलती गई, लेकिन अमीरों की खुशहाली और गरीबों की बदहाली बढ़ने का सिलसिला बंद नहीं हुआ, इस आम धारणा पर ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट ने आंकड़ों की मुहर लगा दी है। गुरुवार को संस्था की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 15 फीसद के बराबर पूंजी सिर्फ अरबपतियों के बटुवे में है।

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रिपोर्ट में देश की इस आर्थिक विषमता के लिए एक के बाद एक सरकारों की असंतुलित नीतियों को जिम्मेदार माना गया है। ऑक्सफैम ने कहा है कि पिछले तीन दशकों में देश के सबसे बड़े धनकुबेरों ने पुश्तैनी संपत्ति और अपने ही देश में चालबाजियों से जमा की गई रकम के बूते धन का अंबार खड़ा कर लिया है। दूसरी तरफ, समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े गरीबों की बढ़ती गुरबत उन्हें और नीचे ले गई है।

ऑक्सफैम इंडिया की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) निशा अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के दौरान विभिन्न सुधारों के जो एक के बाद एक तरीके अपनाए गए, अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती गई खाई उन्हीं तरीकों का नतीजा है। उन्होंने कहा कि नवीनतम अनुमानों के मुताबिक देश के अरबपतियों के पास कुल पूंजी जीडीपी के 15 फीसद तक पहुंच गई है, जो महज पांच वर्ष पहले तक 10 फीसद ही थी।

'द वाइडनिंग गैप्स : इंडिया इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2018' में ऑक्सफैम इंडिया ने कहा कि वर्ष 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 101 अरबपति (कुल संपत्ति एक अरब डॉलर से ज्यादा यानी 6,500 करोड़ रुपये और उससे ज्यादा) हैं। रिपोर्ट का कहना है कि आय, खपत और संपत्ति जैसे सभी मानदंडों पर भारत दुनिया के सबसे अधिक आर्थिक विषमता वाले देशों की कतार में है। रिपोर्ट ने कहा, 'भारत में विकास का ढांचा और उसके लिए अपनाई गई खास नीतियां श्रम के बजाय पूंजी और अकुशल श्रम की जगह चुनिंदा कुशलता को प्राथमिकता देती आई हैं। इसी वजह से इस तरह की आर्थिक विषमता उभरकर सामने आ रही है।'

रिपोर्ट के लेखक प्रोफेसर हिमांशु ने कहा, 'भारत के लिए खास तौर पर चिंता का विषय यह है कि आर्थिक विषमता की खाई ऐसे समाज में पैदा की गई है, जो पहले से ही जाति, धर्म, क्षेत्र और लिंग जैसी सीमाओं में बंटा हुआ है। यह आर्थिक विषमता नैतिक रूप से तो चिंता का विषय है ही, इसे पाटना देश के में लोकतंत्र को मजबूती देने के लिए भी जरूरी है।'


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