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धर्म का सामाजिक बंटवारे से कोई लेना-देना नहीं हैः दलाई लामा

तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा का मानना है कि मौजूदा समय में हो रहे सामाजिक अन्याय वर्षों से चली आ रही सामंती व्यवस्था की ही देन है।

By Srishti VermaEdited By: Published: Wed, 24 May 2017 12:31 PM (IST)Updated: Wed, 24 May 2017 01:14 PM (IST)
धर्म का सामाजिक बंटवारे से कोई लेना-देना नहीं हैः दलाई लामा

बंगलुरू (आईएएनएस)। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने मंगलवार को एक सम्मेलन में कहा कि सच्चा धर्म कभी भी जातिगत आधार पर सामाजिक बंटवारा नहीं करता है। लेकिन गरीबों और वंचितों के साथ जो सामाजिक अन्याय हुए वो सामंतवादी व्यवस्था की देन है। उन्हों यह भी कहा कि, धर्म का सामाजिक बंटवारे से कोई लेना-देना नहीं है। वे बंगलुरू में आयोजित सेमिनार 'बी आर अंबेडकर: द आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन कंस्टिट्युशन' में बोल रहे थे।

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उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि मौजूदा समय में हो रहे सामाजिक अन्याय वर्षों से चली आ रही सामंती व्यवस्था की ही देन है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा के द्वारा ही जातिगत संबंधित सामाजिक अन्याय को दूर किया जा सकता है। साथ ही शिक्षा के द्वारा ही समाज के विभिन्न वर्गों से हीन भावना को दूर किया जा सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि, समानता का भाव हममें आत्म विश्वास पैदा करता है जो कठिन परिश्रम के बल पर ही प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय परंपरा और ज्ञान, आधुनिक विज्ञान से कहीं ज्यादा उपयोगी और समृद्ध है। उन्होंने कहा कि,  बुद्धिज्म की तरह ही दूसरे संप्रदाय और धर्मों के लोग प्रेम और करुणा के संदेश लोगों तक फैला रहे हैं। कोई भी कार्य जो खुशी लाती है एक सकारात्क कर्म है जबकि वैसे काम जो हमें आंतरिक शांति नहीं देता है वे नकारात्मक कर्म हैं।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया और लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे इस मौके पर उपस्थित थे।
कर्नाटक सामाजिक न्याय विभाग ने अंबेडकर की 125 वीं जयंती मनाने के लिए 'जाति प्रथा उन्मूलन पर अम्बेडकर ज्ञान दर्शन अभियान' पर इस संगोष्ठी का आयोजन किया था।

यह भी पढ़ें : दलाई लामा ने भारत को माना गुरु कहा- देश में है प्राचीन शिक्षा की संपदा 


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