दिल में राम, मैं अली का गुलाम
'मैं मोहम्मद के घर रफी ढूंढता हूं मैं पर्दानशीन दोस्ती ढूंढता हूं मैं अली का गुलाम हूं मैं मक्का में तेरी खुशी ढूंढता हूं' मैं अली का गुलाम हूं। गजल की इन चंद लाइनों से विश्व प्रसिद्ध गजल सम्राट गुलाम अली ने खुद को अली का गुलाम तो बताया ही साथ दिल में भगवान राम के प्रति अटूट रिश्ते की हसरत भी जा
अमृतसर, [रमेश शुक्ला 'सफर']।
'मैं मोहम्मद के घर रफी ढूंढता हूं
मैं पर्दानशीन दोस्ती ढूंढता हूं
मैं अली का गुलाम हूं
मैं मक्का में तेरी खुशी ढूंढता हूं'
मैं अली का गुलाम हूं।
गजल की इन चंद लाइनों से विश्व प्रसिद्ध गजल सम्राट गुलाम अली ने खुद को अली का गुलाम तो बताया ही साथ दिल में भगवान राम के प्रति अटूट रिश्ते की हसरत भी जाहिर की। आपको बेशक विश्वास न हो लेकिन यह सच है। मंगलवार को दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में गुलाम अली ने भजन गाने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा कि खुशनसीब हूं कि मोहम्मद रफी जैसे महान गायक और गुरुओं की पवित्र धरती पर सजदा करने का अवसर मिला है। उम्र हो चली है, लेकिन इच्छा है कि एक बार भजन जरूर गाऊं। मुझे विश्वास है कि राम का भजन गाकर अल्लाह के पास जाने की मेरी ये हसरत भी जरूर पूरी होगी।
पढ़ें: गजल गायक गुलाम अली के घर से लाखों की लूट
'हम तेरे शहर में आए हैं, मुसाफिर की तरह' गजल जिसने भी सुनी है वह इसे बार-बार सुनना चाहता है, लेकिन खुद इस खूबसूरत गजल को गाने वाले गुलाम अली गजल के बोल को ही अपनी बातों से गलत साबित कर देते हैं। उन्होंने बताया कि भारत व पाकिस्तान बेशक अलग-अलग देश हैं, लेकिन मैं दोनों को अपना देश ही मानता हूं। मुझे अपने बुजुर्गो की यादें अमृतसर खींच लाती हैं। मैं मोहम्मद के गांव जाकर रफी ढूंढता हूं। मुझे इस शहर से मोहब्बत है। मैं इस शहर में खुद को 'मुसाफिर' नहीं मानता, लेकिन इस मुसाफिर को जाना ही होगा, सच यह भी है।
दैनिक जागरण से किया भजन गाने का वादा
गजल सम्राट गुलाम अली मंगलवार को अमृतसर में श्री दुर्गा स्तुति लिखने वाले चमन लाल भारद्वाज के घर पर भी ठहरे। चमन ने जिस मंदिर में बैठकर श्री दुर्गा स्तुति को लिखा गया था, उसी मंदिर में गुलाम अली ने बैठकर मां देवी के भजन सुने और गुनगुनाए भी। दिन भर वो मशरूफ भी रहे। दैनिक जागरण से उन्होंने वादा किया कि वह राम का भजन गाकर ही अल्लाह के दरबार में हाजिरी लगाने जाएंगे।
कलाकार को तालियों से मतलब होता है
गुलाम अली कहते हैं कि सरहद जिस तरह पक्षियों को एक-दूसरे देश में जाने से नहीं रोक पाती, उसी तरह संगीत, गीत व गजल को किसी वीजा की जरूरत नहीं होती। गजल मेरे लिए गंगा जल है। मैं अली से यही दुआ करता हूं कि आखिरी सांस मेरी गजल गाते हुए निकले। उन्होंने कहा कि अगर रफी साहिब के गीत पाकिस्तान में बजते हैं तो यहां भी पकिस्तान के कई बड़े गायकों की गजलें, गीत गुनगुनाए जाते हैं। सच पूछिए तो कलाकार को तालियों से मतलब होता है। चाहे यह तालियां पाकिस्तानी बजा रहे हों या भारतीय। क्योंकि महफिल में तालियां ही संगीत को संजीवनी देती हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर