चुनौती बनी रैलियों की सुरक्षा
अगले आम चुनाव को सुरक्षा एजेंसियां अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मान रही हैं। इस बार मतदान और उसकी तैयारियों से ज्यादा रैलियों की सुरक्षा व्यवस्था संभालना इनके लिए कठिन हो रहा है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस बार आतंकियों का ध्यान छोटे शहरों पर ज्यादा है। गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं ि
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अगले आम चुनाव को सुरक्षा एजेंसियां अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मान रही हैं। इस बार मतदान और उसकी तैयारियों से ज्यादा रैलियों की सुरक्षा व्यवस्था संभालना इनके लिए कठिन हो रहा है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इस बार आतंकियों का ध्यान छोटे शहरों पर ज्यादा है।
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गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इस बार मेट्रो शहरों के अलावा कई छोटे शहरों पर ज्यादा ध्यान देने को कहा गया है। खुफिया सूचना के मुताबिक आतंकी इन्हीं शहरों को अपना निशाना बनाने की तैयारी में हैं। इसी तरह स्थानीय पुलिस को खुफिया नेटवर्क से मिली सूचना के आधार पर तत्काल कार्रवाई करते हुए स्लीपर सेल पर भी शिकंजा कसने को कहा गया है।
27 अक्टूबर को पटना में मोदी की रैली के मौके पर तो धमाके हो ही चुके हैं, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी अपने ऊपर आतंकी हमले की आशंका जता चुके हैं। ये अधिकारी मानते हैं कि इस बार रैलियों में उमड़ रही भीड़ सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का कारण है, लेकिन दावा करते हैं कि इन दोनों ही नेताओं की व्यक्तिगत सुरक्षा में चूक होने की आशंका न्यूनतम है। पटना धमाकों के बाद विशेष तौर पर नई व्यवस्था की गई है, जिसमें किसी भी चूक की गुंजाइश न्यूनतम कर दी गई है। हालांकि इन रैलियों में आने वाली भीड़ की सुरक्षा को लेकर ये अब भी वैसी गारंटी देने को मुश्किल बताते हैं। सूत्रों के मुताबिक नरेंद्र मोदी आतंकियों की हिट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। इंडियन मुजाहिदीन के कैडर तो यहां तक कहते हैं कि असल में मोदी उनकी लिस्ट में पहले से दसवें नंबर तक हैं। बाकी का नंबर इसके बाद आता है।
मोदी की सुरक्षा में एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) के 108 ब्लैक कैट कमांडो तैनात हैं। इन्हें तीन समूहों में बांटा गया है। एक समूह हमलावरों से निबटने के लिए है तो दूसरा मोदी को घेरे रखने के लिए और तीसरा समूह उन्हें ऐसी स्थिति में सुरक्षित बाहर निकालने के लिए है।
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