सहारनपुर की दलदल जमीन से भगवा उड़ान भरने का ख्वाब हुआ पूरा
मोदी लहर के भरोसे उप्र सत्ता के सपने बुनने वाली भाजपा का भले ही उप्र के उप चुनाव में 8 विस क्षेत्रों में उड़ान भरने का ख्वाब पूरा न हुआ हो, पर सहारनपुर सदर सीट पर भाजपा प्रत्याशी राजीव गुंबर को मिली अप्रत्याशित जीत से साबित हो गया है मेरठ जोन में अभी भी भगवा परचम लहरा रहा है। टिकट के चयन को लेकर नेताओं
सहारनपुर, [संजीव जैन]। मोदी लहर के भरोसे उप्र सत्ता के सपने बुनने वाली भाजपा का भले ही उप्र के उप चुनाव में 8 विस क्षेत्रों में उड़ान भरने का ख्वाब पूरा न हुआ हो, पर सहारनपुर सदर सीट पर भाजपा प्रत्याशी राजीव गुंबर को मिली अप्रत्याशित जीत से साबित हो गया है मेरठ जोन में अभी भी भगवा परचम लहरा रहा है। टिकट के चयन को लेकर नेताओं में आपसी फूट, प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का सहारनपुर में विरोध व इस मामले का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दरबार में पहुंचने जैसे प्रकरण के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार भाजपा को सहारनपुर में नुकसान होगा, पर ऐसा नहीं हुआ। जिसका कारण यह है कि सहारनपुर दंगे के कारण बदले सियासी समीकरण का लाभ भाजपा को मिला। तभी तो चुनाव में मोदी लहर न होते हुए भी विगत विस चुनाव की तुलना में भाजपा प्रत्याशी को 23136 मत अधिक मिले।
उप्र विस चुनाव से पहले 11 विस सीटों पर हुए उप चुनाव में भगवा दल ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इन विस क्षेत्रों में मोदी की लहर का राग अलापते हुए 20 से 25 नेताओं की ड्यूटी भी लगाई गई, पर सहारनपुर सीट में प्रत्याशी चयन को लेकर जिस तरह पार्टी नेताओं की गुटबाजी खुलकर मुखर हुई उससे भाजपा की किरकिरी हुई। भाजपा प्रत्याशी के चुनाव कार्यालय के शुभारंभ के दौरान प्रदेश अध्यक्ष का विरोध हुआ तो उस दिन भगवा संमोहन की मानो हवा निकली दिखाई दी। बाद में मोदी व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हस्तक्षेप किया तो प्रदेश महामंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने यहां डेरा डाल लिया। असर हुआ कि भाजपा नेता गाज के डर से प्रत्यक्षरूप से एकजुट नजर आए। इस चुनाव में सहारनपुर दंगे व कांठ में आक्रोश की हांडी गर्म रखने के लिए सांसद योगी आदित्यनाथ आदि जैसे फायर ब्रांड नेताओं के कार्यक्रम सहारनपुर में कराने का भी निर्णय लिया गा। पर अचानक भाजपा ने मुस्लिम धुव्रीकरण के लिए अपनी चुनावी रणनीति बदल दी और सहारनपुर में अन्य नेताओं के कार्यक्रम कराए। यही कारण रहा कि सहारनपुर में भाजपा को जीत मिली।
अपनी रणनीति के जाल में उलझी सपा
उप चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली करारी हार से पार्टी में भारी बैचेनी है तथा वरिष्ठ नेता बचाव के रास्ते तलाश रहे हैं। हकीकत यह है कि पार्टी अपनी चुनावी रणनीति के कारण ही उलझ कर रह गई थी जोकि हार का कारण बना। सपा आलाकमान ने उप चुनाव की घोषणा होते ही पहले गोपाल अग्रवाल को चुनाव प्रभारी बनाकर सहारनपुर भेजा था। इससे पूर्व सहारनपुर की जिला व शहर कार्यकारिणी की घोषणा तक नहीं की गई थी। यही नहीं गुटों में बंटी पार्टी को एकजुट करने का कोशिशें अभी पूरा भी नहीं हो पाई थी कि तीन तीन चुनाव प्रभारी व सह प्रभारी थोप दिये गये। चुनाव प्रभारी के रूप में कैबिनेट मंत्री बलराम सिंह यादव व शाहिद मंजूर ने मोर्चा संभाला तो सहायक प्रभारी के रुप में गोपाल अग्रवाल करीब 25 दिनों तक यहां डेरा डाले रहे। यहीं नहीं स्टार प्रचारक के रुप में ऐसे लोगों को चुनाव प्रचार में भेजा गया जिनको लोग जानते तक नहीं थे तथा वे कभी-कभार अपनी बिरादरी की बैठकों में शामिल होते रहे थे। इनमें विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय, राज्यमंत्री आशु मलिक, अय्यूब अंसारी, चितरंजन स्वरुप, वसीम खां, इकबाल, आब्दी, पूर्व मंत्री विरेन्द्र गुर्जर, अतुल प्रधान, संगीता राहुल, देवेन्द्र गुर्जर, के अलावा स्थानीय राज्य मंत्री राजेन्द्र राणा, सरफराज खान पूर्व मंत्री साहब सिंह सैनी आदि शामिल रहे। परिणाम यह रहा कि ये नेता लोकसभा चुनाव की अपेक्षा विधानसभा उप चुनाव में सपा को अधिक वोट दिलवा पाने में तो सफल रहे लेकिन जीत के द्वार तक ले जाने में पूरी तरह से फेल साबित हुए।
दरअसल सहारनपुर के दंगे के दंश का भी सपा को डुबोने में अहम रोल रहा। ये स्थिति तब है जबकि सपा सुप्रीमों लगातार सहारनपुर सीट की समीक्षा कर रहे थे। चुनाव के दौरान ही सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सभा कराने का निर्णय भी लिया गया लेकिन अत्याधिक आत्मविश्वास से लबरेज नेताओं द्वारा चुनाव जीतने के दावे लगातार किये जाते रहे। यहीं नहीं अधिकारियों के द्वारा फोन से तथा खुफिया रिपोर्ट भी सपा के पक्ष में आलाकमान को भिजवाने की जानकारी मिली है।
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