रिपोर्ट में खुलासा, सुधारों के बावजूद भारत में निवेश करना बहुत मुश्किल
इस बार भारत की रैंकिंग में सुधार न होने की एक वजह दिवालिएपन के मामले सुलझाने की प्रक्रिया से ही जुड़ा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बिजनेस करना आसान बनाने का सपना कोसों दूर है। विश्र्व बैंक की 'ईज ऑफ डूइंग रिपोर्ट 2017' में कारोबार की प्रक्रिया सरल बनाने के मामले में भारत 190 देशों की सूची में मात्र एक अंक चढ़कर 130वें स्थान पर पहुंचा है। भारत के फीके प्रदर्शन की एक बड़ी वजह देश की नौकरशाही की सुस्त कार्यशैली और आर्थिक सुधारों पर हावी दलगत राजनीति है।
विश्र्व बैंक दस संकेतकों के आधार पर देशों के प्रदर्शन का आकलन यह रिपोर्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट की अहमियत इसलिए क्योंकि इससे देश मंे व्यवसाय शुरु करने की प्रक्रिया की सरलता का पता चलता है। जिन दस संकेतकों के आधार पर किसी भी देश की रैंक तय की जाती है वे- बिजली कनेक्शन लेने में वक्त, अनुबंध लागू करना, कारोबार शुरु करना, संपत्ति पंजीकरण, दिवालियेपन के मामले सुलझाना, निर्माण प्रमाणपत्र, कर्ज लेने में वक्त, अल्पसंख्यक निवेशकों के हितों की रक्षा, करों का भुगतान और सीमापारीय व्यापार शामिल हैं। विश्र्व बैंक एक जून से लेकर अगले वर्ष 31 मई के दौरान इन बिन्दुओं पर किसी भी देश की ओर से उठाए गए सुधारात्मक कदमों को ही संज्ञान में लेता है।
इस बार भारत की रैंकिंग में सुधार न होने की एक वजह दिवालिएपन के मामले सुलझाने की प्रक्रिया से ही जुड़ा है। इस बिन्दु पर भारत की रैंक पिछले साल के स्तर पर बरकरार है। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड संसद से पारित होने के बावजूद इस पैमाने पर भारत का प्रदर्शन नहीं सुधरा है। पहले तो संसद में विपक्ष के चलते यह कोड पारित नहीं हुई लेकिन जब मई के पहले सप्ताह में संसद के दोनों सदनों से पारित कर भी दिया तो अब तक इसके नियम नहीं बने हैं। वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग के सचिव शक्तिकांत दास का कहना है कि दिवालिएपन पर बने इस नए कानून को इस साल के अंत तक ही क्रियान्वित किया जा सकेगा। फिलहाल इसके नियमों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसी तरह कई वर्षो के इंतजार के बाद संसद से पारित हुआ महत्वपूर्ण कर सुधार जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक भी राजनीतिक अवरोध का उदाहरण है। जीएसटी अब एक अप्रैल 2017 से लागू होने की उम्मीद है। हालांकि अभी जीएसटी की दरों पर सहमति नहीं बनी है।
नौकरशाही की सुस्त कार्यशैली का एक उदाहरण करों के भुगतान के संबंध में है। विश्र्व बैंक की यह रिपोर्ट बताती है कि करों के भुगतान के संबंध में भारत की रैंक सुधरने के बजाय खराब हुई है। 2015 में भारत इस मामले में 156वें नंबर पर था लेकिन 2017 की रैंकिंग में लुढ़क कर 172वें नंबर पर पहुंच गया है। इसमें सबसे खराब स्थिति 'पोस्ट फाइलिंग' श्रेणी में हैं। इस बार की रिपोर्ट में यह श्रेणी पहली बार जोड़ी गयी है। 'पोस्ट फाइलिंग' से आशय वैट और सेवा के रिटर्न फाइल करने और कारपोरेट टैक्स के संबंध में कारोबारियों के अनुभवों से संबंधित है। 'पोस्ट फाइलिंग' के मामले मंे तो भारत का स्कोर 100 में से मात्र 4.3 है। इस मामले में 190 देशों की सूची में भारत का प्रदर्शन सिर्फ तिमोर लेस्टे, तुर्की और अफगानिस्तान से ही बेहतर है, अन्य देशों से भारत पिछड़ा हुआ है। इसी तरह कंस्ट्रक्शन परमिट मिलने में विलंब भी एक बड़ी समस्या है। भारत इस पैमाने पर 190 देशों में 185वें नंबर पर है।
संतोष की बात यह है कि कारोबार की प्रक्रिया सरल बनाने की दिशा में किए जा रहे उपायों के आकलन के दूसरे पैमाने 'डिस्टेंस टू फ्रंटियर' पर भारत का प्रदर्शन सुधरकर 55.27 अंक हो गया है जबकि पिछले साल यह 53.93 था। 'डिस्टेंस टू फ्रंटियर' का मतलब सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले देश के मुकाबले भारत के प्रदर्शन से है।
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