आरबीआइ पर बढ़ा ब्याज दर में कटौती का दबाव
महंगाई में कमी और औद्योगिक उत्पादन में सुस्ती से बनी सस्ते कर्ज की गुंजाइश..
नई दिल्ली, प्रेट्र/आइएएनएस। महंगाई दर के रिकॉर्ड निचले स्तर और औद्योगिक उत्पादन की ग्रोथ लुढ़ककर दो फीसद से नीचे आने के बाद रिजर्व बैंक पर रेपो रेट घटाने का दबाव बढ़ गया है। देश के प्रमुख बैंकरों और अर्थशास्ति्रयों का तो यही मानना है। सरकार ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है। इसी तरह उद्योग चैंबर कह रहे हैं कि आरबीआइ को अपनी नीतिगत ब्याज दर में कटौती करने का यह सही मौका है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अगले माह बैठक है। एक और दो अगस्त को मौद्रिक नीति की दोमाही समीक्षा के लिए होने वाली इस बैठक में रेपो रेट घटाने का फैसला किया जा सकता है। जून में समिति ने आरबीआइ द्वारा बैंकों से कम अवधि के कर्ज पर ली जाने वाली इस ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया था। फिलहाल रेपो दर 6.25 फीसद पर बरकरार है।
निजी क्षेत्र के कोटक महिंद्रा बैंक की राय है कि चूंकि आरबीआइ ने अपने महंगाई की ट्रैजेक्टरी को नीतिगत समीक्षा में काफी कम कर दिया है, इसलिए ब्याज दर में कमी की गुंजाइश बनी है। बैंक ऑफ अमेरिकी मेरिल लिंच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एमपीसी अगली बैठक में रेपो रेट चौथाई फीसद तक घटा सकती है। भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट में भी इससे मिलती-जुलती बात कही गई है।
कुछ दिन पहले वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने कहा था कि महंगाई की प्रक्रिया में खासा बदलाव आ चुका है। इस पर उन सभी ने ध्यान ही नहीं दिया जो लंबे समय से महंगाई के अनुमान में त्रुटियां करते रहे। उनका इशारा केंद्रीय बैंक की तरफ था। सरकार केंद्रीय बैंक से ब्याज दरें घटाने का काफी पहले से अनुरोध कर रही है। जुलाई, 2016 में खुदरा महंगाई की दर 6.1 फीसद पर थी। इस साल जून में यह घटकर 1.5 फीसद पर आ गई।
उद्योग चैंबरों का मानना है कि रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरों में कटौती करने का यह सही मौका है। सीआइआइ का कहना है कि घटती महंगाई के चलते आरबीआइ को ब्याज दर में कटौती का सिलसिला फिर से शुरू करना चाहिए। इस उद्योग चैंबर ने अगस्त में होने वाली बैठक के दौरान रेपो दर में आधा फीसद कमी का सुझाव दिया है। पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने कहा है कि आरबीआइ प्रमुख नीतिगत ब्याज दर में कटौती कर सकता है। इससे उन उद्योगों में उत्पादन और निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जहां सुस्ती छाई है।
उनके मुताबिक महंगाई दर में काफी गिरावट आई है, मगर रेपो रेट अभी तक ऊंचे स्तर पर है। इससे उद्योग और उत्पादन क्षेत्र की चमक कम पड़ रही है। अब सारे कारक ब्याज दरों में कटौती के अनुरूप हैं। मानसून में बारिश अच्छी हो रही है, महंगाई काबू में है। जीएसटी को भी लागू किया जा चुका है। उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक रेपो रेट में कम से कम चौथाई फीसद घटाएगा। इससे पहले आरबीआइ ने अक्टूबर, 2016 में इस नीतिगत ब्याज दर में 0.25 फीसद की कटौती की थी। उद्योग जगत इससे पहले भी कम करने की मांग करता रहा है। पहले नोटबंदी के समय, फिर वित्त वर्ष 2017-18 के बजट के दौरान और तीसरी बार जुलाई में बेहतर मानसून को देखते हुए उद्योग की तरफ से ब्याज दरों में कटौती की मांग की गई थी।
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