10 करोड़ की आबादी वाले बिहार की सड़कों पर सिर्फ 95 सरकारी बसें
बिहार में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था खस्ताहाल होने की वजह से आम लोगों खासकर युवाओं और महिलाओं को हर रोज दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है। दस करोड़ से यादा आबादी वाले बिहार में केवल 95 सरकारी बसें ही सड़कों पर हैं। हालत यह है कि राय में करीब 200 किलोमीटर
हरिकिशन शर्मा, तारापुर (मुंगेर)। बिहार में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था खस्ताहाल होने की वजह से आम लोगों खासकर युवाओं और महिलाओं को हर रोज दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है। दस करोड़ से यादा आबादी वाले बिहार में केवल 95 सरकारी बसें ही सड़कों पर हैं। हालत यह है कि राय में करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय करने में आठ से 10 घंटे लग जाते हैं। दूसरे रायों में रोडवेज की जैसी बसें चलती हैं वैसी बसें चलाने की कोशिश यहां की सरकार ने नहीं की। रोडवेज बसों के अभाव में लोगों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सबसे याोदा दिक्कत युवाओं और महिलाओं को होती है।
इस साल सात अप्रैल को बिहार विधान सभा में पेश कैग की एक रिपोर्ट भी राय में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की पोल खोलती है। कैग के अनुसार बिहार राज्य सड़क परिवहन निगम (बीएसआरटीसी) के पास 31 मार्च 2014 को मात्र 414 बसें थीं जिनमें से सिर्फ 95 बसें ही सड़क पर थीं। इतना ही नहीं इन बसों का प्रदर्शन भी राष्ट्रीय औसत से काफी कम था। राष्ट्रीय स्तर पर बसों का औसतन प्रदर्शन प्रतिदिन 374 किलोमीटर होता है जबकि बिहार में यह मात्र 232 किलोमीटर था।
बिहार मामलों पर विशेष रुचि रखने वाले राज्यसभा के पूर्व सदस्य गिरीश कुमार सांघी ने दैनिक जागरण से कहा कि बिहार में सार्वजनिक परिवहन के लिए कम से कम 25,000 बसों की जरूरत है। राज्य सरकार की सिर्फ 150 से 200 बसें ही चल रही हैं। इसलिए राज्य में सार्वजनिक परिवहन के लिए बसों का बड़ा गैप है। कई राज्यों में पीपीपी मॉडल पर सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था बेहतर चल रही है। बिहार को भी इस संबंध में एक नई नीति बनाकर तथा केंद्र के सहयोग से प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो भी सरकार बने, उसे इस क्षेत्र पर पूरा ध्यान देना चाहिए। कैग रिपोर्ट में भी इस बात का उेख किया गया है कि राय सरकार या बीएसआरटीसी ने कोई भी पीपीपी नीति नहीं बनाई है।
दरअसल बीते वषों में केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना तथा राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम के तहत बिहार में ग्रामीण सड़कें और राष्ट्रीय राजमार्ग तो बने लेकिन सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। इसके चलते गरीबों खासकर गांव में रहने वाले युवाओं को इन सड़कों का पूरा लाभ नहीं मिला।
बिहार में 98 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कार, वैन या जीप नहीं है। इसी तरह तकरीबन आधे परिवारों के पास अपनी साइकिल भी नहीं है। वहीं 90 प्रतिशत से अधिक परिवारों के पास स्कूटर, मोटरसाइकिल और मोपेड जैसे दुपहिए की सुविधा नहीं है। ऐसे में बेहतर सड़कों का लाभ आम लोगों को नहीं मिल पाया है।
बिहार सरकार ने आधे अधूरे प्रयास के तौर पर कुछ निजी बस ऑपरेटरों को अनुबंधित बसें चलाने की अनुमति दी है लेकिन स्पष्ट नीति के अभाव में यह सुविधा व्यापक स्तर पर नहीं फैली है। वहीं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे अन्य बीमारु प्रदेशों में बेहतर सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था बेहतर है। केंद्र की योजनाओं से सड़कें, राजमार्ग तो बने लेकिन सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की स्थिति खराब रही।