स्वस्थ हो चुके मनोरोगियों के पुनर्वास के लिये बने नीति
बुधवार को मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि जो रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं उनका मानसिक अस्पताल में रहना दुखद है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने स्वस्थ हो चुके मनोरोगियों के मानसिक अस्पतालों में रहने पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए नीति और दिशानिर्देश बनाने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये निर्देश स्वस्थ हो चुके मनोरोगियों की स्थिति का मसला उठाने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए।
बुधवार को मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि जो रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं उनका मानसिक अस्पताल में रहना दुखद है। ये बेहद गंभीर मामला है और ऐसे लोगों के प्रति उदासीन रवैया ठीक नहीं है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वो ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए नीति बना कर आठ सप्ताह में पेश करे। जिसके बाद कोर्ट राज्य सरकारों से उन्हें लागू करने को कहेगा। केन्द्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि फिलहाल ऐसे लोगों के बारे में कोई नीति नहीं है अत: नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया जाए।
वकील गौरव कुमार बंसल ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि करीब 300 मनोरोगी पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी मानसिक अस्पतालों में रह रहे हैं। वे अब मनोरोगी नहीं हैं लेकिन फिर भी मनोरोगियों के साथ रहने को मजबूर हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि उसने उत्तर प्रदेश के बरेली स्थिति मानसिक रोगियों के केन्द्र का दौरा किया था और पाया था कि वहां करीब 70-80 ऐसे पुरुष व महिलाएं हैं जो पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं लेकिन उनके परिवारवाले उन्हें वापस लेने नहीं आये ऐसे मे वे वहीं रहने को मजबूर हैं। कमोवेश यही स्थिति अन्य राज्यों में भी है। याचिका मे ऐसे लोगों को वहां से छुट्टी दिये जाने और उनके पुनर्वास की व्यवस्था किये जाने की मांग की गई है।