राज्यों के खजाने को भर रहे पेट्रोल-डीजल, कैसे हो जनता पर बोझ कम
अधिकांश राज्यों के कुल राजस्व में पेट्रोल व डीजल पर बिक्री कर या वैट लगा कर वसूले गये राजस्व का हिस्सा 30 से 40 फीसद के करीब है।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया ने पिछले दिनों कहा कि राज्य के कुल राजस्व का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ पेट्रोल और डीजल से आता है, ऐसे में इन पर लगाये गये शुल्क में कटौती नहीं की जाएगी। लेकिन मध्य प्रदेश सिर्फ इकलौता राज्य नहीं है जहां पेट्रोल और डीजल पर ज्यादा शुल्क लगा कर खजाने भरे जा रहे हैं, बल्कि देश के अन्य सभी राज्यों की यही स्थिति है।
हालात यह है कि अभी भी दो दर्जन राज्यों में पेट्रोल पर 25 फीसद से 48 फीसद तक स्थानीय शुल्क लगाया जा रहा है और तकरीबन डेढ़ दर्जन राज्यों की तरफ से डीजल पर 16 फीसद से ज्यादा का टैक्स लिया जाता है। यह एक वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों के पिछले तीन वर्षों के दौरान आधे से भी कम रह जाने के बावजूद अगर आम जनता के लिए पेट्रोल और डीजल सस्ते नहीं हुए हैं।
दरअसल, पेट्रोल उत्पादों पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाने की आदत न तो केंद्र की गई है और न ही राज्यों की। इसकी वजह यह है कि अधिकांश राज्यों के कुल राजस्व में पेट्रोल व डीजल पर बिक्री कर या वैट लगा कर वसूले गये राजस्व का हिस्सा 30 से 40 फीसद के करीब है। पूरे देश में सबसे ज्यादा राज्य कर महाराष्ट्र में (47.64 फीसद) लगाया जाता है। आरबीआइ के डाटा के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में बिक्री कर व वैट से इसका कुल राजस्व संग्रह 69,725.2 करोड़ रुपये का था जिसमें 23,160 करोड़ रुपये (33.21 फीसद) सिर्फ पेट्रोल व डीजल से वसूला गया था। इसी वर्ष बिहार का बिक्री कर (वैट) संग्रह 10,115.64 करोड़ रुपये का था जिसका 35.96 फीसद (3638 करोड़ रुपये) पेट्रोल व डीजल पर लगाये गये शुल्क का बोझ था। उत्तर प्रदेश की कुल बिक्री कर कमाई (45,883.9 करोड़ रुपये) का 30.89 फीसद इन्हीं दो उत्पादों से था। तकरीबन हर राज्य का यही हाल है। कमाई का दूसरा तरीका नहीं खोज पाने की वजह से राज्य इन दोनों उत्पादों पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाते हैं।
राज्य | कुल बिक्री कर संग्रह | पेट्रो उत्पादों का हिस्सा (करोड़ रु. में) |
उत्तर प्रदेश | 45,883.90 | 14175 |
महाराष्ट्र | 69,725 | 23160 |
बिहार | 10,115.64 | 3638 |
पंजाब | 16,489.50 | 4965 |
मध्य प्रदेश | 18840.63 | 7631 |
झारखंड | 9444 | 2476 |
पेट्रोल पर आंध्र प्रदेश 38.82 फीसद, उत्तर प्रदेश में 32.45 फीसद, उत्तराखंड मं 32.51 फीसद, बिहार में 26 फीसद, छत्तीसगढ़ में 28.88 फीसद, गुजरात में 28.96 फीसद, दिल्ली में 27 फीसद, मध्य प्रदेश में 38.79 फीसद, पंजाब में 36.04 फीसद, हरियाणा में 26.25 फीसद का स्थानीय कर राज्य सरकारें लगा रही हैं। केंद्र सरकार ने भी विगत तीन वर्षों में उत्पाद शुल्क की 3.50 रुपये की स्थाई दर को बढ़ा कर 17.33 रुपये प्रति लीटर कर दिया है, जबकि डीजल पर बिहार में 19, दिल्ली में 17.38, गुजरात में 28.96, झारखंड में 24.61, मध्य प्रदेश में 30.22, उत्तर प्रदेश में 20.10, हिमाचल में 16, पंजाब में 17.33 फीसद की दर से स्थानीय टैक्स लगाये जा रहे हैं।
नतीजा यह है कि पिछले सवा तीन वर्षों में सभी राज्यों ने संयुक्त तौर पर उक्त दोनों उत्पादों से 4,89,987 करोड़ रुपये का राजस्व वसूली की है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने इस अवधि में 13,90,084 करोड़ रुपये का राजस्व संग्रह सिर्फ पेट्रोल और डीजल से किया है। इसका 42 फीसद भी राज्यों को जाता है।