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विरासत में मिली विकलांगता का दंश झेल रहा पूरा परिवार

विरासत में लोगों को भले जमीन जायदाद या फिर ज्ञान का भंडार मिलता है। जनपद के चोपन व म्योरपुर ब्लाक के दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां लोगों को विरासत में मिलती है अपंगता। असमय बूढ़े होने का दंश और तड़प-तड़प कर जीने की विवशता। जी हां, यह दास्तां है चोपन व म्योरपुर ब्लॉक के पड़वा, कोदवारी, राहिनिया दाम

By Edited By: Published: Tue, 07 Jan 2014 09:55 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2014 10:00 AM (IST)
विरासत में मिली विकलांगता का दंश झेल रहा पूरा परिवार

[अजय बिहारी सिंह], डाला (सोनभद्र)। विरासत में लोगों को भले जमीन जायदाद या फिर ज्ञान का भंडार मिलता है। जनपद के चोपन व म्योरपुर ब्लाक के दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां लोगों को विरासत में मिलती है अपंगता। असमय बूढ़े होने का दंश और तड़प-तड़प कर जीने की विवशता। जी हां, यह दास्तां है चोपन व म्योरपुर ब्लॉक के पड़वा, कोदवारी, राहिनिया दामर, माधुरी, गोबरदाहा, निरूहिया दामर समेत दर्जनों गांवों के महिला एवं पुरुषों के साथ-साथ छोटे-छोटे बच्चे की। जो फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं। यह विकलांगता बतौर विरासत में मिलती है। खास बात यह है कि यह विरासत जेनेटिक नहीं बल्कि मजबूरियों के कारण है। यह बात दीगर है कि पीढ़ी दर पीढ़ी विकलांगता का सफर जारी है, लेकिन न तो जिला प्रशासन और न ही राज्य सरकार की योजनाओं की रोशनी इस गांव पर नहीं पड़ी ताकि बीमारी जड़ मूल से समाप्त हो सके।

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विकलांगता की मार झेल रहे लोगों का कसूर यह है कि ये फ्लोराइड युक्त (औसत से ज्यादा) हैंडपंप का पानी पीने को अभिशप्त हैं। आम तौर पर पानी में डेढ़ प्रतिशत फ्लोराइड पाया जाता है, लेकिन पड़वा कोदवारी समेत दर्जनों गांवों के पानी में आठ प्रतिशत तक फ्लोराइड पाया जाता है। पीने के पानी एवं फ्लोराइड की अधिकता के कारण इनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। दांत पीले पड़ने लगते हैं मसूड़ा गलने लगता है। फ्लोराइड प्रभावित गांवों में जलनिधि समेत तमाम योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद यहां के ग्रामीणों को एक बूंद पीने का स्वच्छ पानी नसीब नहीं होता है। फ्लोराइड रूपी जहर न सिर्फ इनकी नसों में घुल रहा है बल्कि निर्बल और निरीह आदिवासी, गिरीवारी के सामाजिक ढांचों को छिन्न-भिन्न कर रहा है। स्थिति की गंभीरता इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षो में पीपुल्स साइंस देहरादून के वैज्ञानिकों की एक टीम ने करीब 147 गांव के 3588 बच्चों में फ्लोराइड के असर का परीक्षण किया तो 2219 बच्चों में इसका असर पाया गया। राम प्रसाद, राम प्रताप, विंध्याचल, लागू देवी, विजय, रामनाथ, सीताराम सहित सैकड़ों ऐसे महिला पुरुष हैं जो इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं यही नहीं पड़वा कोदवारी में 15 वर्ष से कम उम्र के अधिकतर बच्चों के दांत पीले हो गए हैं। इस गांव में शायद ही कोई ऐसा परिवार है जिस पर इस रोग का कहर नहीं बरपा। औसतन 80 प्रतिशत से अधिक परिवार रोग ग्रस्त हैं। फ्लोराइड पानी का असर यह है कि 35 से 40 वर्ष की उम्र में ही यहां के लोग बूढ़े नजर आते हैं। इस वजह से काम करने में क्षमता भी खत्म हो जा रही है। गांव के राम प्रसाद का कहना है कि फ्लोराइड युक्त पानी को शुद्ध करने के वास्ते गांव में हैंडपंप में अटैचमेंट यूनिट फिल्टर लगाया गया है लेकिन वह भी नाकाफी है।

मातृत्व सुख पर लग रहा ग्रहण

महिलाओं में भी फ्लोराइड का कहर है गर्भ में पल रहे शिशुओं की मौत भी हो जा रही है। महिलाएं मातृत्व सुख से वंचित हो रही हैं। घेंघा, गर्भाशय के कैंसर जैसे गंभीर रोग से ग्रसित हो रहे हैं। 80 फीसदी महिलाओं एवं पुरुषों के शरीर सुन्न हो गया है।

रिश्तों पर भी फ्लोराइड का असर

गांव के संतोष की शादी झारखंड के गढ़वा जिले में इस वर्ष जून में तय हुई थी लेकिन जब लड़की वाले को यह पता चला कि इस गांव में प्रदूषित पानी पीने से लोग असमय बूढ़े हो जाते हैं। इस वजह से लड़की के पिता ने रिश्ता करने से इन्कार कर दिया।

पढ़ें : जल प्रदूषण से बचाएं बच्चों को

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