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पीडीपी को दिया जा सकता है सख्त संदेश

जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के तीखे बयान और आक्रामक रुख ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी को न सिर्फ पीडीपी बल्कि अन्य सहयोगियों की ओर से भी दबाव बढ़ने की आशंका सताने लगी है।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2015 07:35 PM (IST)Updated: Mon, 09 Mar 2015 12:10 AM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के तीखे बयान और आक्रामक रुख ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पार्टी को न सिर्फ पीडीपी बल्कि अन्य सहयोगियों की ओर से भी दबाव बढ़ने की आशंका सताने लगी है।

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जबकि परिवार का आंतरिक दबाव भी बढ़ने लगा है। ऐसे में भाजपा के अंदर सहयोगी दलों के तेवर साधने की रणनीति पर कवायद तेज होने लगी है। पीडीपी को जल्द ही केंद्र से सख्त संदेश दिया जा सकता है।

प्रदेश इकाई को भाजपा की नीति के खिलाफ पीडीपी के हर बयान और कामकाज का जोरदार विरोध करने को कहा गया है। सूत्रों की मानें तो पानी सिर से ऊपर जाते देख भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सतर्क हो गया है। खासतौर पर पीडीपी नेताओं का यह बयान कि मसर्रत आलम की रिहाई भाजपा के साथ हुए साझा कार्यक्रम का हिस्सा है, भाजपा पर भारी पड़ा है।

संकेत मिल रहे हैं कि केंद्र से पीडीपी को सख्त संदेश देकर ऐसे बयान और कामकाज से बचने की सलाह दी जा सकती है। नेताओं को इसका अहसास है कि भाजपा के साथ रहते हुए कट्टरपंथियों के प्रति नरमी दिखाकर पीडीपी अपना आधार बढ़ाना चाह रही है।

ऐसे में उन्हें यह भी समझाया जा सकता है कि वर्तमान राजनीतिक माहौल में ऐसा कुछ न करें जिससे सरकार मुसीबत में फंस जाए। अगर मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद इसी तरह आगे बढ़ते रहे तो भाजपा को दोबारा सोचना पड़ सकता है। बताते हैं कि संघ का भी यही सुझाव है।

अन्य सहयोगी दलों के लिए भी होगा संदेश

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार यह केवल पीडीपी के लिए नहीं बल्कि शिवसेना, अकाली दल और दूसरे सहयोगियों के लिए भी संदेश होगा। गौरतलब है कि शिवसेना मौके-बेमौके किसी-न-किसी बहाने भाजपा पर सवाल उठा रही है। जबकि दिल्ली के चुनावी नतीजों के बाद अकाली दल भी दबाव बनाने से नहीं चूक रहा है।

बिहार में यूं तो सहयोगी दल लोजपा और रालोसपा भाजपा के साथ हैं। लेकिन यह अटकल लगाई जाने लगी है कि चुनाव से पहले एक नया गठबंधन दिख सकता है। ऐसे में भाजपा अवसर रहते ही सहयोगी दलों को संकेत देने का मन बनाने लगी है। पीडीपी सीधे निशाने पर होगी, लेकिन लक्ष्य दूसरे सहयोगी दल भी होंगे।


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