एक ऐसा फैसला जो LIC पर पड़ा भारी, करना होगा 3,543 करोड़ का भुगतान
सुप्रीम कोर्ट ने एलआइसी को आठ हफ्ते का समय देते हुए पूरे देश के अपने कर्मचारियों को पिछले वेतन का 50 फीसद भुगतान करने को कहा है।
नागपुर। एक ऐसा फैसला जो एलआइसी ने 25 साल पहले लिया था, अब उसे भारी पड़ रहा है। अस्थायी कर्मचारियों को बर्खास्त करने के मामले में 25 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम को कर्मचारियों को 3,543 करोड़ अदा करने का निर्देश दिया है। अदालत ने अस्थायी कर्मचारियों को 1991 से उनके पिछले वेतन का 50 फीसद भुगतान करने का निर्देश दिया है। इसके लिए जीवन बीमा निगम को आठ हफ्ते का समय दिया गया है।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार, एलआइसी की याचिका का निपटान करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के पूरे देश के करीब 8,000 कर्मचारियों (नागपुर के 350 कर्मचारी) को मौजूदा नियमों के अनुसार भुगतान करने को कहा है। जैसा निगम ने 18 मार्च 2015 के अपने फैसले में बताया था। अपने पहले के आदेश में सुधार करते हुये निगम से इन्हें नियमित करने और उसके परिणामस्वरूप होने वाले लाभ के तहत उन्हें उनके पिछले वेतन का 50 प्रतिशत भुगतान करने को कहा है।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय लाइफ इंश्योरेंस इंप्लाइज फेडरेशन के जरिए 25 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे श्रमिकों को पिछले वेतन भुगतान के लिए कोर्ट ने निगम को आठ हफ्ते का समय दिया है। कोर्ट ने इन कर्मचारियों के मामले में पिछले वेतन के भारी भुगतान बोझ को देखते हुये अपने पहले के आदेश में सुधार किया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन अस्थायी कर्मचारी को पहले के पूरे वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
जस्टिस वी. गोपाल गौड़ा और सी. नागप्पन के बेंच ने एलआइसी को आठ सप्ताह के भीतर आदेश का पालन करने का निर्देश दिया है। एलआइसी के ये अस्थायी कर्मचारी पिछले 25 साल से विभिन्न मंचों पर अपनी नौकरी को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं। एलआइसी ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश पर समीक्षा याचिका दायर की थी।
बेंच ने अपने फैसले में कहा, एलआइसी पर इसके भारी वित्तीय बोझ को ध्यान में रखते हुये हमें यह उचित लगता है कि केवल पिछले वेतन के भुगतान मामले में राहत में सुधार किया है और इसलिये हम पिछले वेतन का उसके परिणामी लाभों सहित 50 प्रतिशत भुगतान का आदेश देते हैं।
बेंच ने बीमा कंपनी द्वारा दायर समीक्षा याचिका का निपटान करते हुये कहा, कर्मचारियों के पिछले वेतन की गणना वर्कमैन के सकल वेतन के आधार पर की जानी चाहिये। यह गणना कर्मचारियों के वेतन में समय समय पर होने वाले संशोधन के अनुरूप होनी चाहिये।
बेंच ने बीमा कंपनी द्वारा दायर समीक्षा याचिका का निपटान करते हुए कहा कि कर्मचारियों के पिछले वेतन की गणना वर्कमैन के सकल वेतन के आधार पर की जानी चाहिए। यह गणना कर्मचारियों के वेतन में समय समय पर होने वाले संशोधन के अनुरूप होनी चाहिए।
निगम के ये अस्थाई कर्मचारी देश में विभिन्न स्थानों पर अस्थाई, बदली और अंशकालिक कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं। उनका दावा है कि उन्हें बीमा निगम ने दैनिक दिहाड़ी कर्मचारी के तौर पर नियुक्त किया। उनकी नियुक्ति निगम की विभिन्न शाखाओं में तीसरी और चौथी श्रेणी के अवकाश पर चले रहे कर्मचारियों तथा अन्य रिक्त पदों पर की गई।
कोर्ट ने कहा है कि इन कर्मचारियों के पिछले वेतन की गणना उनको समावेश करने की उनकी पात्रता की तिथि से लेकर उनकी सेवानिवृति तक की जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा है हालांकि वित्तीय बोझ को समीक्षा याचिका में अदालत के हस्तक्षेप के लिए उचित आधार नहीं माना जा सकता है लेकिन इस बात को ध्यान में रखते हुए कि एलआइसी एक सांविधिक निगम है जो कि जनता के व्यापक हित में काम करता है, अस्थाई और बदली कर्मचारियों जो कि नियमित नौकरी के पात्र हैं, उनके पिछले पूरे वेतन के भुगतान वाले सीमित बिंदु के मामले में, हमें इस पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने एलआइसी के तरफ से कोर्ट में पेश होते हुए कहा कि 31 मार्च 2015 की स्थिति के अनुसार 55,427 तीसरे ग्रेड के और 5,190 चौथे ग्रेड के कर्मचारी निगम में हैं। उन्होंने कहा कि एलआइसी कानून के प्रावधानों के तहत केन्द्र से निगम को कोई धन आवंटित नहीं किया जाता है। एलआइसी धन उसे मिलने भुगतानों से ही सृजित करता है।
रोहतगी ने कहा कि एलआइसी कानून के तहत उसका 95 प्रतिशत अधिशेष धन उसके जीवन बीमा पॉलिसी धारकों को आवंटित किया जाता है अथवा उनके लिए आरक्षित होता है। इसलिए ऐसा मानना कि एलआइसी के पास भारी अधिशेष राशि है और वह अदालत के आदेश को आसानी से पूरा कर सकता है गलत सोच पर आधारित है।
एलआइसी की हाजीपुर शाखा भारत में लहराया परचम
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एलआइसी को अस्थाई कर्मचारियों को नियमित कर उन्हें उनके पिछले पूरे वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया था।