पाक से विस्थापित हिंदु युवती को नहीं मिल रही AIPMT परीक्षा देने की इजाजत
मशाल के अभिभावकों के मुताबिक साल 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने बेटी के भविष्य को देखते हुए सिंध से भारत आने का फैसला किया था और वो लंबे समय तक वीजा के साथ भारत में रह रहे हैं।
नई दिल्ली। दो साल पहले पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से परेशान डॉक्टर दंपत्ति अपनी बेटी को भी डॉक्टर बनने का सपना लिए सिंध से भारत आए। पिछले हफ्ते आए 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम में भी उनकी बेटी मशाल ने 91 फीसदी अंक हासिल किए लेकिन परिवार में खुशी का माहौल ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका क्योंकि उन्हें पता चला कि उनकी बेटी ऑल इंडिया प्री मेडिकल एंट्रेस एग्जाम में हिस्सा नहीं ले सकेगी क्योंकि उसका स्टेटस विदेशी है।
दरअसल एआईपीएमटी के आवेदन फार्म में राष्ट्रीयता के कॉलम में दो ही विकल्प हैं पहला भारतीय और दूसरा एनआरआई यानी विदेश में रहने वाले भारतीय।
मशाल के अभिभावकों के मुताबिक साल 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने बेटी के भविष्य को देखते हुए सिंध से भारत आने का फैसला किया था और वो लंबे समय तक वीजा के साथ भारत में रह रहे हैं।
मशाल के पिता के मुताबिक वो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में अपनी बेटी को नहीं पढ़ा सकते क्योंकि वहां एक करोड़ रूपये तक डोनेशन देना पड़ता है जिसे वो वहन नहीं कर सकते।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक इस बाबत परिवार ने अभी तक विदेश मंत्रालय से लेकर स्वास्थ मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय तक अनुरोध किया है लेकिन उन्हें अभी तक कोई मदद या आश्वासन नहीं मिल पाया है।
राजस्थान सरकार के स्वास्थ मंत्री राजेंद्र राठौर के मुताबिक राजस्थान सरकार इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती है क्योंकि एआईपीएमटी परीक्षा केंद्र सरकार द्वारा आयोजित कराई जाती है। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय को पत्र लिखकर पाकिस्तान से विस्थापित हिंदूओं को कुछ हद तक आरक्षण देने की गुजारिश की है।
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