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स्वामी के बिना बताए केस मेंशन करने पर पक्षकारों ने उठाई आपत्ति

बात ये है कि सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीमकोर्ट में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर अयोध्या मामले में पक्षकार (इंटरवीनर) बनने का अनुरोध किया है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 08:26 PM (IST)Updated: Fri, 31 Mar 2017 02:54 AM (IST)
स्वामी के बिना बताए केस मेंशन करने पर पक्षकारों ने उठाई आपत्ति

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में दो पक्षकारों इकबाल अंसारी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकीलों ने सुप्रीमकोर्ट रजिस्ट्रार को पत्र लिख कर सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा बिना बताए कोर्ट में मामला मेंशन (कोर्ट के समक्ष मामले का जिक्र कर जल्दी सुनवाई की मांग करना) करने पर आपत्ति जताई है। उधर दूसरी ओर स्वामी शुक्रवार को एक बार फिर मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष इस मामले में मेंशनिंग कर सकते हैं क्योंकि कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर बातचीत से मसले का हल करने का सुझाव देते हुए उन्हें 31 मार्च को फिर से मामला मेंशन करने की छूट दी थी।

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बात ये है कि सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीमकोर्ट में हस्तक्षेप अर्जी दाखिल कर अयोध्या मामले में पक्षकार (इंटरवीनर) बनने का अनुरोध किया है। उनकी ये अर्जी कोर्ट ने मुख्य मामले के साथ संलग्न कर दी थी हालांकि अभी उस अर्जी पर कोर्ट ने कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है। अर्जी फिलहाल लंबित है। इसी मामले में स्वामी ने एक और अर्जी दाखिल की है जिसमें अयोध्या मामले की सुनवाई रोजाना करने की मांग की गयी है। गत 21 मार्च को स्वामी ने मामले पर जल्द सुनवाई की अर्जी का जिक्र किया था और कोर्ट ने मुद्दे को पक्षकारों के साथ बातचीत से हल करने का सुझाव दिया था।

इकबाल अंसारी और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के वकील एमआर शमशाद व शकील अहमद सईद ने गुरूवार को सुप्रीमकोर्ट रजिस्ट्रार को पत्र लिख कर स्वामी द्वारा अन्य पक्षकारों को सूचित किये बगैर मामले की कोर्ट में मेंशनिंग किये जाने का विरोध किया। वकीलों ने अपने पत्र में कहा है कि स्वामी की मामले में पक्षकार बनने की अर्जी पर अभी कोर्ट ने कोई फैसला नहीं लिया है। इसके बावजूद स्वामी ने मूल पक्षकारों को सूचित किये बगैर कोर्ट के समक्ष मामले की मेंशनिंग कर दी। ऐसा ही स्वामी ने पिछली बार भी किया था। वकील शकील अहमद ने अपने पत्र में रजिस्ट्रार से कहा है कि वो इस बात को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाएं ताकि भविष्य में स्वामी ऐसा न कर सकें। उनका कहना है कि स्वामी का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में राम जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं जो कि पिछले छह साल से लंबित हैं। सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले में फिलहाल यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दे रखे हैं।


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