गीतों में अब पहले वाली बात कहां
आज के समय में गीत आते हैं और चले जाते हैं, पहले के गीतों में गहराई थी। अब गीत टिकते ही कहां हैं, तब गीतों का जादू सिर चढ़कर बोलता था। अब तो गीतों की मेलोडी गायब सी हो गई है।
जागरण संवाददाता, कानपुर। आज के समय में गीत आते हैं और चले जाते हैं, पहले के गीतों में गहराई थी। अब गीत टिकते ही कहां हैं, तब गीतों का जादू सिर चढ़कर बोलता था। अब तो गीतों की मेलोडी गायब सी हो गई है। यह बात कवि और मशहूर गीतकार पद्मभूषण गोपाल दास नीरज ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कही।
'धीरे से जइयो बगियन में जैसे गीत परिस्थितियां देखकर उपजे थे। काव्य के लिए दर्शन होना चाहिए। कवि की परिभाषा बताते हुए कहा कि 'आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानुष होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य। रूस और अमेरिका में जब शीतयुद्ध चल रहा था तब लिखी गई कविता 'अब युद्ध नहीं होगा को अपनी श्रेष्ठ कविता बताई। अपने ढेर सारे गीतों में से 'सोखियों में घोला जाय फूलों का शबाब नीरज जी का फेवरेट गीत है। बोले कि महाकाव्य, खंड काव्य लिखने की हसरत थी, जो लगता है कि अधूरी रह जाएगी। अटल जी के बारे में कहा वह ङ्क्षहदूवादी कवि थे और मैं सर्वोदयवादी। हमने एक साथ कई कवि सम्मेलनों में मंच साझा किए। अटल जी को भारत रत्न काफी पहले मिल जाना चाहिए थे।