वर्चुअल करेंसी के आनलाइन लेनदेन पर रोक संभव नहीं
वर्चुअल करेंसी के ऑनलाइन खरीद-फरोख्त को रोकना संभव नहीं है। हालांकि अभी सरकार ने इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बिटक्वायन जैसी वर्चुअल करेंसी के ऑनलाइन लेन-देन पर रोक लगाने की स्थिति में फिलहाल सरकार नहीं है। इस मामले में सरकार के भीतर हुए विमर्श का निचोड़ यही है कि इस तरह की करेंसी की ऑनलाइन खरीद फरोख्त को रोकना संभव नहीं है। हालांकि अभी सरकार ने इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन एक अंतर मंत्रालयी समिति में इस पर हुए विमर्श में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इंटरनेट के जरिए होने वाले सौदों पर रोक लगाना तकनीकी तौर पर संभव नहीं है।
बिटक्वायन समेत तमाम तरह की वर्चुअल करेंसी के भविष्य पर विचार के लिए आर्थिक मामलों के विभाग ने एक अंतर मंत्रालयी समिति का गठन किया था। इस तरह की करेंसियों के लेनदेन पर रोक लगाने की संभावनाओं पर कमेटी की अप्रैल से अब तक चार बैठक हो चुकी हैं। सूत्रों के मुताबिक, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि सरकार क्रिप्टो करेंसी या वर्चुअल करेंसी पर भारत में रोक लगाने का फैसला लेती है तो इनके स्टेकहोल्डर के वेब पोर्टल मसलन आॅनलाइन एक्सचेंज, ऑनलाइन वालैट आदि को उनके आइएसपी के जरिए तकनीकी तौर पर ब्लॉक या अक्षम तो किया जा सकता है। लेकिन इंटरनेट पर इस तरह के ऑनलाइन सौदों या लेनदेन को पूरी तरह से रोकना तकनीकी तौर पर संभव नहीं होगा। मंत्रालय का मानना है कि ब्लॉकचेन के स्तर पर वीसीसी के सौदे करने वालों की ट्रैकिंग भी तकनीकी लिहाज से संभव नहीं है।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की राय है कि सरकार इन करेंसियों में सौदे कराने वाले एक्सचेंजों, वालैट, पंजीकृत ग्राहकों को ही केवल नियंत्रित ही कर सकती है। अब तक के अनुभव के आधार पर वीसीसी के स्वामित्व से यह प्रमाणित होता है कि यह ब्लॉकचेन के स्वरूप में है। किसी का व्यक्तिगत विवरण किसी भी ब्लॉकचेन में उपलब्ध नहीं होता। इसलिए इनके सौदों को डिजिटल आधार पर इनके बारे में पता लगाना मुश्किल होता है।
पूरी दुनिया में करीब 90 से अधिक वर्चुअल करेंसी चलन में हैं। जनवरी 2015 तक की सूचना के मुताबिक 137 लाख बिटक्वायन सर्कुलेशन में हैं जिनकी बाजार कीमत 2.7 अरब डॉलर की है।
क्या है क्रिप्टो करेंसी
क्रिप्टो करेंसी किसी भी सामान्य करेंसी मसलन डॉलर की तरह इस्तेमाल की जा सकती है। फर्क केवल यही है कि इसका लेनदेन केवल डिजिटल स्वरूप में ही होता है। पहली क्रिप्टो करेंसी बिटक्वायन के रूप में 2009 में चलन में आई थी।
यह भी पढ़ें: नोट नकली है या असली अब चुटकियों में चलेगा पता, RBI ने लॉन्च की एप