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संपत्ति पर कब्जा देना जरूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने उपहार के जरिये संपत्ति हस्तांतरण के मामले में अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि गिफ्ट डीड का पंजीकरण होने व उस पर दो गवाहों के हस्ताक्षर होने के बाद संपत्ति का मालिकाना हक हस्तांतरित हो जाता है। मालिकाना हक हस्तांतरण के लिए संपत्ति पर कब्जा देना जरूरी नहीं है। कोर्ट के अनुसार,

By Edited By: Published: Tue, 29 Jul 2014 08:17 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jul 2014 10:18 AM (IST)
संपत्ति पर कब्जा देना जरूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। सुप्रीम कोर्ट ने उपहार के जरिये संपत्ति हस्तांतरण के मामले में अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि गिफ्ट डीड का पंजीकरण होने व उस पर दो गवाहों के हस्ताक्षर होने के बाद संपत्ति का मालिकाना हक हस्तांतरित हो जाता है। मालिकाना हक हस्तांतरण के लिए संपत्ति पर कब्जा देना जरूरी नहीं है। कोर्ट के अनुसार, संपत्ति हस्तांतरण कानून की धारा 123 ने उपहार के मामले में हिंदू लॉ के प्रावधान को निष्प्रभावी कर दिया है। हिंदू कानून के तहत मालिकाना हक हस्तांतरण के लिए संपत्ति पर कब्जा देना अनिवार्य है।

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संपत्ति हस्तांतरण कानून की व्याख्या करने वाला यह अहम फैसला न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति वी गोपाला गौड़ा व न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने संपत्ति पर कब्जा न दिए जाने के आधार पर 28 साल पहले किए गए संपत्ति के गिफ्ट डीड को खारिज करने की मांग ठुकरा दी। पीठ के मुताबिक, कानून में कहीं नहीं कहा गया है कि उपहार में दी गई संपत्ति का मालिकाना हक उस संपत्ति पर कब्जा दिए बगैर नहीं हस्तांतरित हो सकता। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 123 में मालिकाना हक हस्तांतरित करने के लिए कब्जा देना जरूरी नहीं है। न ही गिफ्ट डीड की कानूनी मान्यता के लिए ही कब्जा देने की अनिवार्यता है। पीठ ने कहा कि धारा 123 हिंदू लॉ के उस उपबंध को समाप्त करती है, जिसमें उपहार में दी गई संपत्ति के हस्तांतरण के लिए कब्जा देना अनिवार्य है। संपत्ति हस्तांतरण कानून में संशोधन के बाद उपहार के मामले में सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ को ही संरक्षण मिला है हिंदू व बौद्ध कानून के प्रावधानों को धारा 123 के प्रावधान निष्प्रभावी कर देते हैं।

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में गिफ्ट डीड रजिस्टर्ड थी और उस पर दो गवाहों के हस्ताक्षर भी थे। उपहार पाने वाले ने उसे स्वीकार भी किया था और संपत्ति का मालिकाना हक भी उसके हक में हस्तांतरित हो चुका है। ऐसे में दानकर्ता के जीवित रहने तक संपत्ति के उपभोग की शर्त से न तो गिफ्ट डीड गैरकानूनी होता है और न ही उपहार पाने वाले के मालिकाना हक पर कोई असर पड़ता है।

क्या था मामला:

आंध्र प्रदेश में वारंगल की रेनीकुंतला राजम्मा ने 1986 में अपनी अचल संपत्ति रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड के जरिये के सरवनम्मा को दे दी। शर्त यह थी कि राजम्मा अपने जीते जी संपत्ति का उपभोग करेगी और किराया लेती रहेगी। बाद में राजम्मा ने कोर्ट से गिफ्ट डीड खारिज करने की मांग की।

उसकी दलील थी कि इसे दबाव में कराया गया है। इसके अलावा संपत्ति पर अभी तक कब्जा नहीं दिया गया है, इसलिए गिफ्ट डीड के जरिये संपत्ति का हस्तांतरण कानूनी नहीं है। हिंदू लॉ में संपत्ति हस्तांतरण के लिए कब्जा देना अनिवार्य शर्त है। कोर्ट ने दलीलें खारिज कर की।

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