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राष्ट्रपति चुनाव: नीतीश कुमार के झटके से सदमे में विपक्षी खेमा

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार की रेस में सबसे प्रबल दावेदार हैं।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 09:39 PM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 09:39 PM (IST)
राष्ट्रपति चुनाव: नीतीश कुमार के झटके से सदमे में विपक्षी खेमा
राष्ट्रपति चुनाव: नीतीश कुमार के झटके से सदमे में विपक्षी खेमा

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जनता दल यूनाइटेड की ओर से एनडीए राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करने के फैसले के साथ ही विपक्षी गोलबंदी की सियासत बुरी तरह धराशायी हो गई है। विपक्षी गोलबंदी की बुनियाद रखने वालों में शामिल नीतीश के विपक्ष की बैठक में शरीक होने से भी इनकार करने से विपक्षी पार्टियों में खलबली मच गई है। नीतीश से मिले इस गहरे सियासी झटके के बावजूद विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया है।

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुआई में जदयू को छोड़ विपक्षी खेमे में शामिल अन्य पार्टियों के नेताओं की गुरूवार को हो रही बैठक में विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम तय किया जाएगा। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार की रेस में सबसे प्रबल दावेदार हैं।

बुधवार शाम मीरा कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। मुलाकात के सियासी संकेतों से साफ है कि मीरा कुमार एनडीए उम्मीदवार कोविंद के खिलाफ विपक्ष का चेहरा हो सकती हैं। हालांकि उम्मीदवारी की दौड़ में पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के साथ पूर्व राज्यसभा सांसद भालचंद मुंगेकर का नाम भी है। वहीं बाबा साहब अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए वामपंथी दलों की पहली पसंद बन रहे हैं। इन संभावित उम्मीदवारों के नाम से साफ है कि विपक्ष भी कोंविद के खिलाफ दलित उम्मीदवार को ही उतारने पर गंभीर है। नीतीश से मात खाए विपक्ष गठबंधन के लिए मीरा कुमार की उम्मीदवारी इस लिहाज से भी बेहतर है क्योंकि वे न केवल बड़ा दलित चेहरा हैं बल्कि बिहार में बाबू जगजीवन राम की सियासी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं।

विपक्ष के लिए जदयू का राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के पाले में जाना केवल इस लिहाज से बड़ा झटका नहीं कि इससे वोटों के गणित में विपक्ष कमजोर होगा बल्कि नीतीश के कदम से 2019 के चुनाव के लिए व्यापक विपक्षी गोलबंदी पर भी गंभीर सवाल खडे़ हो गए हैं। नीतीश ने वैसे तो सोमवार को ही सोनिया गांधी और लालू से एनडीए उम्मीदवार का समर्थन देने की अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। जदयू की पटना में बुधवार को कोर कमिटी की बैठक बुलाकर नीतीश ने अपने फैसले पर मुहर लगवा ली। पार्टी महासचिव केसी त्यागी ने जदयू के कोविंद का समर्थन करने और गुरूवार को विपक्ष की बैठक में नहीं जाने का ऐलान भी कर दिया।

कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल से लेकर माकपा नेता सीताराम येचुरी समेत कई अन्य नेताओं ने आखिर तक नीतीश को विपक्ष गोलबंदी टूटने का का हवाला देकर पाले मे रखने की कोशिश करते रहे। जदयू को यह भी याद दिलाया गया कि नीतीश ने ही सबसे पहले सोनिया गांधी से बीते अप्रैल में मुलाकात कर विपक्षी गोलबंदी की पहल करने को कहा था। मगर नीतीश पहले दिन की अपनी दलील पर अड़े रहे। नीतीश के इस कदम के बाद विपक्षी खेमे में एनसीपी के रूख को लेकर भी आशंका गहरा गई है। एनसीपी भी एनडीए के दलित उम्मीदवार का विरोध करने को लेकर दुविधा में है। हालांकि एनसीपी सोनिया की गुरूवार को बुलाई विपक्षी पार्टियों की बैठक में शामिल होगी।

तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, नेशनल कांफ्रेंस ने विपक्षी उम्मीदवार उतारने के पक्ष में राय दी है। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी विपक्ष के साथ खड़े हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही दलित उम्मीदवार उतारने पर विपक्ष के साथ रहने की बात कह चुकी हैं। इसीलिए विपक्षी रणनीति की अगुआई कर रही कांग्रेस और वामदलों का मानना है कि फिलहाल जदयू के अलावा 17 पार्टियों में कोई अन्य विपक्षी गठबंधन से बाहर जाता नहीं दिख रहा। वहीं वामदलों ने संकेत दिया है कि आम आदमी पार्टी भले सीधे विपक्षी गठबंधन में नहीं है मगर राष्ट्रपति चुनाव में वह विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करेगी। बताया जाता है कि आप और वाम दलों के नेताओं के बीच इस सिलसिले में बात हो चुकी है।

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