नीतीश के केजरी वार से सहयोगी भी खफा
बिहार चुनावों को लेकर सीटों के बटवारे की पहली लड़ाई पार कर चुका 'महागठबंधन' राज्य में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आमद से असहज है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बुलावे पर बिहार आए केजरीवाल को लेकर कांग्रेस, राजद के साथ जद यू के नेताओं में भी नाराजगी
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बिहार चुनावों को लेकर सीटों के बटवारे की पहली लड़ाई पार कर चुका 'महागठबंधन' राज्य में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आमद से असहज है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बुलावे पर बिहार आए केजरीवाल को लेकर कांग्रेस, राजद के साथ जद यू के नेताओं में भी नाराजगी है।
दिल्ली में आम आदमी के हाथ सत्ता गवां चुकी कांग्रेस ने तो अपनी नाराजगी जता भी दी है। संभव है कि 30 सितंबर को 'महागठबंधन' संयुक्त रैली में यह नाराजगी और मुखर होकर सामने आए। कांग्रेस सूत्रों ने कहा भी कि यह अनावश्यक है और महागठबंधन के सदस्यों के बीच इसको लेकर कई लोग असहज हैं।
आशंका यह भी है कि बंटवारे में मजबूत हिस्सा पा चुकी पार्टी इसे पंसद वाली सीटों पर दावा जताने के हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती है। इसी तरह गठबंधन में शामिल राजद भी इस दोस्ती से असहज है। हालांकि, पार्टी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने दिल्ली में भाजपा को हराने वाली आम आदमी पार्टी के प्रचार को राज्य में मददगार बताया है। लेकिन राजद शीर्ष उनसे सहमत नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक भ्रष्टाचार को लेकर राजद नेताओं के साथ मंच साझा करने से परहेज कर रही 'आप' के राजनीतिक रवैये से पार्टी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव नाराज है। संसद में अपने भाषण में इन नेताओं के खिलाफ तीखी टिप्पणी कर चुके लालू ने राज्य राजनीति में बाहरी 'आप' बढ़ते हस्तक्षेप को अवांछित बताया है। जानकारी के मुताबिक भाजपा से मुकाबले के लिए मजबूरी में नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार कर चुके राजद प्रमुख इस मामले में अपनी राय नीतीश तक पहुंचा भी चुके हैं।
वहीं, अरविंद व उनकी शैली के विरोधी जद यू अध्यक्ष शरद यादव पहले ही विरोधी रहे हैं। उनके समर्थक भी अरविंद को प्रदेश की राजनीति में मिल रहे महत्व से नाखुश हैं। सूत्रों के मुताबिक बिहार चुनावों को लेकर पार्टी के कई निर्णयों को लेकर उन्होंने सवाल उठाए हैं। इसमें पार्टी द्वारा गुजरात में पटेल आरक्षण को लेकर बिना मांगे समर्थन देने व केजरीवाल को महत्व देने के मामले प्रमुख है। उनके मुताबिक ऐसे किसी नेता को महत्व देने की जरूरत नही है, जो राज्य की राजनीति के प्रति समझ न रखता हो और जिससे सहयोगियों में अनावश्यक भ्रम फैले।