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एनजीटी की तल्ख टिप्पणी," एक भी जगह बताइये जहां साफ है गंगा"

भारी भरकम धनराशि खर्च करने के बावजूद एक भी ऐसी जगह बताइये जहां गंगा साफ है? गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2015 07:55 AM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2015 08:10 AM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । भारी भरकम धनराशि खर्च करने के बावजूद एक भी ऐसी जगह बताइये जहां गंगा साफ है? गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है। यह तल्ख टिप्पणी और कड़वे सवाल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शुक्रवार को सरकार से पूछे। एनजीटी की अदालत में सरकारी वकीलों से जवाब देते नहीं बना। आखिरकार एनजीटी ने गंगा की सफाई और अविरल प्रवाह सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासों पर नाखुशी जताते हुए कहा कि हकीकत यह है कि अब तक कुछ नहीं हुआ है।

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एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली प्रधान पीठ ने गंगा में प्रदूषण के मामलों की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी को उन औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है जो अपनी गंदगी गंगा में प्रवाहित कर रही हैं। एनजीटी ने केंद्रीय जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय के अधिवक्ता से पूछा कि क्या यह बात सही है कि गंगा की सफाई पर अब तक 5000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुका है और गंगा नदी की स्थिति बद से बदतर हो गई है। एनजीटी ने साफ किया कि उसकी रुचि यह जानने में नहीं है कि यह धनराशि केंद्र ने खर्च की या राज्यों ने। एनजीटी ने सरकार से पूछा कि सिर्फ इतना बता दीजिए कि ढाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा नदी में वह कौन सा स्थान है जहां उसकी हालत में सुधार हुआ है। सरकारी वकील ने बताया कि 1985 से पिछले साल तक गंगा की सफाई पर 4000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि गंगा की सफाई की शुरुआत 1985 में गंगा एक्शन प्लान (गैप)-एक के तौर पर हुई। इसके बाद 1993 में गैप का दूसरा चरण शुरू किया गया।

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मौजूदा राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का गठन 2009 में किया गया। वकील ने कहा कि एनजीआरबीए विश्व बैंक से वित्त पोषित योजना है जिसका मकसद गंगा में प्रदूषण को रोकना है। इसके तहत 70 प्रतिशत खर्च केंद्र तथा 30 प्रतिशत राज्य सरकारें उठाती हैं। इस पर एनजीटी ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए कहा कि जो कुछ भी कहें, संभल कर कहें। वास्तविकता यह है कि अब तक कुछ नहीं हुआ है। यह अचानक नहीं है कि हम आपसे यह जानकारी मांग रहे हैं। हम एक साल से इंतजार कर रहे हैं लेकिन किसी न किसी वजह से आप इस मुद्दे को टालते जा रहे हैं। हम उस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते। लेकिन इस बार हम इस मुद्दे को छोड़ने नहीं जा रहे। गंगा को साफ करना आपकी पहली जिम्मेदारी है। आपके पास बहुत कम समय है। एनजीटी ने राज्यों को भी नहीं बख्शा।

एनजीटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित राज्य सरकारों से सुझाव मांगते हुए कहा कि हम अपने आदेश को खाली नहीं छोड़ेंगे। हम प्रत्येक राज्य की जिम्मेदारी तय करेंगे। एनजीटी ने कहा कि वह पहले चरण में गोमुख से कानपुर तक गंगा की सफाई के संबंध में कड़े निर्देश जारी करेगा। सुनवाई के दौरान एनजीटी ने उत्तराखंड को गोमुख से हरिद्वार के बीच औद्योगिक इकाइयों का ब्योरा भी देने को कहा। एनजीटी ने पूछा कि ये इकाइयां क्या बनाती हैं। माना जा रहा है कि एनजीटी सोमवार को कानपुर में टेनरी के मुद्दे पर फैसला सुना सकता है।

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