गुड़गांव में बदल रहे सियासी समीकरण
गुडगांव जिले के चुनाव नतीजे कइयों के राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लगा गए तो जिनके सितारे अभी तक गर्दिश में थे वह चमक गए हैं। जिस प्रकार से विधायक बदल गए हैं प्रबल संभावना है कि क्षेत्र में आने वाले समय में सियासी समीकरण भी बदलेंगे। राव इन्द्रजीत विरोधियों की जीत निश्चित तौर पर भाजपा में सत्ता के नए केंद्र भी पैदा
गुड़गांव, नवीन गौतम। गुडगांव जिले के चुनाव नतीजे कइयों के राजनीतिक कैरियर पर ग्रहण लगा गए तो जिनके सितारे अभी तक गर्दिश में थे वह चमक गए हैं। जिस प्रकार से विधायक बदल गए हैं प्रबल संभावना है कि क्षेत्र में आने वाले समय में सियासी समीकरण भी बदलेंगे। राव इन्द्रजीत विरोधियों की जीत निश्चित तौर पर भाजपा में सत्ता के नए केंद्र भी पैदा करेगी।
गुड़गांव विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री धर्मबीर गाबा को मैदान में उतारा था जो पहले भी चार बार विधायक रह चुके हैं। करीब 84 साल के धर्मबीर गाबा इस बार शुरू से ही चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे थे लेकिन पार्टी आलाकमान ने युवाओं की दावेदारी को दरकिनार कर अपने इस पुराने राजनेता पर ही भरोसा जताया जिसे वह कामयाब नहीं रख पाए और निश्चित तौर आज की उनकी हार को उनके राजनीतिक कैरियर को अंत के रूप में देखा जा रहा है। इसी प्रकार इनेलो ने यहां से अपने दिग्गज नेता और विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष गोपीचंद गहलोत को मैदान में उतारा, उनकी गिनती इनेलो के नीति निर्धारकों में होती है लेकिन लगातार दूसरी बार मिली शिकस्त ने भी उनके राजनीतिक कैरियर को ब्रेक दिया है, हालांकि चौटाला परिवार से उनके नजदीकी रिश्ते शायद ही इनेलो में उनके ऊंचे कद को तो कम नहीं होने देंगे। वर्ष 2009 में जिस प्रकार से सुखबीर कटारिया ने निर्दलीय जीत कर कांग्रेस सरकार को समर्थन के बदले मंत्री पद हासिल किया उतनी ही तेजी के साथ उनके राजनीतिक कैरियर पर इस बार के चुनाव नतीजों ने ब्रेक लगा दिया। हालांकि वह कांग्रेस से भी टिकट मांग रहे थे लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दी और इस बार निर्दलीय ही मैदान में उतरे और बुरी तरह से मात खा गए।
इनका बढ़ेगा कद
विधानसभा चुनाव में भले ही कुछ निर्दलीय और बागी चुनाव हार गए लेकिन जिस तरह से उन्होंने वोट हासिल किए उससे आने वाले वक्त में निश्चित तौर पर उनके राजनीतिक कैरियर के लिए जमीन तैयार हो गई है। चाहे वह गुडग़ांव से लड़े इनेलो के बागी व निगम पार्षद गजे सिंह कबलाना हों या फिर बादशाहपुर से भाजपा के बागी मुकेश शर्मा।
जहां तक जीते उम्मीदवारों की बात है तो निश्चित तौर पर से सोहना से भाजपा के तेजपाल तंवर और गुड़गांव से उमेश अग्रवाल के राजनीतिक कैरियर को नई दिशा मिल गई है, दोनों ही पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे और इस बार भी दोनों ही सीटों पर इनका जबरदस्त विरोध था। पटौदी से भाजपा की बिमला चौधरी की जीत केंद्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत की निजी जीत के रूप में देखी जा रही है
जिले के राजनीतिक समीकरण भी बदलेंगे
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तो जाहिर है तूती भी कांग्रेस की बोली लेकिन सत्ता बदल रही है तो समीकरण भी बदल रहे हैं। भाजपा तो ताकतवर होकर उभरी ही है लेकिन इनेलो भले ही शिकस्त खा गई लेकिन उसे कमजोर करके नहीं आंका जा सकता है। जिले में दो ही प्रमुख राजनीतिक दल रह जाने की संभावना है और कांग्रेस पूरी तरह से धरातल पर है। टिकट वितरण के बाद ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह ठंडा था, चुनाव नतीजों ने उनके हौसले पूरी तरह से पस्त कर दिए हैं जिनसे उबरने में वक्त लगेगा। जिले में अपना अस्तित्व जमाने की कोशिश में लगी हरियाणा जनहित कांग्रेस, विनोद शर्मा के नेतृत्व वाली हरियाणा जन चेतना पार्टी और गोपाल कांडा के नेतृत्व वाली हरियाणा लोक हित पार्टी पूरी तरह से औंधे मुंह गिरी हैं।