राष्ट्रपति चुनाव: एनडीए के नरम चेहरे पर विपक्षी गोलबंदी बिखरने का खतरा
सरकार ने उम्मीदवारी पर विपक्ष के अंदरुनी मतभेदों को भांपते हुए इसीलिए सबसे पहले सोनिया गांधी और सीतराम येचुरी से सीधा संवाद करने की रणनीति अपनाई।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव में आम सहमति बनाने के सरकार के दांव से विपक्षी गठबंधन के बीच जबरदस्त अंदरुनी खलबली मच गई है। एनडीए के सियासी हलकों मे उदारवादी नरमपंथी चेहरे को उम्मीदवार बनाने की चर्चाओं के मद्देनजर विपक्षी खेमे में अंदरुनी मतभेद साफ तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं।
इस लिहाज से विपक्षी खेमे के कई दल सरकार की आम सहमति की इस पहल को विपक्षी एकता तोड़ने के बड़े दांव के रुप में देख रहे हैं। गहरे मतभेदों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वामपंथी पार्टियों ने कांग्रेस समेत विपक्ष के अन्य दलों को यहां तक कहा दिया है कि वे भाजपा के नरम चेहरे पर भी राजी हुए तो वामदल अपने बूते गोपाल कृष्ण गांधी को राष्ट्रपति उम्मीदवार के रुप में उतारेंगे।
वामपंथी दलों की भाजपा के खिलाफ विचारधारा की सैद्धांतिक लड़ाई के मद्देनजर अपनाए जा रहे इस रुख ने कांग्रेस नेतृत्व के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है। विपक्षी खेमे के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भाजपा के नरमपंथी चेहरे पर आम सहमति बनाने के खिलाफ नहीं हैं।
मगर वामपंथी दलों के कड़े रूख को देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व के लिए भी राष्ट्रपति उम्मीदवार पर आम सहमति की बात फिलहाल मुसीबत की घंटी बन गई है। विपक्षी खेमे के सूत्रों ने कहा कि सरकार ने उम्मीदवारी पर विपक्ष के अंदरुनी मतभेदों को भांपते हुए इसीलिए सबसे पहले सोनिया गांधी और सीतराम येचुरी से सीधा संवाद करने की रणनीति अपनाई।
विपक्षी एकजुटता को बचाए रखने के लिए केवल वामपंथी दल ही कांग्रेस की चुनौती नहीं है बल्कि एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस, जदयू सरीखे अहम दल भी आम सहमति को लेकर दुविधा में हैं। सूत्रों के अनुसार एनसीपी ने जहां साफ कह दिया है कि यदि महाराष्ट्र के किसी चेहरे को एनडीए उम्मीदवार बनाता है तो फिर उसका वह विरोध नहीं करेगी।
वहीं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का कहना है कि द्रौपदी मूर्म से लेकर सुषमा स्वराज या किसी महिला को एनडीए उम्मीदवार बनाये जाने की स्थिति में वे उनका विरोध नहीं करेंगी। वहीं जनता दल यूनाइटेड से लेकर द्रमुक एम स्वामीनाथन से लेकर लालकृष्ण आडवाणी सरीखे चेहरे को उम्मीदवार बनाने की स्थिति में उनके खिलाफ प्रत्याशी उतारने के पक्ष में नहीं होंगे।
इस लिहाज से राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी पर जारी सियासत विपक्ष के लिए अपनी एकजुटता को बचाए रखने की चुनौती बन गई है। विपक्षी खेमे में शामिल दलों की अपनी-अपनी राजनीतिक वजहों से गोलबंदी में फूट की नौबत बढ़ा रही हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवारी पर विपक्षी दलों की इस अंदरुनी बेचैनी के बारे में पूछे जाने पर जदयू महासचिव केसी त्यागी ने सीधे तो कोई टिप्पणी नहीं की। मगर यह जरूर माना कि राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी विपक्षी एकजुटता बनाए रखने के लिए लिटमस टेस्ट जरूर बन गया है।
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