पूर्वाचल में सिंहासन का दांव
पूर्वाचल के जिस क्षेत्र के चुनाव में पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं, वहां मिंट्टी से मिंट्टी का और कुएं से कुएं तक पानी का रिश्ता है। वाराणसी मुंशी प्रेमचंद की जन्मभूमि है तो गोरखपुर कर्मभूमि। एक तरफ बाबा विश्वनाथ तो दूसरी तरह बाबा गोरखनाथ।
गोरखपुर [उमेश शुक्ल]। पूर्वाचल के जिस क्षेत्र के चुनाव में पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं, वहां मिंट्टी से मिंट्टी का और कुएं से कुएं तक पानी का रिश्ता है। वाराणसी मुंशी प्रेमचंद की जन्मभूमि है तो गोरखपुर कर्मभूमि। एक तरफ बाबा विश्वनाथ तो दूसरी तरह बाबा गोरखनाथ। बीच में आजमगढ़, जहां साहित्य से लेकर सियासत तक ने नए सबक दिए हैं। तमाम सियासी बदलावों के साक्षी पूवरंचल की उर्वर जमीन पर सत्ता का चाबुक हासिल करने को सभी दल बेचैन नजर आते हैं।
सियासत का नया दौर पूर्वाचल की जमीन से लिखा जाएगा। इसके लिए महराजगंज, डुमरियागंज से लेकर गोरखपुर, आजमगढ़ होते हुए वाराणसी तक चुनाव का बिगुल बज गया है। आखिरी चरण देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी से लेकर नाथ चिंतन के केंद्र गोरखपुर को एक साथ मथेगा। इस पूरे गलियारे के एक तरफ पड़ोसी राष्ट्र नेपाल है तो दूसरी तरफ बिहार और तीसरी तरफ मध्य प्रदेश की सरहद, जहां की संस्कृतियां भी इस अंचल को प्रभावित करती हैं। पूवरंचल के मतदाता पहली बार मोदी, मुलायम, केजरीवाल का इम्तिहान तो लेंगे ही, योगी आदित्यनाथ, कलराज मिश्र और आरपीएन सिंह की प्रतिष्ठा का भी खाका खीचेंगे। सबकी कोशिश पूवरंचल की उर्वर जमीन पर सत्ता का चाबुक हासिल करने की होगी।
अब तक के सियासी परिदृश्य पर गौर करें तो इस बार चुनाव में स्थानीय मुद्दे गौण हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का मुद्दा सियासी मंचों से गूंज रहा है। परिवर्तन के लिए मोदी का मंत्र और केजरीवाल की हुंकार के मुद्दे भी यही हैं। नारायणी, सरयू, राप्ती, गंगा, तमसा, वरुणा, गंडक, छोटी गंडक और सोन के पाटों से घिरे पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिन 18 संसदीय क्षेत्रों में मतदान 12 मई को होना है उनमें डुमरियागंज, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बासगांव [सुरक्षित] लालगंज [सुरक्षित], आजमगढ़, घोसी, सलेमपुर, बलिया, जौनपुर, मछलीशहर [सुरक्षित], गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर एवं राबर्ट्सगंज [सुरक्षित] शामिल हैं। यानी कुछ अवधी और बहुत कुछ भोजपुरी की सांस्कृतिक साझेदारी।
यहां पिछले चुनाव में उभरी उलेमा कौंसिल भले ही रफ्तार न पकड़ पाई हो, लेकिन सियासत में मुस्लिमों के मुद्दों को गरमी दी है। सपा, बसपा हो या कांग्रेस सबको उसका शोर डरा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्वाचल की अधिकतर सीटों पर ताल ठोकने वाली पीस पार्टी हालांकि वजूद के लिए जूझ रही है लेकिन उसकी उपस्थिति भी कई दलों की रणनीति में खलल डालती है।
पूर्वाचल में पहली बार ताल ठोंकने आ रहे मुलायम सिंह ने अपने लिए आजमगढ़ को यूं ही नहीं चुना है। यादव, मुस्लिम समीकरण ने ही उन्हें पूवरंचल के इस इलाके की ओर खींचा है। वरना अब तक मुलायम व उनका कुनबा पूवरंचल की सीटों पर जोर आजमाइश की सोचता भी नहीं था। यहां अब भी उलेमा और आतंकवाद का मुद्दा जिंदा है।
अंकगणित का खेल ही सही पर पूर्वाचल को लालबहादुर शास्त्री और चंद्रशेखर के रूप में देश को प्रधानमंत्री देने का गौरव हासिल है। लंबे समय बाद देश फिर पूवरंचल की ओर देख रहा है, जहां प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी, मुलायम सिंह यादव एवं अरविंद केजरीवाल अपने लिए जनादेश मांगने आ रहे हैं। महीनों से मोदीमय हुई वाराणसी पर पूवरंचल में भाजपा की सफलता का सूत्र तैयार करने का भी दारोमदार आ गया है। चंदौली और सोनभद्र के नक्सल प्रभावित इलाकों में भी मोदी के प्रभाव का आकलन होगा। यह भी अजब संयोग है कि पूवरंचल की जिस पट्टी पर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है उसे जोडऩे वाली सड़क वषरें से किसी मसीहे की तलाश कर रही है। गोरखपुर से आजमगढ़ होते हुए वाराणसी को जोडऩे वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-29 पिछले तीन साल से जगह-जगह टूटा है। अनगिनत आंदोलनों के बाद भी इसकी सुध नहीं ली गई।
2009: दलीय स्थिति
दल सीटें
सपा- 06
बसपा- 05
भाजपा- 04
कांग्रेस- 03