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म्‍यांमार की सरकार को खत्‍म करनी होगी सेना से निर्भरता, भारत से बेहतर संबंंधों को देनी होगी तरजीह

भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की सुरक्षा और विकास और म्यांमार में नए शासन का बेहद करीबी आपसी संबंध है। इन राज्‍यों के विकास के लिए जरूरी है कि पड़ोस में एक बेहतर सरकार हो जो उग्रवादी संगठनों पर लगाम लगा सके।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2020 03:59 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 03:59 PM (IST)
म्‍यांमार की सरकार को सेना से निर्भरता कम करनी चाहिए

विवेक ओझा। म्यांमार के सत्ताधारी दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने हाल ही में संसदीय चुनावों में जीत दर्ज की है और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के नेतृत्व में यह देश एक बार फिर अपनी क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका को निभाने की दिशा में अग्रसर होगा। हालांकि सेना समर्थित रोधी दल यूनियन सॉलीडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने सत्ताधारी दल पर सत्ता के दुरुपयोग के साथ चुनाव जीतने का आरोप लगाया है, लेकिन सत्ता संरचना पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव पड़े, इसकी आशंका कम है। यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि दक्षिण पूर्वी एशिया में आसियान सदस्य म्यांमार किन प्राथमिकताओं के साथ काम करेगा। 

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क्या म्यांमार इंडो पैसिफिक और एशिया प्रशांत क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए कार्य करने वाले देशों के साथ ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाएगा या चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल के तहत चीन म्यांमार इकोनोमिक कॉरिडोर जैसे अवसंरचनात्मक गठजोड़ों पर ध्यान केंद्रित करेगा। सवाल यह भी उठता है कि रोहिंग्या संकट के मामले पर आंग सान सू की सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन के जो आरोप लगाए गए, उनके प्रति म्यांमार की सरकार कितनी संवेदनशील है और क्या अब रोहिंग्या समस्या का कोई स्थायी समाधान बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों के साथ मिलकर म्यांमार का नेतृत्व ढूंढेगा? म्यांमार में नए शासन को भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की सुरक्षा और विकास से जोड़कर भी देखा जाता है।

भारत म्यांमार सीमा और खासकर उत्तर पूर्वी राज्यों में उग्रवादी संगठनों से निपटने में म्यांमार सरकार की प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण मानी गई है। चूंकि म्यांमार में लंबे समय से मिलिट्री जुंटा (सैन्य शासन) रहा है, जिसके चलते वहां सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की बजाय अधिनायवादी मूल्यों को तरजीह दी है, इसलिए अब यहां भी माना जाने लगा है कि जब तक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत देकर आंग सान सू की सरकार की मिलिट्री पर निर्भरता और उसके दबाव से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक एक बेहतर शासन प्रणाली के समक्ष अड़चनें बनी रहेंगी।

यही कारण है कि इस बार के संसदीय चुनावों में आंग सान की पार्टी को बड़े पैमाने पर समर्थन मिला है। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी म्यांमार में सक्रिय विद्रोही उग्रवादी समूहों से शांति वार्ता को संपन्न करने में अधिक प्रभावी तरीके से कार्य कर सकती है। एनएलडी की जीत के दूरगामी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यूएसडीपी के कई नेता जो म्यांमार की सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं, उनके चीन के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं और यूएसडीपी के सत्ता में आने पर वे चीनी हितों के प्रति अधिक निष्ठावान होकर कार्य करते, जिसका नुकसान भारत को होता। मालूम हो कि अराकान आर्मी को बीजिंग का समर्थन प्राप्त है।

एक लोकतांत्रिक, क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि समर्थक म्यांमार कई मुद्दों पर चीन के साथ अपने रिश्तों को पुनर्परिभाषित कर भारत के साथ मजबूती से खड़ा हो सकता है। खासकर दक्षिण चीन सागर में चीन ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के सागरीय संप्रभुता का जिस प्रकार से हनन करने की कोशिश की है, उसका ताíकक ढंग से विरोध करने के लिए म्यांमार को कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस से ऊपर उठना होगा।

उत्तर पूर्वी भारत की सुरक्षा और म्यांमार : पिछले तीन वर्षो में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आइजक मुइवा) ने म्यांमार में रहने वाले विद्रोहियों और उत्तर पूर्वी भारत में रहने वाले विद्रोहियों के साथ मिलकर भारत सरकार और उत्तर-पूर्वी राज्यों की सुरक्षा के समक्ष बड़ी चुनौती उत्पन्न की है। इस गुट ने म्यांमार के टागा क्षेत्र में भारत विरोधी अभियानों को संपन्न करने का काम किया है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) ने म्यांमार के अराकान साल्वेशन आर्मी के विद्रोहियों और काचिन पृथकतावादियों के साथ मिलकर म्यांमार में भारत की ऊर्जा परियोजनाओं और विकास परियोजनाओं को निशाना बनाने की योजना बनाई है। यह विद्रोही कलादान मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्टेशन प्रोजेक्ट और अन्य संयंत्रों को नष्ट करने की रणनीति बनाते पाए गए हैं।

इन सबसे निपटने के लिए म्यांमार और भारत की संयुक्त सेना ने फरवरी-मार्च 2019 में सर्जकिल स्ट्राइक- तीन (जिसे ऑपरेशन सनराइज भी नाम दिया गया) के माध्यम से नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) नगा विद्रोही समूहों और अराकान साल्वेशन आर्मी के टागा स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया। वर्तमान में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड खापलांग ने अपने कैडरों को टागा में कैंप खोलने और म्यांमार की सेना के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के आदेश भी दिए हैं। उन्होंने म्यांमार के कोकी क्षेत्र में भी कैंप खोलने का निर्णय किया है। इन सब कार्यो को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) कई उत्तर पूर्वी विद्रोही संगठनों के लिंक के साथ अंजाम दे रहा है।

म्यांमार सेना ने हाल ही में भारत-म्यांमार सीमा पर विद्रोही समूहों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए ऑपरेशन सनराइज-3 शुरू किया है। चूंकि विद्रोही समूह कोरोना के बाद बेरोजगार हुए युवाओं को जाल में फंसा रहे हैं, इसलिए म्यांमार सरकार द्वारा ऐसा निर्णय लिया गया है। कई अवसरों पर यह प्रमाण मिल चुके हैं कि युंग आंग के नेतृत्व वाली नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग म्यांमार के अंदर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। विभिन्न एनएससीएन समूह भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने की साजिश रच रहे हैं जिसको नाकाम करना जरूरी है।

इसी क्रम में म्यांमार के सैगिंग क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर एनएससीएन (के) और अन्य समूहों की तलाश में विशेष म्यांमार सेना इकाइयां तलाशी अभियान चलाने में लगी हुई हैं। म्यांमार सेना मणिपुर नदी के पूर्वी हिस्से की ओर भी अभियान चला रही है। विद्रोही समूह अराकान सेना मिजोरम के लोंग्थलाई जिले में कई शिविर लगाए हुए है, जो कलादान परियोजना के लिए खतरा हैं। कलादान मल्टी-मॉडल परिवहन परियोजना को भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने इसके लिए अप्रैल 2008 में म्यांमार के साथ एक समझौता किया था। इसके जरिये मिजोरम को म्यांमार के रखाइन सित्वे से जोड़ा जाएगा।

म्यांमार में संसदीय चुनावों में एक बार फिर सत्ताधारी दल की जीत हुई है। म्यांमार में चुनाव और वहां के शासक से बेहतर संबंध भारत के लिहाज से इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि म्यांमार भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी के साथ अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी व एक्सटेंडेड नेबरहुड फस्र्ट पॉलिसी की सफलता के लिए जरूरी है। दक्षिण एशिया व बंगाल की खाड़ी में क्षेत्रीय एकीकरण, अवसंरचनात्मक विकास, सुरक्षा निश्चिंतता के लिहाज से म्यांमार का अहम योगदान है। भारत-म्यांमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जिसे लाओस, कंबोडिया और वियतनाम तक विस्तारित कर दिया गया है, इस बात का मजबूत प्रमाण है

भारत और म्यांमार ने हाल के समय में जिन विषयों पर अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने के लिए समझौते किए हैं, उनमें मुख्य रूप से शामिल हैं: म्यांमार के रखाइन प्रांत के सामाजिक और आर्थिक विकास में भारत द्वारा सहायता, ह्यूमैन ट्रैफिकिंग यानी मानव र्दुव्‍यापार को रोकने के लिए पारस्परिक सहयोग, रखाइन क्षेत्र में जल आपूर्ति प्रणाली का निर्माण, सौर ऊर्जा के जरिये विद्युत वितरण, स्कूलों और सड़कों का निर्माण आदि। इससे स्पष्ट है कि भारत रोहिंग्या संकट के समाधान के रूप में म्यांमार में विकास का माहौल देने के लिए प्रतिबद्ध है। दोनों देशों ने भारतीय रुपे कार्ड म्यांमार में शुरू करने का भी निर्णय किया है। दोनों देश एक डिजिटल पेमेंट गेटवे के निर्माण की संभावना पर विचार करने में भी लगे हैं।

म्यांमार में भारतीय राजदूत ने पिछले वर्ष भारत द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बनाए गए 250 पूर्ण निर्मित घर म्यांमार को सौंपे थे। यह प्रोजेक्ट भारत और म्यांमार सरकार द्वारा वर्ष 2017 में हस्ताक्षरित किए गए समझौते का हिस्सा था। इसके तहत सरकार को पांच वर्षो में ढाई करोड़ डॉलर का व्यय करना था। इन घरों को भूकंप और चक्रवाती तूफान से बचने के लिए भी डिजाइन किया गया है। यह भारत सरकार के मानवतावादी सहायता के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। साथ ही, अपनी आंतरिक सुरक्षा के प्रति सजगता और सतर्कता को भी प्रदर्शित करता है।

नशीले पदार्थो का मसला: एक और प्रमुख मुद्दा जो भारत और म्यांमार के द्विपक्षीय संबंधों में खलल डालता रहा है, वह है नशीले पदार्थो की तस्करी का मुद्दा। चूंकि म्यांमार नार्कोटिक ड्रग्स की तस्करी वाले क्षेत्र स्वर्णिम त्रिभुज का हिस्सा है और यह चार उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम से सीमा साझा करता है, इसलिए म्यांमार के साथ भारत के संबंध इस विषय पर बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। मणिपुर के उखरूल, चंदेल, चंद्रचुरपुर में अफीम और हेरोइन की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। ड्रग फ्री उत्तर पूर्व और म्यांमार दोनों देशों की साझा जिम्मेदारी है। अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया का 80 प्रतिशत हेरोइन उत्पादन करता है और वैश्विक आपूर्ति के 60 प्रतिशत के लिए अकेले जिम्मेदार है।

भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय: इस संबंध में सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि भारत म्यांमार की सीमा पर कई हेरोइन लैब्स सक्रिय हैं। मिजोरम में म्यांमार के रास्ते से एंफेटामाइन जैसे पार्टी ड्रग्स की तस्करी और अवैध खरीद फरोख्त भी काफी बढ़ चुकी है जो उत्तर पूर्वी भारत के युवा मानव संसाधन को क्षति पहुंचा रही है।

नार्कोटिक ड्रग्स के इंफाल, आइजोल, कोहिमा, सिलचर, दीमापुर में पहुंचने के बाद इसे कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और बंगलुरू तक पहुंचाया जाता है। हाल ही में भारत म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह में लगभग नौ करोड़ रुपये मूल्य के अवैध ड्रग्स को सुरक्षा बलों द्वारा जब्त किया गया है। ऐसे कई उदाहरण अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के संबध में आए दिन मिलते रहते हैं जिससे इस व्यापार की बढ़ती विभीषिका का पता चलता है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि ड्रग तस्करी दोनों देशों के लिए एक गंभीर मसला इसलिए है, क्योंकि इससे आतंक, उग्रवादी, विप्लवकारी, पृथकतावादी गतिविधियों और उन्हें मदद करने वाले समूहों का वित्त पोषण संभव हो जाता है। इसलिए यह दोनों देशों के लिए आंतरिक सुरक्षा के साथ साथ प्रादेशिक अखंडता का भी मुद्दा है, जिसके समाधान के लिए भारत और म्यांमार ने अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है। इसके अलावा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूहों को भी चीन से वित्तीय सहायता और हथियार आपूर्ति के रूप में सहायता मिल रही है। ऐसे में इस तरह के भारत विरोधी नेटवर्क को तोड़ने में म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है।

(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं)


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